रिसेप्शन काउंटर की वो सांसें, जिनसे बचना नामुमकिन है!
अगर आपने कभी होटल के रिसेप्शन पर काम किया है, तो यकीन मानिए, आप इस कहानी से खुद को जरूर जोड़ पाएँगे। रिसेप्शन की कुर्सी पर बैठना जितना आसान दिखता है, उससे कहीं ज़्यादा धैर्य, समझदारी और... मास्क की ज़रूरत पड़ती है! और सबसे बड़ी चुनौती? वो मेहमान, जो दौड़ते-हांफते सीधे आपके काउंटर पर ऐसे आ धमकते हैं कि उनकी हर सांस आपके दिल-दिमाग को झकझोर देती है। भाई, हम तो यहीं बैठे हैं, कहीं भाग थोड़े ही जाने वाले!
रिसेप्शन काउंटर: सांसों का अखाड़ा!
अब ज़रा सोचिए, आप शांतिपूर्वक अपनी ड्यूटी कर रहे हैं और अचानक कोई मेहमान, मानो 100 मीटर दौड़ लगा के आया हो, हांफता-कांपता, आपके इतने करीब आ जाता है कि उसकी सांसों में बसा ‘रात का खाना’ या ‘बार का जाम’ भी आपको महसूस होने लगे! अरे भैया, हम तो रिसेप्शनिस्ट हैं, गुप्तचर नहीं कि आपकी रात्रिभोज की जासूसी करें। एक Reddit यूज़र ने तो कमाल की बात लिखी – "हमारे लिए तो सिर्फ लोगों की सांसों को झेलने के लिए भी खतरे का भत्ता मिलना चाहिए!"
यही नहीं, एक और टिप्पणीकार ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, "सबसे बुरा तो तब होता है जब कोई शराब पीकर आता है। उसकी सांसें इतनी तेज़ आती हैं कि लगता है जैसे पुराना ठर्रा सामने रख दिया हो।" अब बताइए, ऐसे में कौन सा इत्र काम आएगा?
अजीबोगरीब मेहमान, और उनकी आदतें
होटल रिसेप्शन पर काम करते हुए न जाने कितने अनोखे अनुभव होते हैं। एक बार की बात है, किसी ने देखा – एक मेहमान के कंधे पर तिलचट्टा (कॉकरोच) घूम रहा था। जब वो कमरे में गया, तो उल्टा शिकायत लेकर लौट आया कि “मेरे बिस्तर पर तिलचट्टा था!” अब भाई, कौन समझाए कि मेहमान अपने साथ ही ‘मेहमान’ लेकर आए थे!
इसी तरह, एक अन्य कर्मचारी ने अनुभव साझा किया कि कुछ लोग अपने पूरे खानदान और खाना-पानी के साथ आते हैं। फिर जब कमरे में कीड़े-मकोड़े दिख जाते हैं, तो सारा दोष होटल पर डाल देते हैं। एक मजेदार कमेंट में इसे ‘पालतू जानवर लाने’ से तुलना की गई – “जैसे लोग अपने साथ डॉग लाते हैं, वैसे कुछ लोग तिलचट्टा और बेडबग्स ले आते हैं!”
खाँसी-सर्दी और रिसेप्शनिस्ट की परीक्षा
एक और बड़ी परेशानी है – खाँसी और छींक! एक यूज़र ने दिल की बात कही, “मुझे सबसे ज्यादा परेशानी उन लोगों से होती है जो बिना किसी लिहाज के काउंटर पर खाँसते-छींकते हैं।” आजकल तो कोरोना के बाद सबको साफ-सफाई का महत्व पता चल गया है, लेकिन फिर भी कुछ लोग सुधरने का नाम नहीं लेते। एक टिप्पणी में लिखा था – “कम से कम मास्क पहन लो या मुँह ढँक लो, हम रिसेप्शन वाले भी इंसान हैं, पत्थर के नहीं!”
हालाँकि, कुछ लोगों ने यह भी कहा कि सभी की खाँसी संक्रमण वाली ही नहीं होती। बहुतों को अस्थमा या ऐसी ही कोई परेशानी होती है। एक यूज़र ने साफ लिखा, “मैं खुद अस्थमा का मरीज़ हूँ, खाँसी तो अपनी मर्जी से आती-जाती है, लेकिन मैं हमेशा मुँह ढँकता हूँ और कोशिश करता हूँ कि दूसरों को असुविधा न हो।” यानी, सबकी अपनी-अपनी मजबूरी व समझदारी है।
कोविड के बाद बदली दुनिया – काँच की दीवारों से मिलती राहत
कोरोना के समय में तो मास्क और प्लेक्सीग्लास (काँच की पारदर्शी दीवार) ने रिसेप्शनिस्ट की जान बचा ली थी। एक कर्मचारी ने लिखा, “ये प्लेक्सीग्लास तो वरदान बन गया! कम से कम अब लोगों की साँसों की बदबू और छींक से थोड़ी दूरियाँ बन गई हैं।” सोचिए, अगर हमारे रेलवे स्टेशनों या सरकारी दफ्तरों में भी ऐसी व्यवस्था हो जाए, तो न जाने कितने कर्मचारी राहत की सांस लें!
जब मेहमान काउंटर पर ही ‘धनवर्षा’ करने लगे
कुछ मेहमान इतने खास होते हैं कि उनकी जेब से नोट गिरते ही रहते हैं। एक कहानी में बताया गया कि अलास्का से मछली पकड़कर लौटे दो लोग, होटल में ऐसे आए कि जेब से पांच सौ-हजार के नोट गिरते रहे। गार्ड उन्हें उठाकर देता, तो वे टिप में भी हज़ार रुपए दे देते! सोचिए, ऐसे मेहमान हर रिसेप्शनिस्ट की दुआओं में शामिल हो जाएँगे।
निष्कर्ष: रिसेप्शनिस्ट की ज़िंदगी – सब्र, हिम्मत और थोड़ी-सी खुशबू की दरकार
तो अगली बार जब आप होटल, बैंक या कहीं भी रिसेप्शन पर जाएँ, तो याद रखिए – सामने बैठा इंसान भी आपकी तरह सांस लेता है, उसे भी ताजगी और दूरी की दरकार है। थोड़ी-सी जगह दीजिए, मुँह ढँकिए, और रिसेप्शनिस्ट की मुस्कान का आनंद लीजिए। आखिरकार, ये लोग भी अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी से निभा रहे हैं – चाहे सामने खड़ा आदमी साँसों का तूफ़ान ही क्यों न हो!
आपके पास भी रिसेप्शन या ग्राहक सेवा का कोई मजेदार अनुभव है? कमेंट में जरूर साझा करें – हो सकता है आपकी कहानी अगले ब्लॉग में सबसे ऊपर हो!
मूल रेडिट पोस्ट: Front desk workers you know exactly what am talking about