मम्मी के सम्मान के लिए ठंडी बदला: जब एक स्लश ने करेन को सबक सिखाया
हर बच्चे के जीवन में एक ऐसा पल आता है जब उसे अपनी मम्मी के लिए कुछ करने का मौका मिलता है – और वही पल सबसे यादगार बन जाता है! माँ के लिए लड़ना, चाहे वो स्कूल की लड़ाई हो या मोहल्ले का किस्सा, हमारे दिल के सबसे करीब होता है। आज की कहानी एक ऐसे ही मासूम बदले की, जिसमें एक छोटे बच्चे ने अपनी माँ का सम्मान बचाने के लिए जो किया, वो पढ़कर आप हँसी भी रोक नहीं पाएंगे और सिर भी गर्व से ऊँचा हो जाएगा।
जब तेंदुलकर बनने का सपना बही ‘स्कोरकीपर’ बनने में
ये किस्सा है एक छोटे से शहर का, जहाँ हमारे नायक, महज 11 साल के, अपने भाई के टीनएज क्रिकेट जैसे T-ball (छोटे बच्चों का बेसबॉल) मैच में स्कोरकीपर बन गए। शायद हमारे यहाँ ये रोल ‘स्कोरर’ या ‘मैच बुक कीपर’ जैसा होता है, जो हर बॉल, हर रन का हिसाब रखता है।
मजेदार बात ये कि ये नौकरी हमारे नायक को खुद उनकी रुचि और थोड़ी सी किस्मत से मिली। स्कूल की छुट्टी के बाद मैदान में स्कोरबुक में अंक भरते-भरते, उन्हें पहली कमाई मिली – पूरे 14 डॉलर, यानी लगभग 1000 रुपये! वैसे तो भारत में बच्चों को इतनी जल्दी तनख्वाह वाली नौकरी मिलना मुश्किल है, लेकिन छोटे शहरों में मोहल्ले के टूर्नामेंट्स में स्कोरर बनना बहुत आम है।
‘करेन’ की जलेबी जैसी सोच और मम्मी का डटकर जवाब
अब असली ट्विस्ट आया मैच के दौरान। भाई की बैटिंग आई, तो हमारा नायक चीयर करने लगा – जैसी हर भारतीय बहन या भाई अपने सगे के लिए करते हैं। लेकिन तभी पीछे बैठी एक ‘करेन’ (यानी वह महिला जो बेवजह झगड़ा करती है, जैसा हमारे यहाँ 'आंटी' लोग कभी-कभी करती हैं) जोर-जोर से बोलने लगी – “ये स्कोरकीपर तो पक्षपात कर रहा है! भाई के लिए चीयर कर रहा है, जरूर स्कोरिंग में गड़बड़ करेगा।”
हमारे यहाँ तो मोहल्ले की आंटियां भी ऐसे कमेंट्स करती हैं – “अरे, देखो तो! अपने बच्चे के लिए ही तालियाँ बजा रही है!” लेकिन मम्मी वहीं थी – और माँ तो माँ होती है! बिना अपनी पहचान बताए, उन्होंने करेन को डांट दिया, “बच्चा है, मासूम है, और स्कोरिंग में गड़बड़ी करने की उम्र नहीं है। थोड़ा चीयर करने में क्या बुराई है?”
लेकिन करेन को कहाँ चैन! वह तो गुस्से में बड़बड़ाती रही और मम्मी के बारे में उल्टी-सीधी बातें कह गई।
नीली स्लश, सफेद कमीज़ और मजेदार बदला
अब आता है असली मजा! कुछ मैच बाद, वही करेन सफेद झक कमीज पहनकर आई। हमारे नायक के हाथ में स्कोरबुक और एक नीला ठंडा स्लश (ठंडी बर्फीली ड्रिंक, जैसे हमारे यहाँ बर्फ का गोला)। वे मुस्कुराते हुए उसके पीछे बैठ गए, और ‘गलती से’ पूरा स्लश करेन की कमीज पर गिर गया! सोचिए, सफेद कमीज पर नीला रंग – जैसे होली में पक्के रंग का वार!
मासूमियत से माफी भी मांगी – “आंटी, माफ करिए, अभी मैच शुरू होने वाला है, मुझे स्कोर लिखना है। मैं बाद में कुछ लेकर आता हूँ।” करेन गुस्से में आगबबूला होकर चली गई – और फिर कभी मैदान में नहीं दिखी।
रेडिट पर एक यूजर ने इस पर खूब चुटकी ली – “तुम्हारा बदला तो वाकई ठंडा था!” अंग्रेज़ी में कहते हैं – ‘Revenge is best served cold’, यहाँ सचमुच बर्फीला स्लश काम आ गया!
पाठकों की प्रतिक्रिया: ठंडक भरी जीत और माँ की मुस्कान
रेडिट पर इस कहानी ने खूब वाहवाही बटोरी। एक कमेंट में लिखा था, “शायद करेन अब गुस्से में नीले स्मर्फ जैसी दिख रही होगी!” तो दूसरा बोला, “T-ball में क्या ही पक्षपात होगा, बच्चे तो मैदान में मिट्टी ही खाते रहते हैं!” सच है, यहाँ के गली क्रिकेट या मोहल्ला फुटबॉल में भी बच्चे आधा समय गेंद ढूंढने या पेड़ से आम तोड़ने में लगा देते हैं, स्कोरिंग में पक्षपात की बात मजाक ही लगती है।
किसी ने मम्मी की तारीफ की – “अच्छी माँ वही है, जो सामने से और पीठ पीछे दोनों तरह से अपने बच्चे का साथ दे।” आखिर में जब बेटे ने मम्मी को सारा किस्सा सुनाया, मम्मी ने डांटते हुए भी गले से लगा लिया – यही तो माँ का प्यार है, डांट में छुपा गर्व और मुस्कान में छुपा आशीर्वाद।
निष्कर्ष: माँ के सम्मान के लिए कोई भी लड़ाई छोटी नहीं
इस कहानी में हमें मिलती है मस्ती, मासूमियत और माँ-बेटे का अनकहा रिश्ता। कभी-कभी ज़िंदगी में ऐसे मौके आते हैं जब हमें अपने अपनों के लिए छोटे-छोटे, लेकिन दिलचस्प कदम उठाने पड़ते हैं। ऐसे ही बदले हमारे दिल को तसल्ली देते हैं – और जीवन में हँसी-ठिठोली और यादें जोड़ते हैं।
क्या आपके साथ भी ऐसा कोई किस्सा हुआ है, जब आपने या आपके किसी भाई-बहन ने माँ के लिए कुछ अलग किया हो? अपनी मजेदार या इमोशनल कहानी हमारे साथ ज़रूर शेयर करें – क्योंकि आखिरकार, माँ के लिए लड़ी गई हर लड़ाई खास होती है!
मूल रेडिट पोस्ट: No one talks that way about my momma