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मेरी पड़ोसन का पागलपन और मेरी छोटी बदला योजना: नज़र वाले पत्थर की कहानी

अपार्टमेंट कॉरिडोर में पड़ोसी से सामना करती एक निराश tenant की सिनेमाई छवि।
इस सिनेमाई दृश्य में, एक tenant अपने विघटनकारी पड़ोसी, जो स्वयं को "tenant अधिवक्ता" कहता है, के साथ आमने-सामने है। इस भवन के नाटक में अगला क्या होगा?

क्या आपके आस-पास भी कोई ऐसा पड़ोसी है, जो मोहल्ले में आए दिन नई मुसीबतें खड़ी करता है? अगर हाँ, तो आज की यह कहानी आपके चेहरे पर मुस्कान जरूर ले आएगी! एक सामान्य सी बिल्डिंग में रहने वाले शख्स की जिंदगी उसकी 'अलौकिक' पड़ोसन ने ऐसा तंग कर दी, कि उसने भी अपनी तरफ से एक मजेदार और बिल्कुल नुक़सान-रहित बदला लेने की ठान ली।

पड़ोसन या आफ़त?

भाई साहब, हमारे यहाँ तो कहते हैं – “दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है,” लेकिन Reddit के u/Snoopy_Sista का किस्सा सुनेंगे तो लगेगा, दूध-छाछ तो दूर, यहाँ तो पानी भी डर-डर कर पीना पड़ रहा है। इनकी पड़ोसन खुद को “tenant advocate” घोषित कर चुकी हैं, लेकिन बिल्डिंग की सारी शिकायतों की जड़ भी वही हैं!

सोचिए, कोई आपके पीछे-पीछे घूमता रहे, हर किसी से टकराव करे, और फिर मैनेजर पर आरोप लगा दे कि उसने हमला किया! सोशल मीडिया पर ये मोहतरमा खुद को “पाँचवीं डाइमेंशन” में जाने वाली आत्मा बताती हैं, ताकि दुश्मनों से बच सकें। अब ऐसे में कोई क्या करे?

“नज़र” वाले पत्थर – मस्त जुगाad!

अब आते हैं असली बदले पर! हमारे हीरो ने सोचा, “इसका इलाज तो तगड़ा होना चाहिए,” और उन्होंने बाज़ार से सस्ते रंग और कुछ पत्थर लाकर, उन पर नीले-सफेद-काल रंग की ‘नज़र’ (evil eye) बना दी। अब ये पत्थर बिल्डिंग के हर कोने में, खासकर उसकी पार्किंग के पास और प्रवेश द्वार पर रख दिए गए।

आप सोचिए, हिंदुस्तान में जैसे हम काले टीके, नींबू-मिर्च या नज़र-बट्टू टांगते हैं, वैसे ही इन पत्थरों का मकसद बिल्डिंग को 'बुरी आत्मा' यानी पड़ोसन से बचाना था! एक यूज़र ने कमेंट किया – "वाह, क्या बढ़िया आइडिया है! लगता है उस महिला को मानसिक स्वास्थ्य की जाँच की ज़रूरत है।"

OP ने भी हँसते हुए जवाब दिया, "यह उसके लिए रोज़मर्रा की बात है, उसे लगता है, वो खुद बिल्कुल सही है!"

कम्युनिटी की चटपटी सलाहें

भैया, Reddit की जनता भी कम नहीं! कोई कह रहा है – “हर बार जब वो पत्थर हटाए, नए रख दो, जैसे हमारे यहाँ हर पूजा के बाद नया टीका लगाते हैं!” OP ने भी मज़े में जवाब दिया, “मेरी किचन तो पत्थर फैक्ट्री बन गई है, इस हफ्ते पोते-पोतियों को भी शामिल कर लूंगी!”

एक और कमेंट में सलाह मिली: "अगर और डराना है तो मुर्गी की हड्डियाँ भी साथ रख दो!" अब सोचिए, अगर भारत में ऐसा होता तो पड़ोसन अगले ही दिन सारे मोहल्ले में तंत्र-मंत्र की अफवाह फैला देती!

एक यूज़र ने तो मज़ाक करते हुए लिखा – "हर बार जब वो पाँचवीं डाइमेंशन में जाए, दरवाज़ा बदल दो... और बोलो, 'सॉरी, पृथ्वी आज बंद है!'"

मानसिक स्वास्थ्य की चुनौती और हमारा रवैया

कई लोगों ने इस पड़ोसन के व्यवहार को मानसिक बीमारी से जोड़कर देखा। किसी ने लिखा, "ऐसे लोगों के लिए दवा और साथ की ज़रूरत होती है, अकेलापन दिमाग को उल्टा-पुल्टा कर देता है।" OP ने भी माना, "वो खुद और दूसरों के लिए खतरनाक है, लेकिन जब तक कानून न टूटे, पुलिस कुछ कर नहीं सकती।"

यहाँ भारत में भी हम ऐसे मामलों में अक्सर या तो टाल जाते हैं या कहीं न कहीं परिवार-समाज की सपोर्ट व्यवस्था पर छोड़ देते हैं। Reddit की चर्चा में भी यही बात उभरकर आई कि उसके माता-पिता उसकी हरकतों को बढ़ावा ही दे रहे हैं।

अंत में – हँसी, तनाव और एक छोटा सा बदला

इस कहानी का सबसे मजेदार हिस्सा यही है कि OP ने किसी को नुक़सान पहुँचाए बिना अपनी नाराज़गी जाहिर कर दी। Reddit पर एक ने लिखा, "वाह! ये पत्थर तो असल में बुरी नज़र से बचाते हैं, लेकिन यहाँ तो सबको इनसे पड़ोसन से बचाने की उम्मीद है!"

OP ने भी माना, "ये पत्थर उसी के लिए हैं – ताकि सबको उससे बचाया जा सके!"

तो भैया, कहानी का सार यही है – “जहाँ शक्ति न चले, वहाँ जुगाड़ काम आता है!” और कभी-कभी, हँसी-मज़ाक में ही बड़ी परेशानियों का हल निकल जाता है।

आपके यहाँ भी कोई ऐसी 'अलौकिक' पड़ोसन है?

अब आप बताइए, क्या आपके मोहल्ले में भी कोई ऐसा किरदार है जिसे देखकर आप सोचते हैं, 'हे भगवान, बस इससे दूर रहना है!'? या फिर कभी आपने भी अपने पड़ोसी को हल्का-फुल्का सबक सिखाया हो? नीचे कमेंट में जरूर शेयर करें – आपकी कहानी भी किसी का दिन बना सकती है!

कहानी पसंद आई हो तो आगे जरूर भेजें, और हाँ, अगली बार अगर किसी ने खुद को “पाँचवीं डाइमेंशन” वाला बता दिया तो समझ लीजिए, नज़र वाले पत्थर तैयार रखिए!


मूल रेडिट पोस्ट: My crazy neighbour