मैन्युअल या ब्रोशर पे भरोसा मत करो! टेक्निकल झोल और इंजीनियरों की पुरानी गलती
क्या आपने कभी किसी इलेक्ट्रॉनिक चीज़ के साथ ऐसा झेला है, कि मैन्युअल पढ़ो, ब्रोशर देखो, सब कुछ ठीक लगे – लेकिन फिर भी असली दुनिया में वह मशीन अपनी ही मर्ज़ी चलाए? भारत में तो हम अक्सर कहते हैं, "बाबूजी, मैन्युअल लिखने वाले ने खुद कभी इस्तेमाल किया है क्या?" आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।
यह कहानी है एक टेक्निकल सपोर्ट इंजीनियर की, जिसे अपने AV (ऑडियो-वीडियो) सिस्टम में ऐसी गुत्थी सुलझानी पड़ी, कि बाल नोचने का मन कर जाए। लेकिन, इस किस्से में केवल तकनीकी झोल ही नहीं, बल्कि इंजीनियरिंग परंपरा, गुरु-शिष्य परंपरा और कॉर्पोरेट दुनिया के चटपटे ताने भी शामिल हैं।
जब 'सिंक' और 'टाइमकोड' बन जाएं सरदर्द
AV की दुनिया में वीडियो के अलावा दो और बड़े खिलाड़ी होते हैं – ‘सिंक’ (Sync) और ‘टाइमकोड’ (Timecode)। सिंक का मतलब है सभी डिवाइस एक साथ, एक ही ताल में चलें – जैसे हमारे गांव की रामलीला में सब ढोलक वाले एक साथ बजाएं, वरना सारा मज़ा किरकिरा!
टाइमकोड थोड़ा और खास – ये रिकॉर्डिंग में छुपा एक घड़ी का सिग्नल होता है, जिससे बाद में संपादन (editing) करते समय सब फुटेज सेकंड-सेकंड पर मिल जाए। पुराने ज़माने का “क्लैपर” (जिसे हम slate clap कहते हैं) अब टाइमकोड ने टेक्नोलॉजी के दम पर बदल दिया है।
अब सोचिए, लाइव इवेंट रिकॉर्ड हो रहा है, और टाइमकोड दोनों रिकॉर्डिंग बॉक्स में मेल ही नहीं खा रहा – कभी 3 फ्रेम आगे, कभी 5 पीछे, कभी 10 इधर-उधर! एडिटर बेचारा माथा पकड़ ले, क्योंकि हर वीडियो को मैन्युअली सिंक करो… यानी रात की नींद हराम!
जब तकनीकी ज्ञान कम, जुगाड़ ज्यादा हो
इंजीनियर साहब और उनके साथी दिन-रात सिर खुजाते रहे – सिग्नल चेक किया, केबलें जांचीं, ऑस्सिलोस्कोप (oscilloscope) से वेवफॉर्म देखी, सब कुछ ठीक! लेकिन दोनों डिवाइस का टाइमकोड डिस्प्ले अलग-अलग।
फिर हुआ वो, जो अक्सर भारत में भी होता है – एक छोटी सी गलती, जो सबको भारी पड़ती है। असल में, टाइमकोड जनरेटर से सिग्नल पहले बॉक्स में गया, फिर वहां से लूप-थ्रू (अर्थात "आगे बढ़ाओ") करके दूसरे बॉक्स तक। सबको लगा, ये तो सीधा तार है, बस सिग्नल पास हो रहा है।
लेकिन, जनाब! असल में वह ‘लूप-थ्रू’ हार्डवेयर नहीं बल्कि सॉफ्टवेयर के जरिए था – यानी डिवाइस ने पहले सिग्नल खुद प्रोसेस किया, फिर आगे भेजा। सॉफ्टवेयर का झोल? हर बार डिले अलग – कभी ज्यादा, कभी कम! मानो यूपी-बिहार की ट्रेनें टाइम पर पहुंच गईं तो आश्चर्य, वरना डिले तो तय है।
यह सुनकर एक कमेंट में किसी ने मज़ेदार बात कही, "युवा इंजीनियर, बिना किसी अनुभवी गुरु के – 'मैंने पुरानी पद्धति से आसान तरीका खोज लिया!' और फिर समझ नहीं आता, बुजुर्ग ऐसा क्यों करते थे।" एक दूसरे ने कहा, "Chesterton's Fence" का असली मतलब यही है – परंपरा को बेवजह बेकार मत समझो, पहले उसके पीछे का कारण समझो।
गुरु-शिष्य परंपरा और कॉर्पोरेट की कड़वी सच्चाई
हमारे देश में गुरु-शिष्य परंपरा पर बहुत जोर है – तकनीक में भी यही ज़रूरी है। Reddit के कमेंट्स में एक अनुभवी ने लिखा, "अगर नया इंजीनियर बिना अनुभवी मेंटर के काम करे, तो ऐसी गलतियाँ होना तय है।" आजकल कंपनियाँ खर्चा बचाने के चक्कर में पुराने अनुभवी इंजीनियर को हटाकर नए सस्ते लड़कों को रखते हैं – नतीजा? 'जुगाड़' तो हो जाता है, पर सिस्टम में छेद रह जाता है।
एक और पाठक ने लिखा, "पुरानी चीज़ें बेवजह नहीं बनाई जातीं – जब तक समझ न आ जाए कि वो क्यों हैं, हटाना नहीं चाहिए।" यही बात गांव के बुजुर्ग भी कहते हैं, "बेटा, किसी पुराने रिवाज को समझे बिना खत्म मत करो।"
समाधान और सीख: सही ज्ञान, सही दिशा
आखिरकार, इस इंजीनियर ने समझदारी दिखाई – केबलों का जाल (cable salad) हटाया और दोनों रिकॉर्डिंग बॉक्स को सीधे टाइमकोड जनरेटर से जोड़ दिया। यानी जुगाड़ नहीं, सही तरीका अपनाया।
कमेंट्स में एक और इंटरनैशनल मज़ाक था: "इंजीनियर को उसकी खुद बनाई मशीन को ताउम्र इस्तेमाल करने की सज़ा मिलनी चाहिए – तभी समझ आएगा कि असल परेशानी क्या है!" और यही सच है – चाहे टेक्नोलॉजी हो या जीवन, अनुभव और सही दिशा दोनों ज़रूरी हैं।
अंत में, एक पाठक ने लिखा, "मैन्युअल, ब्रोशर या गाइड – कुछ भी हो, आंख मूंदकर भरोसा मत करो। असली दुनिया में हर चीज़ की परीक्षा जरूरी है।"
निष्कर्ष: आपकी राय क्या है?
तो दोस्तों, क्या आपके साथ भी ऐसा कोई तकनीकी हादसा हुआ है – मैन्युअल कुछ और कहे और मशीन कुछ और करे? या फिर कभी किसी 'जुगाड़' का खामियाजा भुगतना पड़ा? कमेंट में जरूर बताइए! और हाँ, अगली बार कुछ नया डिजाइन करें, तो पुराने इंजीनियर या अपने दादा-नाना से ज़रूर सलाह लें – क्योंकि अनुभव का कोई विकल्प नहीं!
आशा है, ये कहानी आपको मुस्कराने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर करेगी।
आपकी अपनी तकनीकी टोली में, अनुभव और परंपरा की अहमियत कभी भूलिएगा मत!
मूल रेडिट पोस्ट: Don't trust the brochure. Or the manual. Or anything really.