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मेट्रो में ऐंठू छोरे की ऐसी तैसी: जब एक युवक बना 'सीट हीरो

भारी भीड़ में मेट्रो की सीटों पर फैलकर बैठे एक किशोर, दूसरों को नजरअंदाज करते हुए जोर से संगीत सुन रहा है।
इस दृश्य में एक किशोर मेट्रो की सीटों पर फैला हुआ है, चारों ओर की भीड़ से बेखबर। क्या वह शिष्टता सीख पाएगा, या दिन का 'बदतमीज़ बच्चा' बना रहेगा? एक विनम्र अनुरोध और इसके बाद की अप्रत्याशित प्रतिक्रिया की कहानी में डूबिए।

सोचिए आप मेट्रो में सफर कर रहे हैं, भीड़ है, सबको बैठने की जल्दी है और तभी एक छोरा पांच-पांच सीटों पर कब्जा जमाए बैठा है—ऊपर से मोबाइल पर तेज़ म्यूज़िक चला रहा है! ऐसे में खून ना खौले तो क्या खौले? आज की कहानी ऐसी ही एक मेट्रो यात्रा की है, जहां एक आम युवक ने उस ऐंठू लड़के को ऐसा सबक सिखाया कि बाकी यात्रियों के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

मेट्रो में सीट की जंग: जब धैर्य जवाब दे गया

हमारे नायक—22 साल के युवक—ने देखा कि एक 16-17 साल का लड़का मेट्रो की पांच सीटों पर ऐसे पसरा है जैसे उसके बाप की मेट्रो हो! उसके पास भारी बैग, पैर फैलाकर लेटा हुआ और मोबाइल पर हल्ला गुल्ला म्यूज़िक। हमारे भाई साहब ने शांति से कहा, "भाई, बैग हटा दो, बैठना है।" लेकिन लड़के का जवाब था—"नहीं, मेरा मन नहीं है।" ऊपर से आंखें घुमाना और चिढ़ाने वाली मुस्कान!

बस, यहीं से कहानी में मोड़ आ गया। अगर लड़के ने तमीज से बात की होती, तो शायद मामला शांत रहता। लेकिन हमारी जनता भी क्या कम है—किसी ने कुछ नहीं कहा। ऐसे हालात में कई बार लोग चुपचाप खड़े रहते हैं, लेकिन आज हमारे हीरो का सब्र टूट गया।

जब 'सीट हीरो' ने दिखाई असली ताकत

अब आया असली ट्विस्ट। भाई साहब ने एक झलक में बैग का वजन देखा (शायद अंदर कोई कीमती चीज़ ना हो) और फिर क्या—बैग को उठाकर मेट्रो के थोड़े आगे फेंक दिया! लड़के की तो सिट्टी-पिट्टी गुम। गुस्से में बोला, "क्या कर रहा है? मेरा बैग वापस ला!" लेकिन हीरो ने सीधा जवाब दिया—"या तो लड़ ले, या खुद जा बैग उठा ले।"

संयोग से, हमारे हीरो 90 किलो के मजबूत युवक, और लड़का दुबला-पतला। लड़के ने दो पल सोचा, फिर खुद ही बैग लेने चला गया। इतने में हमारे हीरो ने खाली हुई सीट पर खुद बैठ गए और बाकी यात्रियों को भी बुला लिया—"आ जाइए भाई, जगह मिल गई!"

जब लड़का लौटा, तो सारी सीटें भर चुकी थीं। उसने गुस्से में चिल्लाना शुरू किया, लेकिन हीरो ने फिर वही दोहराया—"अगर लड़ना है तो बता दे, वरना जा।" आखिरकार, लड़का बड़बड़ाता हुआ चला गया।

क्या ये बदमाशी थी या समाजसेवा?

बहुत लोगों के मन में सवाल उठता है—क्या ये ठीक था? क्या ये हीरो खुद बदमाशी कर रहा था या किसी ज़रूरी सबक की क्लास ले रहा था? Reddit पर भी इस पर खूब चर्चा हुई। एक यूज़र ने लिखा—"असली हीरो तो ऐसे ही होते हैं, जिनके पास केप नहीं होता।" (मतलब, सुपरहीरो की तरह गुप्त रूप में आम आदमी!) किसी ने कहा, "मैं होता तो सीधा उसके ऊपर बैठ जाता।" एक और कमेंट था—"ये बदमाशी नहीं, शिष्टाचार सिखाने की क्लास थी।"

यहां तक कि खुद कहानीकार ने भी माना—"मैं ऐसा बिना वजह नहीं करता, लेकिन ऐसे ऐंठू लोगों को सीख देना जरूरी है।" कई लोगों का मानना था कि आजकल के बच्चों में तमीज की बहुत कमी हो गई है और ऐसे मौके पर समाज को आगे आकर 'शर्मिंदगी' का इस्तेमाल करना चाहिए। एक कमेंट में लिखा था, "समाज को ऐसे लोगों को शर्मिंदा करना आना चाहिए, तभी सबक मिलेगा।"

भारतीय नजरिए से: क्या हमारे यहां भी होता है ऐसा?

अब सोचिए, ये घटना भारत में होती तो क्या होता? एक भारतीय यूज़र ने अपनी कहानी शेयर की—"मैं रोज़ लोकल ट्रेन से ऑफिस जाता हूं। एक बार एक स्कूल के लड़के ने तीन सीटों पर कब्जा किया था, किसी ने कुछ नहीं कहा। मैंने उसके बैग को ट्रेन से बाहर प्लेटफॉर्म पर फेंक दिया। लड़का भागकर बैग लेने गया और ट्रेन छूट गई, उसे स्कूल भी देर हो गई!"

हमारे यहां भी ट्रेन, मेट्रो या बस में सीट कब्जाने वालों की कमी नहीं है। कई बार लोग चुप रहते हैं, लेकिन कई बार कोई आगे बढ़कर सबक सिखा देता है। और जब कोई ऐसा करता है, तो बाकी यात्रियों का मन ही गदगद हो जाता है।

निष्कर्ष: 'सीट हीरो' की जरूरत हर समाज में

इस पूरी घटना से एक बात साफ है—अगर कोई शरारती छोरा या लड़की सार्वजनिक जगहों पर बदतमीज़ी करे, तो कभी-कभी उन्हें सख्ती से सबक सिखाना पड़ता है। यह बदमाशी नहीं, बल्कि समाज सेवा है। जैसा एक कमेंट में कहा गया—"कुछ लोग तभी सुधरते हैं जब उन्हें अपने से बड़ा 'बदमाश' मिल जाए।" और सच भी है—हर समाज में ऐसे 'सीट हीरो' की ज़रूरत है, जो बेबाकी से बोल सके—"या तो तमीज से रहो, या फिर सीख लो!"

तो अगली बार अगर आप भी ऐसी किसी मेट्रो या बस में सफर करें, और कोई अपनी ऐंठ में दूसरों का हक मार रहा हो, तो याद रखिए—जरूरत पड़े तो आप भी 'सीट हीरो' बन सकते हैं!

क्या आपके साथ भी कभी ऐसी कोई घटना हुई है? नीचे कमेंट में जरूर बताइए, और इस पोस्ट को शेयर करें ताकि सबको तमीज का असली मतलब पता चले!


मूल रेडिट पोस्ट: Dickish kid doesn't give up train seat so I make him