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मैं यूट्यूबर हूँ, मुझे फ्री रूम दो!' – होटल रिसेप्शन पर सोशल मीडिया का तमाशा

बच्चों के शोर-शराबे के बीच फोन पर बात करती हुई महिला, निराशा और उलझन व्यक्त कर रही है।
फोन कॉल पर व्यस्त एक महिला की सचित्र छवि, अपने बच्चों की खुशहाल हलचल से घिरी हुई, रोजमर्रा की जिंदगी में मल्टीटास्किंग की चुनौतियों को बखूबी दर्शाती है।

हम भारतीयों को तो मेहमाननवाज़ी का बड़ा शौक होता है – “अतिथि देवो भवः” हमारे खून में है। लेकिन सोचिए, अगर कोई मेहमान होटल में आकर कहे – “मैं यूट्यूबर हूँ, मुझे फ्री रूम चाहिए!” तो रिसेप्शनिस्ट का चेहरा देखने लायक हो जाएगा। आज की हमारी कहानी भी कुछ ऐसी ही है – सोशल मीडिया के ज़माने में ‘इन्फ्लुएंसर’ बनने का जुनून और उसका असर होटल इंडस्ट्री पर!

होटल रिसेप्शन पर ‘यूट्यूबर’ का ड्रामा

यह किस्सा एक अमेरिकी होटल के रिसेप्शनिस्ट ने रीडिट पर साझा किया, लेकिन ऐसी घटनाएँ आजकल भारत में भी कम नहीं होतीं। बीती रात होटल की रिसेप्शनिस्ट को एक फोन आया – पीछे बच्चों का शोर, हंगामा, और माहौल एकदम मेला जैसा। महिला ने कमरे की बुकिंग के लिए बात शुरू की। रिसेप्शनिस्ट ने नियम के मुताबिक किराया, टैक्स, डिपॉजिट सब विस्तार से समझाया। तभी महिला बोली – “अरे, मैं तो यूट्यूबर हूँ, मुझे तो पैसे नहीं देने होंगे ना?”

रिसेप्शनिस्ट ने विनम्रता से कहा – “मैडम, आपको कमरे का किराया और डिपॉजिट दोनों देना पड़ेगा।” लेकिन महिला तो जैसे ठानकर आई थीं – “मैं इन्फ्लुएंसर हूँ! सोचिए, मैं आपको कितना बिज़नेस दिला सकती हूँ!”

यह सुनते ही रिसेप्शनिस्ट मन ही मन सोच रही थी – “अगर वाकई इतनी मशहूर होतीं, तो खुद ही ऑफर मिलता, माँगना नहीं पड़ता।” लेकिन जवाब में सिर्फ इतना ही बोला – “माफ कीजिए, मुझे फ्री रूम देने का अधिकार नहीं है।”

‘इन्फ्लुएंसर’ बनने की भूख और हकीकत

आजकल सोशल मीडिया पर रोज़ नए-नए ‘इन्फ्लुएंसर’ उगते हैं। हर कोई सोचता है, बस दो हज़ार फॉलोअर्स हो गए तो अब दुनिया हमारी जेब में! लेकिन क्या सच में होटल, रेस्टोरेंट या दुकानें सिर्फ ‘एक पोस्ट’ के बदले फ्री में सेवा देती हैं? एक कमेंटेटर ने बहुत सटीक बात लिखी – “अगर आप इतने सफल इन्फ्लुएंसर होते, तो होटल के पैसे देने में दिक्कत नहीं होती। और अगर आपके पास पैसे नहीं हैं, तो आपके रिव्यू से हमें क्या मिलेगा?”

एक और मज़ेदार प्रतिक्रिया – “हर एक मिलियन सब्सक्राइबर पर 5 रुपये की छूट और अगर आपके चैनल पर वो ‘सब्सक्राइब’ वाली घंटी बजती है, तो 50 रुपये एक्स्ट्रा!” सोचिए, अगर वाकई ऐसा नियम बन जाए, तो सोशल मीडिया वाले खुद ही लाइन छोड़ दें।

भारत में भी अब बहुत से होटल, कैफे और फ़ूड ट्रकों ने बाहर बोर्ड लगा दिए हैं – “इन्फ्लुएंसर के लिए डबल रेट!” आखिर ‘एक पोस्ट’ से न तो बिजली का बिल भरता है, न ही स्टाफ की तनख्वाह। एक कमेंटेटर ने चुटकी ली – “अगर आप वाकई प्रभावशाली इन्फ्लुएंसर हैं, तो पहले ग्राहक भेजिए, फिर डिस्काउंट की बात कीजिए।”

मशहूरी का ‘कार्ड’ और भारतीय ताने-बाने

हमारे यहाँ भी बड़े-बड़े सेलेब्रिटीज़, क्रिकेटर, या टीवी स्टार होटल में रूम बुक करते हैं, लेकिन ज़्यादातर को या तो पहले से ही होटल ने स्पेशल ऑफर दिया होता है, या फिर वे चुपचाप बुकिंग कराते हैं। एक कमेंटेटर ने अमेरिकी स्पोर्ट्स टीम के खिलाड़ी की कहानी सुनाते हुए लिखा – “भाई साहब, आप खिलाड़ी हैं, एक सीढ़ी चढ़ने में परेशान हो रहे हैं? और ऊपर से कहते हैं – मैं तो सेलेब्रिटी हूँ, मुझे नीचे का कमरा चाहिए!” रिसेप्शनिस्ट का जवाब सुनिए – “पिछले सीजन में 12 में से 4 ही मैच जीते थे, आपका कमरा तो दूसरी मंज़िल पर ही रहेगा!”

वैसे, असली सेलेब्रिटी को कभी खुद कहना नहीं पड़ता – “मैं स्टार हूँ, मुझे फ्री चीज़ चाहिए।” उनके लिए होटल खुद ऑफर देते हैं, वो भी बड़े इवेंट्स या ब्रांड प्रमोशन के मौके पर। और सच कहें, वो लोग 1000 रुपये के होटल में रुकेंगे ही क्यों?

जब इन्फ्लुएंसर की ‘इन्फ्लुएंस’ नहीं चली

कहानी में वापस लौटें – हमारी ‘यूट्यूबर’ महोदया ने आखिर में अपना दुखड़ा भी सुना दिया – कि उनके बॉयफ्रेंड से अनबन हो गई, बच्चों के साथ सुरक्षित जगह चाहिए, वगैरह। रिसेप्शनिस्ट ने सहानुभूति दिखाते हुए सलाह दी – “मैडम, अगर आप सचमुच मुश्किल में हैं, तो पुलिस को कॉल कीजिए, वो आपको शेल्टर या सुरक्षित होटल में जगह दिला सकते हैं। लेकिन मैं फ्री रूम नहीं दे सकती।”

महिला फिर भी जिद पर अड़ी रहीं – “मैं यूट्यूबर हूँ!” रिसेप्शनिस्ट ने आखिरकार दो टूक कह दिया – “अगर बुकिंग करनी है और पैसे देने हैं, तो मदद कर सकती हूँ, वरना फोन रखना पड़ेगा।” और फिर फोन कट!

पाठकों से सवाल – क्या आप भी ऐसे ‘इन्फ्लुएंसर’ से मिले हैं?

सोचिए, हमारे देश में भी रोज़ाना होटल, रेस्टोरेंट, कैफे वाले ऐसे ‘इन्फ्लुएंसर’ के चक्कर में पड़ जाते हैं। क्या आपको भी कभी किसी ने “मैं फेसबुक पर फेमस हूँ, मुझे फ्री समोसा चाहिए” जैसी डिमांड की है? आपके अनुभव नीचे कमेंट में ज़रूर साझा कीजिए। और हाँ, अगली बार कोई बोले “मैं यूट्यूबर हूँ”, तो पूछिए – “तो क्या होटल की बिजली अब व्यूज़ से चलेगी?”

यह थी सोशल मीडिया युग की एक सच्ची, मज़ेदार और सोचने पर मजबूर करने वाली कहानी। आपके पास भी ऐसी कोई घटना हो, तो हमें ज़रूर लिखें!


मूल रेडिट पोस्ट: Really?