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मेरा नाम तो वो था ही नहीं!' – ऑफिस की ग़लतफहमी और नाम की कहानी

खुदरा माहौल में एक हैरान कर्मचारी की एनीमे चित्रण, प्रबंधक की आलोचना पर विचार करते हुए।
इस जीवंत एनीमे दृश्य में, हमारा नायक एक कठिन प्रबंधक से अप्रत्याशित दबाव का सामना कर रहा है। खुदरा जीवन की चुनौतियों को पार करते हुए, वे अपनी पहचान को समझने और स्थापित करने की यात्रा में शामिल होते हैं।

किसी भी दफ्तर में काम करने वाले लोग जानते हैं कि वहाँ बॉस की अकड़, मीटिंग्स की भागदौड़ और नाम की गड़बड़ियाँ आम बात हैं। लेकिन क्या हो जब आपका बॉस आपको डाँट लगाए, और वजह ही पूरी तरह गलत निकले? आज की कहानी है एक ऐसे कर्मचारी की, जिसकी पहचान और नाम को लेकर उसके मैनेजर ने ऐसी ग़लती कर दी कि ऑफिस में सबका मूड ही बदल गया।

नाम में क्या रखा है? ऑफिस में तो बहुत कुछ!

हमारे समाज में “नाम” सिर्फ पहचान नहीं, सम्मान और अपनापन भी है। कई बार दफ्तरों में लंबे-चौड़े नाम या कठिन उच्चारण की वजह से लोग अपने नाम का छोटा वर्जन या निकनेम (उपनाम) इस्तेमाल करने लगते हैं। जैसे विनोद को विनु, सुमन को सुमी या फिर लम्बा नाम गुप्ता जी को बस "गुप्ता" बुलाया जाता है। दफ्तरों में तो नाम को लेकर कई मजेदार किस्से बनते रहते हैं।

इस Reddit यूजर का असली नाम थोड़ा लंबा और कठिन था, इसलिए उसने निकनेम अपनाया – और यही निकनेम उसके नेमटैग, सिस्टम और सब चीज़ों में लिखा भी था। अब भाई, जब सब उसे उसी नाम से बुलाते थे, तो बॉस साहब ने अचानक असली नाम या, और मज़ेदार बात – किसी और कर्मचारी का नाम, शेड्यूल में डाल दिया!

मैनेजर की अकड़ और नाम की उलझन

एक दिन बॉस ने हमारे नायक को ऑफिस बुलाया, और बड़ी अकड़ के साथ डाँट पिलाने लगे – "तुम मीटिंग में क्यों नहीं आए?" बेचारा कर्मचारी हैरान रह गया, क्योंकि उसने तो शेड्यूल में अपना नाम देखा ही नहीं था। जैसे कई बार हमारे यहाँ मम्मी-पापा बच्चों को बिना वजह डाँट देते हैं, वैसे ही यहाँ बॉस साहब अपनी “सुपीरियॉरिटी” दिखा रहे थे।

कर्मचारी ने शेड्यूल निकालकर दिखाया – “सर, मेरा नाम तो इसमें है ही नहीं।”
बॉस बोले, "मैंने तुम्हारा निकनेम नहीं, असली नाम लिखा है। शेड्यूल ध्यान से पढ़ा करो, सब तुम्हारे उपनाम के हिसाब से नहीं चलेंगे!"

अब कर्मचारी का पारा चढ़ना लाज़मी था। आखिर उसका निकनेम उसकी पहचान बन चुका था, और जानबूझकर उसे नज़रअंदाज़ करना सीधे-सीधे अपमान था। लेकिन उसने बड़े शांति से फिर देखा – "सर, मेरा असली नाम भी इसमें नहीं है।"

बॉस ने कंप्यूटर पर शेड्यूल दिखाया, किसी और का नाम दिखा कर बोले – "ये रहा!"
कर्मचारी मुस्कुराया, "सर, ये तो मेरा नाम ही नहीं है।"

उस समय बॉस के चेहरे के हावभाव देखने लायक थे – सारी अकड़ हवा हो गई। असल में उन्होंने किसी और को मीटिंग में डाल दिया था!

नाम की गड़बड़ियाँ – सिर्फ इंडिया में नहीं!

यह समस्या सिर्फ विदेशी ऑफिसों में नहीं, भारत के दफ्तरों, स्कूलों और दुकानों में भी खूब देखने को मिलती है। एक कमेंट करने वाले ने लिखा, "मेरे पुराने बॉस ने मुझसे बिना बताए शेड्यूल में मेरा नाम पेंसिल से जोड़ दिया, और बाद में मुझ पर चिल्लाए कि मैं क्यों नहीं आया।"
वहीं दूसरी यूजर ने बताया, "मुझे नौकरी से निकालने की धमकी दी गई, जबकि मेरा शेड्यूल ही नहीं था – मैं तो छुट्टी पर थी!"

हमारे यहाँ भी अक्सर स्कूल में टीचर बच्चों के नाम गड़बड़ा देते हैं – मोहित को मनीष, पूजा को पायल बुला लेते हैं, और फिर बच्चे परेशान! कई बार तो किसी और के नाम पर डाँट तक पड़ जाती है।

एक और मज़ेदार कमेंट था – "मेरी सहकर्मी का नाम मार्सी था, लेकिन सुपरवाइज़र मुझे हमेशा मार्सी बुलाती थीं। मैंने और बाकी सबने कई बार सुधारा, लेकिन जब तक मैं जवाब नहीं देती थी, मुझे इग्नोर करने का आरोप लगता!"
कुछ लोग तो इतने मज़े वाले हैं कि अगर कोई उनका नाम गलत पुकारे, तो “That’s not my name!” गाना गाने लगते हैं!

सम्मान और पहचान – नाम का असली महत्व

हमारे समाज में नाम को लेकर कई भावनाएँ जुड़ी होती हैं। किसी का नाम जानबूझकर गलत बोलना या नज़रअंदाज़ करना, सिर्फ ग़लती नहीं, कई बार असम्मान भी लगता है। इसी वजह से आजकल ऑफिसों में "Preferred Name" (पसंदीदा नाम) रखने का चलन बढ़ गया है – यानी आप जिससे पुकारे जाना चाहें, वही नाम इस्तेमाल हो।

कई दफ्तर ऐसे हैं, जहाँ सिस्टम में preferred name लिखा जाता है, ताकि बाकी कागजी कामों में ही असली नाम रहें, बाकी सब जगह आपकी इच्छा का नाम दिखे। इससे कर्मचारियों को अपनापन, सम्मान और खुशी मिलती है।

एक पाठक ने सुझाव दिया – "Nickname की जगह Preferred Name कहिए, ताकि सामने वाला समझे कि यही नाम सही है, मजाक नहीं!"

आपकी भी है कोई ऐसी कहानी?

अगर आपने भी कभी अपने दफ्तर, स्कूल या मोहल्ले में नाम की गड़बड़ी झेली हो – जैसे टीचर ने किसी और के नाम पर आपको डाँट दिया हो, या बॉस ने किसी गलत नाम पर मीटिंग में बुला लिया हो – तो नीचे कमेंट में जरूर बताइए।
क्योंकि कहते हैं, “नाम में क्या रखा है?” पर असल में, नाम में बहुत कुछ रखा है!

काम की दुनिया में, सम्मान और पहचान दोनों जरूरी हैं – और ये छोटी-छोटी बातें, जैसे सही नाम से पुकारना, कई बार बड़ा फर्क ला देती हैं।
तो अगली बार जब किसी का नाम लें, ध्यान से लें – वरना कहीं “वो मेरा नाम ही नहीं था!” वाली कहानी आपके साथ न हो जाए!


मूल रेडिट पोस्ट: 'Yeah that's not my name.'