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मुफ्त में सुविधाएँ पाने की जुगाड़: जब एक जोड़ा बिना पैसे के घूमा पर्यटन स्थल

यात्रा के दौरान बिना भुगतान मदद मांगते हुए एक परेशान जोड़े की कार्टून 3D चित्रण।
इस जीवंत कार्टून-3D दृश्य में, एक हैरान जोड़ा एक पर्यटन स्थल पर सूचना डेस्क की ओर बढ़ता है, बिना किसी भुगतान के अपने यात्रा के परेशानियों को सुलझाने की कोशिश कर रहा है। उनकी उलझन भरी हरकतें यह दिखाती हैं कि कुछ लोग नई जगहों को खोजते समय मुफ्त में क्या-क्या करने को तैयार होते हैं!

अगर आपने कभी किसी पर्यटन स्थल या बड़े मेले में काम किया है या सिर्फ घूमने गए हैं, तो आपको भी ऐसे लोग ज़रूर मिले होंगे जो मुफ्त की चीज़ों के लिए अनोखे बहाने बनाते हैं। आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिसमें एक विदेशी जोड़ा बिना किसी भुगतान के अपने गीले कोट रखने के लिए पूरा जुगाड़ लगाने निकल पड़ा। कहानी पढ़कर आप भी सोच में पड़ जाएंगे – आखिर लोग अपनी छोटी-छोटी बचत के लिए कितनी मेहनत कर लेते हैं!

मुफ्तखोरों की जुगाड़बाजी: जब हर रास्ता बंद हो जाए

हमारे देश में तो "मुफ्त का माल, जितना मिले उतना कम" की कहावत बहुत मशहूर है। लेकिन जनाब, विदेशों में भी ऐसे लोग कम नहीं! एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल की इन्फॉर्मेशन डेस्क पर काम करने वाले व्यक्ति ने अपने अनुभव साझा किए। उनका कहना है – "अधिकतर समय मेरा काम दिशा-निर्देश देना या इमारत के बारे में जानकारी देना होता है।"

एक दिन बारिश हो रही थी, और एक जोड़ा गीले कोट लिए डेस्क पर आया। उन्होंने पूछा, "क्या हम कोट कहीं रख सकते हैं?" अब वहाँ लॉकर्स हैं, लेकिन पैसे देने पड़ते हैं। मैंने उन्हें खुद-सेवा वाले लॉकर की ओर भेजा और समझाया कि कार्ड से भुगतान कर सकते हैं। महिला बोलीं – "हमारे पास कार्ड नहीं है।" मैंने कहा, "कोई बात नहीं, गिफ्ट शॉप से नकद में वाउचर ले सकते हैं।" लेकिन साहब, उनके पास तो नकद भी नहीं था! मैंने सुझाया – "रिसेप्शन में एटीएम है, वहाँ से पैसे निकाल लीजिए।" पर उनका जवाब, "हमारे पास फिजिकल कार्ड भी नहीं है।"

अब जरा सोचिए – बिना कार्ड, बिना नकद, और अब बता रहे हैं कि फोन से भी पेमेंट नहीं कर सकते क्योंकि उनके पास वाई-फाई नहीं है! जब हमने कहा कि यहाँ मुफ्त वाई-फाई है, तो उनका चेहरा देखने लायक था।

"कुछ तो जुगाड़ चल जाए": भारतीयों को क्यों लगेगा अपना सा?

इस कहानी में जो सबसे मज़ेदार बात है, वो है उनका आखिरी सवाल – "क्या कोई ऐसी जगह है जहाँ हम अपने कोट सूखने के लिए टांग सकें?" यानी, हर जुगाड़ आजमाने के बाद भी जब बात नहीं बनी, तो सीधा पूछ लिया – "मुफ्त में कुछ हो सकता है क्या?" जवाब भी सीधा था – "नहीं।"

यहाँ भारत में तो लोग अपने कोट, छाता या बैग किसी भी कोने में रख आते हैं और सोचते हैं – "भैया, किसी ने देख लिया तो उठा लेना, नहीं तो भगवान भरोसे।" वैसे उस इन्फो डेस्क कर्मचारी ने भी बताया कि कई लोग लॉकर का चार्ज बचाने के लिए सामान सीढ़ियों के कोनों में या पotted plant के पीछे छुपा देते हैं।

एक कमेंट करने वाले ने मज़ेदार बात कही – "अगर पैसे नहीं है, तो पेड़ के नीचे टांग दो कोट।" यह सुनकर मुझे अपने गाँव की याद आ गई, जहाँ लोग शादी-ब्याह में गीले कपड़े आम के पेड़ पर टांग देते थे, और काम हो जाता था!

पुराने ज़माने की यात्राएँ और आज के डिजिटल जुगाड़

कमेंट्स में एक सज्जन ने 'ट्रैवलर्स चेक' का जिक्र किया। एक समय था जब विदेश यात्रा पर जाने के लिए लोग बैंकों से ट्रैवलर्स चेक बनवाते थे – जैसे हमारे यहाँ लोग शादी में देने के लिए 'डिमांड ड्राफ्ट' बनवाते हैं! धीरे-धीरे सबने कार्ड, डेबिट, क्रेडिट और अब मोबाइल पेमेंट का इस्तेमाल शुरू किया। एक कमेंट में कहा गया – "अब तो मैं सिर्फ फोन या वॉच टैप करके पेमेंट कर देता हूँ, कभी-कभार थोड़े बहुत यूरो नकद साथ रख लेता हूँ, पर ज़रूरत पड़ती नहीं।"

लेकिन इस कहानी में जोड़ा बार-बार वही तर्क देता रहा – "वाई-फाई नहीं है, फोन से पेमेंट नहीं हो सकता।" कमेंट्स में कई लोगों ने स्पष्ट किया कि अधिकतर मोबाइल पेमेंट वाई-फाई के बिना भी काम करते हैं, बस बैंकिंग सिस्टम से रीडर का संपर्क होना चाहिए।

एक और कमेंट में किसी ने मजाकिया अंदाज में कहा – "कुछ लोग तो पैथोलॉजिकल मुफ्तखोर होते हैं, मुफ्त की चीज़ों के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।" भाई, ये बात तो हमारे यहाँ हर मोहल्ले के 'फ्री की मिठाई' वाले अंकल पर लागू होती है!

पर्यटन स्थलों की मुफ्त सेवाएँ और भारतीय मानसिकता

सबसे दिलचस्प बात यह थी कि जिस स्थान पर यह सब हुआ, वहाँ प्रवेश पूरी तरह मुफ्त है! सिर्फ कुछ अतिरिक्त सुविधाओं – जैसे कि लॉकर, कैफे, गिफ्ट शॉप – के लिए पैसे लगते हैं। यानी अगर आप चाहें तो बिना एक रुपया खर्च किए पूरा दिन वहां बिता सकते हैं।

यहाँ भारत में भी बहुत से ऐसे पर्यटन स्थल हैं, जहाँ प्रवेश तो मुफ्त है, लेकिन पार्किंग, कैमरा, बैग रखने या पानी की बोतल के लिए पैसे देने पड़ते हैं। और लोग ऐसे ही छोटे-छोटे खर्च बचाने के लिए नए-नए बहाने बना लेते हैं। एक बार मेरे खुद के दोस्त ने मेले में बैग स्टॉल के नीचे छुपाकर रख दिया था, ताकि लॉकर का चार्ज न देना पड़े!

निष्कर्ष: मुफ्त की जुगाड़, हर जगह एक जैसी

तो दोस्तों, यह कहानी भले ही विदेश की है, लेकिन इसमें जो किस्सागोई है, वो हमें अपने देश की ही याद दिलाती है। मुफ्तखोरी, जुगाड़ और छोटी बचत के लिए बहाने बनाना – ये सब इंसानी फितरत है, चाहे देश कोई भी हो। अगली बार जब आप पर्यटन स्थल पर जाएँ, तो याद रखिए – मुफ्त की चीज़ों के लिए जुगाड़ हर जगह चलता है, लेकिन हर बार सफल हो, ये जरूरी नहीं!

क्या आपके साथ भी कभी ऐसा कोई मजेदार वाकया हुआ है? या आपने भी किसी को इस तरह मुफ्त की सेवाओं के लिए जुगाड़ लगाते पकड़ा है? कमेंट में जरूर बताइए, और अगर कहानी पसंद आई हो तो दोस्तों के साथ शेयर कीजिए!


मूल रेडिट पोस्ट: Traveling with no form of payment