रात 2 बजे ऊँची आवाज़ में गाने? मैंने उसे ऐसे चुप कराया कि सबक याद रह गया!
कॉलेज हॉस्टल का जीवन जितना रंगीन होता है, उतना ही कभी-कभी सिरदर्दी भी! रात में पढ़ाई, प्रोजेक्ट्स, और सुबह की क्लास का टेंशन — ऐसे में अगर पड़ोस से तेज़ म्यूजिक बजने लगे तो नींद का कबाड़ा होना तय है। इस कहानी में आपको मिलेगा देसी अंदाज़ में बदला लेने का एक शानदार और हँसोड़ तरीका, जो न सिर्फ़ आपको हँसाएगा बल्कि सोच में भी डाल देगा कि कभी-कभी मीठा बदला भी कितना असरदार हो सकता है।
कॉलेज हॉस्टल की वो “सारा” जो सबकी नींद उड़ाती थी
हमारे नायक की कहानी कुछ ऐसी थी, जो कई हॉस्टल वालों की ज़िंदगी से जुड़ी लगेगी। उनका पड़ोसी था — नाम था सारा (अमूमन ऐसे किरदार हर हॉस्टल में मिल जाते हैं)। सारा कोई बुरी लड़की नहीं थी, बस... बहुत ज़्यादा शोर-शराबा पसंद थी। रोज़ रात 1-2 बजे तक उसके कमरे से म्यूजिक का तूफ़ान चलता, और वो भी तब जब हमारे दोस्त की अगली सुबह परीक्षा हो!
कई बार समझाने पर भी सारा का रटा-रटाया जवाब मिलता — “अरे यार, रिलैक्स करो, कॉलेज लाइफ है!” और फिर वो हँसकर गाने को और तेज़ कर देती। अब बताइए, ये भी कोई बात हुई?
जब पानी सिर से ऊपर हो गया: बदले की शुरुआत
एक रात, जब परीक्षा सिर पर थी और नींद आँखों से कोसों दूर, तो हमारे दोस्त ने आख़िरी उम्मीद के तौर पर सारा के दरवाज़े पर दस्तक दी — “थोड़ा कम कर दो, सुबह क्लास है।” सारा ने मुस्कुराकर बोला — “ठीक है,” और फिर वॉल्यूम और बढ़ा डाला! अब तो गुस्सा सातवें आसमान पर था, लेकिन कुछ कहने की बजाय चुपचाप छत घूरते रहे।
सुबह परीक्षा देकर लौटे तो ठान लिया — अब “रिलैक्स करो” वाला डायलॉग उन्हीं पर आज़माया जाएगा!
मासूम बदले का जादू — सुबह का “म्यूज़िकल अलार्म”
सारा को सुबह जल्दी उठना बिल्कुल पसंद नहीं था — अक्सर दोपहर तक सोती रहती थी। बस, यहीं से शुरू हुआ असली खेल! अगले एक हफ्ते तक, रोज़ सुबह 6:30 बजे, पूरे हॉस्टल में शांति छाई रहती थी, लेकिन सारा के कमरे की दीवार से सटी ब्लूटूथ स्पीकर से बजने लगे पुराने ज़माने के सबसे चिपचिपे, चुलबुले पॉप गाने — जैसे हमारे यहाँ शादी-ब्याह में “मेरा जूता है जापानी” या “सैंया जी से आज मैंने ब्रेकअप कर लिया” टाइप के गाने बजाते हैं, वैसे ही वहाँ के ‘बॉय बैंड्स’ के गाने।
पहले दिन सारा नींद में झल्लाकर बाहर निकली, आँखें लाल और चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ। तीसरे दिन तक तो वो खुद ही हाथ जोड़ने लगी — “प्लीज़, बंद कर दो!” लेकिन हमारे नायक ने वही डायलॉग दोहराया — “रिलैक्स करो, कॉलेज लाइफ है!”
कम्युनिटी की राय: मीठा बदला सबसे असरदार
रेडिट पर इस किस्से ने मानो बवाल मचा दिया। एक यूज़र ने लिखा, “यही सही बदला है — बिना हिंसा, बिना गाली-गलौच, बस थोड़ी मस्ती और क्रिएटिविटी!” वहीं, कईयों ने अपने अनुभव साझा किए — भारत में भी ऐसे किस्से आम हैं, जैसे कोई पड़ोसी रात भर टीवी या भजन तेज़ चला दे, तो लोग सुबह-सुबह झाड़ू-पोंछा करते हुए डब्बा बजा देते हैं या बच्चों को खेल खेलने भेज देते हैं।
एक कमेंट में किसी ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा — “अगली बार अगर सारा फिर से म्यूजिक बजाए, तो ‘बेबी शार्क’ या ‘योकों ओनो’ जैसे गाने बजाना चाहिए था। मुँह से निकले, ‘बस करो, वरना मैं भी शुरू कर दूँगा!’” एक दूसरे यूज़र ने लिखा — “सबसे मज़ेदार पल तब आया, जब नायक ने वही लाइन सारा को लौटा दी — ‘रिलैक्स करो, कॉलेज है!’”
कुछ यूज़र्स ने यह भी कहा कि असल में कॉलेज हॉस्टल में अक्सर ऐसे झमेले होते हैं, जहाँ वार्डन या सुपरवाइज़र का डर कम ही लगता है। भारत के हॉस्टल्स में ऐसे ‘मासूम बदले’ की कहानियाँ चाय की चुस्की के साथ खूब सुनाई जाती हैं।
क्या कहती है ये कहानी? — सीख और हँसी दोनों
इस छोटी-सी कहानी से एक बात तो साफ़ है, कि दूसरों को तंग करने वाले जब खुद उसी परेशानी से गुज़रते हैं, तो उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है। यही तो है — “जैसा करोगे, वैसा भरोगे!” और खास बात ये कि नायक ने न तो कोई लड़ाई झगड़ा किया, न ही कोई बदतमीज़ी — सिर्फ़ थोड़ी चतुराई और हास्य का तड़का लगाया।
रेडिट कम्युनिटी ने इसे “कर्मा की क्लास” बताया — हल्के-फुल्के अंदाज़ में, बिना किसी को चोट पहुँचाए, सबक सिखा देना। यही वजह है कि ऐसी कहानियाँ हर संस्कृति में लोगों के दिल को छू जाती हैं, चाहे वो भारत हो या कोई और देश।
आपकी राय क्या है?
क्या आपके साथ भी कभी ऐसा कुछ हुआ है? क्या आपने भी किसी शोरगुल या परेशान करने वाले पड़ोसी को इस तरह का मीठा बदला चखाया है? या फिर कभी किसी ने आपको? अपनी मज़ेदार या दिलचस्प कहानी नीचे कमेंट में ज़रूर शेयर करें। और हाँ, अगली बार जब कोई बोले — “रिलैक्स करो, कॉलेज लाइफ है,” तो बस मुस्कुरा दीजिए और अपने स्पीकर तैयार रखिए!
मूल रेडिट पोस्ट: Loud music at 2am? I found the perfect way to shut her up