मेरी तीसरी सुबह की शिफ्ट: होटल की रिसेप्शन पर खून का तालाब और ज़िंदगी-मौत का खेल
सुबह की हल्की सी ठंड, होटल का रिसेप्शन और मेरी ज़िंदगी की तीसरी सुबह की शिफ्ट—सब कुछ एकदम सामान्य था। चाय की चुस्की लेने की सोच ही रहा था कि अचानक एक मेहमान भागता हुआ आया, उसके चेहरे पर घबराहट साफ़ झलक रही थी। उसने लगभग हाँफते हुए कहा, "जल्दी 112 (अमेरिका में 911) कॉल करो, एक आदमी गिर गया है और बहुत खून बह रहा है!"
अब ज़रा सोचिए, होटल में काम करते हुए मेरी तीसरी ही सुबह थी और वो भी अकेले डेस्क पर! मेरे जैसे नए बन्दे के लिए इससे बड़ी परीक्षा और क्या हो सकती थी?
आगे बढ़ते हैं—जैसे ही मैंने रिसेप्शन की पुरानी फोन उठाई, वो सात सेकंड तक घंटी ही नहीं बजा। मन में आया, "हे भगवान, ये फोन आज ही धोखा देगा?" तुरंत अपना मोबाइल निकाला और सीधे इमरजेंसी नंबर डायल कर दिया। तभी होटल की रेस्टोरेंट मैनेजर जेननी भी दौड़ती हुई आई, बोली, "फौरन कॉल करो और ओलिविया (जनरल मैनेजर) को भी बताओ।" बाद में पता चला, जेननी ने खुद ओलिविया को खबर कर दी थी।
फोन पर ऑपरेटर ने जगह, घटना और जख्म की जानकारी मांगी। मैं घबरा कर बोला, "शायद गला कट गया है!" लेकिन तभी सामने खड़े मेहमान और बिस्ट्रो की कैशियर बोले, "नहीं, मुंह या नाक से खून बह रहा है।" कैशियर तो इतनी घबराई थी कि दो बार पूछने पर ही बता पाई। उस वक्त माहौल ऐसा था मानो कोई टीवी का क्राइम सीरियल लाइव चल रहा हो।
इसी बीच जेननी फिर आई और बोली, "वो मर गया है!" भाईसाहब, मेरे तो होश उड़ गए। सोच रहा था, "आज तो होटल का नाम ही बदल जाएगा!" पर जल्दी ही पता चला, वो महाशय जिंदा हैं, बस उनकी हालत नाजुक है। अब डर के बावजूद मुझे खुद मौके पर जाना पड़ा, क्योंकि 911 ऑपरेटर ने कहा, "आपको खुद देखना होगा।"
जब वहां पहुँचा तो नज़ारा ऐसा था कि भूले नहीं भूलता—वो आदमी ऑर्डरिंग काउंटर के सामने फर्श पर गिरा था, चारों तरफ खून का तालाब और दो लोग उसकी मदद कर रहे थे। वहीं एक सज्जन बोले, "तकिया लाओ, सिर को सहारा दो।"
यहाँ कम्युनिटी के एक सदस्य ने बड़ा सही पॉइंट उठाया—"अगर गर्दन या कमर में चोट हो सकती है तो सिर या गर्दन बिलकुल न हिलाएँ, जब तक जान बचाना जरूरी न हो!" भारत में भी यही सिखाया जाता है—चोटिल को बिना वजह हिलाना-डुलाना कभी-कभी गंभीर नतीजों का कारण बन सकता है।
बहरहाल, वहां खड़े टॉम (जो कम्पनी के निरीक्षण के लिए आए थे) का चेहरा देखने लायक था—अचानक से ऐसा माहौल किसी का भी दिल दहला दे। इमरजेंसी सर्विस आई, मैंने उन्हें मौके तक पहुँचाया। पुलिस आई, सीसीटीवी फुटेज मांगी गई। पता चला, मेहमान को मिर्गी का दौरा पड़ा, वो गिरा, नाक काउंटर से टकरा गई, और साँस लेने में भी दिक्कत हो रही थी। उसे स्ट्रेचर पर अस्पताल ले जाया गया।
पुलिस ने मुझसे नाम-पता, फैमिली डिटेल्स मांगी, लेकिन वो तो होटल में अकेले ही रुका था—कोई जानकारी फाइल में नहीं थी। शिफ्ट खत्म होने के बाद पता चला, उसका नाम-आई.डी. मिल गया था, मगर कोई फोन नंबर नहीं।
इस सब के दौरान ऑफिस के पीछे स्क्रीन पर उसी खून के तालाब की तस्वीर जमी हुई थी—हर बार उधर जाना मतलब डर का नया डोज़।
कुछ समय बाद वही मेहमान, जिसने घटना की सूचना दी थी, अपनी पत्नी के साथ आया और पूछा, "पता चला क्या हुआ?" मैंने बताया, "वो आदमी अब ठीक है, अस्पताल ले गए थे।"
टॉम ने चेकआउट करते समय मेरी तारीफ की और ओलिविया को भी मैसेज कर दिया कि मैंने स्थिति अच्छे से संभाली। ओलिविया तो शाम को आई और बोली, "तुम तो सुपरस्टार हो! इतना बढ़िया काम किया!" मानो शाबाशी की बरसात हो गई हो।
अब सबसे मजेदार मोड़—वो घायल मेहमान खुद चुपचाप रिसेप्शन पर आया, बोला, "मैं वही आदमी हूँ, जो सुबह रेस्टोरेंट में गिरा था। माफ करिए, आपको परेशानी हुई।" यकीन मानिए, मुझे लगा, "अरे साहब! आप तो मरते-मरते बचे, और माफी आप मांग रहे हैं?" लेकिन शायद ऐसे लोग, जिन्हें बार-बार मिर्गी या बेहोशी के दौरे आते हैं, उन्हें खुद की तकलीफ की आदत सी हो जाती है।
रेडिट की बहस में भी एक यूज़र ने लिखा—"मेरे बॉस को व्हीलचेयर की वजह से कई बार गिरना पड़ा, फिर भी हर बार वो खुद माफी मांगते हैं।" असल में, ऐसी विनम्रता दिल छू जाती है।
एक और सदस्य ने लिखा, "कई बार जिनको मिर्गी होती है, उन्हें हॉस्पिटल जाना पसंद नहीं, जब तक चोट न लगे या सांस न रुके। ज़्यादातर लोग इसे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा मान लेते हैं।"
किसी ने लिखा, "नाक पर इतनी ज़ोर से चोट लगना और वो भी बेहोशी में—सोचकर ही दर्द होता है!" खुद मुझे भी लगा, इंसान का शरीर कितना सहनशील है।
एक और किस्सा, जो एक कमेंट में आया—एक महिला अस्पताल से सीधी होटल आई, और अचानक फर्श पर गिर गई। रिसेप्शनिस्ट ने खुद उसे उठाकर इमरजेंसी बुलवाई। सच में, इस फील्ड में हर दिन कुछ नया देखने को मिलता है, और कभी-कभी ऐसे हालात में सही फैसला लेना ही सबसे बड़ा हुनर है।
तो दोस्तों, होटल की नौकरी सिर्फ चाय-कॉफी परोसने या चेक-इन-आउट करने का नाम नहीं—कभी-कभी ये ज़िंदगी और मौत के बीच की डोर थामने जैसा होता है। आज की कहानी बताती है कि इमरजेंसी में सही प्रतिक्रिया, धैर्य और समझदारी सबसे बड़ी पूंजी है।
क्या आपने कभी ऐसी कोई घटना देखी है, जहाँ किसी को अचानक मेडिकल इमरजेंसी आई हो? आपकी प्रतिक्रिया क्या थी? अपने अनुभव नीचे कॉमेंट में ज़रूर साझा करें, क्योंकि ज़िंदगी की ये असली कहानियाँ ही हमें आगे बढ़ना सिखाती हैं!
मूल रेडिट पोस्ट: It Was My Third Morning Shift Ever… and a Guest Collapsed in a Pool of Blood