मकान मालिक की चालाकी पर भरी पड़ी किराएदार की छोटी-सी बदला कहानी
क्या आपने कभी ऐसे मकान मालिक से पाला पड़ा है, जो फोन उठाने में आलसी और शिकायतों को सुनकर भी ‘हाँ-हाँ’ करता रहे, पर असल में कुछ करे ही नहीं? सोचिए, सर्दी के मौसम में घर में हीटर खराब है और मकान मालिक ‘समझ तो रहा हूँ जी, करवाता हूँ’ कहकर टाल देता है। ऐसे में गुस्सा तो किसी का भी सातवें आसमान पर पहुँचेगा!
आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं एक ऐसे किराएदार की कहानी, जिसने अपने मकान मालिक की लापरवाही का जवाब कुछ अलग ही अंदाज में दिया। इस कहानी में न गुस्से का कोई बवंडर है, न ही कोर्ट-कचहरी की धमकी—बस है तो एक छोटी-सी, चुटीली बदले की चाल, जिसे पढ़कर आपके चेहरे पर भी मुस्कान आ जाएगी।
जब मकान मालिक बना ‘कान पर जूं न रेंगने’ वाला
हमारे कहानी के नायक हैं एक आम युवक, जो एक छोटे से फ्लैट में रहते थे। उनके मकान मालिक वही ठेठ टाइप के, जो शिकायत सुनकर भी ‘अरे भाई, अभी देखता हूँ’ कहकर टाल जाते थे। कभी पाइप लाइन खराब, कभी हीटर बंद, तो कभी दीवारों पर सीलन—मगर मकान मालिक सिर्फ फोन पर ‘जी-जी’ करते और फिर गायब।
एक बार तो सर्दियों में पूरा महीना हीटर खराब रहा। सोचिए, दिल्ली या लखनऊ जैसी सर्दी में बिना हीटर के रहना! आखिरकार, परेशान होकर हमारे साहब ने नया घर ढूंढ़ लिया और मकान मालिक को नोटिस दे दिया।
बदले की छोटी-सी मगर जिंदादिल चाल
अब असली मजा यहीं से शुरू होता है। जाने से एक हफ्ता पहले, मकान मालिक ने किराएदार से कहा, "भैया, एक फोटोग्राफर भेज रहा हूँ, ताकि फ्लैट की तस्वीरें क्लिक करके नए किराएदार ढूंढ़ सकूं।"
अब हमारे नायक ने सोचा, "चलो, अब तो जाने ही वाला हूँ, थोड़ा मजा लिया जाए!" उन्होंने क्या किया? ड्राइंग रूम के सारे सोफा, कुर्सियाँ, टेबल वगैरह, जो दीवार से सटी थीं, उन्हें 8 इंच अंदर की ओर खिसका दिया। फ्लैट वैसे ही छोटा था, अब और भी ‘कंजेस्टेड’ दिखने लगा। फोटोग्राफर आया, तस्वीरें खींची, और मकान मालिक ने उन्हीं तस्वीरों को विज्ञापन में चिपका दिया—"फ्लैट उपलब्ध है, जल्दी बुक करें!"
मगर हुआ क्या? एक महीना बीत गया, कोई किराएदार नहीं मिला! आखिर कौन रहना चाहेगा उस 'डिब्बा' जैसे फ्लैट में, जहाँ चलने की भी जगह न हो?
कमेंट्स में छुपी हंसी और तंज
रेडिट पर आई इस कहानी को पढ़कर भारतीय पाठकों का भी दिल खुश हो जाता। एक कमेंट में किसी ने लिखा, "जितनी चालाकी से फर्नीचर खिसकाया, उतनी ही चालाकी से मकान मालिक ने भी अनदेखी की थी।" एक और पाठक ने मजाक में कहा, "आठ इंच का कमाल—ये पहली बार है जब कोई आदमी 8 इंच का इस्तेमाल कुछ छोटा दिखाने के लिए कर रहा है!"
कुछ ने तो भौतिकी (फिजिक्स) का तड़का भी लगा दिया—"फर्नीचर को केंद्र में लाने से कमरे की ‘ग्रैविटी’ ही बढ़ गई!" किसी ने तो यहाँ तक लिख दिया, "छोटे कमरे में वक्त भी धीरे चलता है!" एक पाठक ने तो गुदगुदाते हुए कहा, "ये फ्लैट तो माहवारी के दिनों में क्रैम्पिंग जैसा बन गया!"
तो वहीं, किसी ने ये भी लिखा कि "शायद ये ‘बदला’ अगले किराएदार के लिए भला ही हुआ, नहीं तो वो भी इसी झंझट में फंस जाता।"
भारतीय संदर्भ में क्यों है ये कहानी खास
अगर आप भी कभी मेट्रो शहरों या छोटे कस्बों में किराए पर रहे हैं, तो ये कहानी आपके दिल को छू जाएगी। हमारे देश में ‘मकान मालिक बनाम किराएदार’ की लड़ाई तो पुरानी है—चाहे वो बिजली के बिल का झगड़ा हो, पानी की मोटर का, या फिर डिपॉजिट लौटाने का।
यहाँ किराएदारों को अक्सर ‘मेहमान’ समझा जाता है, और मकान मालिक खुद को ‘राजा’। मगर इस कहानी में किराएदार ने बिना लड़ाई, बिना ऊँची आवाज़ के, बस एक छोटी सी चालाकी से मकान मालिक को उसका असली आईना दिखा दिया।
दिलचस्प बात ये भी है कि मकान मालिक ने एक बार भी तस्वीरें ठीक से देखीं नहीं—अगर ध्यान देते तो शायद फौरन समझ जाते कि कुछ गड़बड़ है।
आपकी राय क्या है?
तो दोस्तों, अगली बार जब आपको लगे कि आपके मकान मालिक ने हद पार कर दी है, तो याद रखिए—बदला लेने के लिए हमेशा बड़े-बड़े हथकंडों की ज़रूरत नहीं। कभी-कभी 8 इंच की चाल भी किसी को महीनों तक परेशान कर सकती है!
क्या आपके साथ भी कभी मकान मालिक या किराएदार की कोई मजेदार घटना हुई है? नीचे कमेंट में जरूर बताइए। और हाँ, इस कहानी को अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें—शायद किसी को इससे नई प्रेरणा मिल जाए!
मूल रेडिट पोस्ट: Apartment just got smaller