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“भैया, ज़रा साइड हो जाइए!” – होटल रिसेप्शन की एक मज़ेदार दास्तान

शॉन गिलिस के प्रदर्शन का आनंद लेते हुए एक जीवंत कॉमेडी शो का दर्शक वर्ग।
कल रात के शॉन गिलिस के कॉमेडी शो का एक जीवंत क्षण, जहां "भाई-चारा" हास्य ने जोड़ियों और जिज्ञासु दर्शकों को आकर्षित किया। सिनेमाई माहौल उस रोमांच और अनोखे पात्रों को दर्शाता है जो ग्राहक सेवा को हर दिन एक साहसिक यात्रा बनाते हैं!

हमारे देश में तो कहावत है – ‘अतिथि देवो भवः’, लेकिन कभी-कभी अतिथि ऐसे आते हैं कि देवता भी माथा पकड़ लें! होटल रिसेप्शन जैसी जगह पर, जहां रोज़ नए-नए लोग आते-जाते हैं, वहां हर रोज़ कुछ न कुछ नया देखने-सुनने को मिल ही जाता है। आज मैं आपको ऐसी ही एक मज़ेदार और सोच में डालने वाली घटना सुनाने जा रही हूँ, जिसे पढ़कर आप भी सोचेंगे – “लोग कितना बढ़ा-चढ़ा कर अपनी अहमियत दिखाते हैं!”

होटल की एक आम शाम, लेकिन ग्राहक कुछ खास!

तो जनाब, बात यूँ है कि एक होटल में रिसेप्शन डेस्क पर दो कर्मचारी (यानि फ्रंट डेस्क वाले) काम कर रहे थे। उसी दिन पास के थिएटर में एक मशहूर कॉमेडियन Shane Gillis का शो था। अब हमारे यहाँ जैसे किसी बड़े सिंगर या कॉमेडियन का प्रोग्राम होता है, वैसे ही वहाँ भी लोगों की भीड़ उमड़ी थी। शो के बाद होटल में कई जोड़े और ग्रुप्स चेक-इन करने लगे।

कॉमेडियन के बारे में वहाँ के रिसेप्शनिस्ट का कहना था – “उनका ह्यूमर कुछ ज्यादा ही ‘भैयागिरी’ वाला है, जिसे सबको पसंद नहीं आता।” एक कर्मचारी की दोस्त ने तो यहाँ तक कहा था कि वो अपने ब्वॉयफ्रेंड से सिर्फ इसलिए ब्रेकअप कर बैठी, क्योंकि वो उसे Shane Gillis के “ओवरली सेक्सिस्ट” शो में ले गया था! सोचिए, कॉमेडी शो भी रिश्तों में दरार डाल सकता है!

“भैया, ज़रा हटिए!” – जब ‘ईगो’ ने ले ली एंट्री

अब असली किस्सा शुरू होता है। चेक-आउट का समय था, एक सज्जन रिसेप्शन के सामने खड़े थे, और कर्मचारी उनसे बातचीत कर रहा था। पीछे एक महिला लाइन में खड़ी थीं, जो उस समय थोड़ी हड़बड़ी में दिख रही थीं। फ्रंट डेस्क की दूसरी कर्मचारी (जिसका यहाँ जिक्र है) ने विनम्रता से उस पुरुष से कहा – “क्या आप थोड़ा साइड हो सकते हैं, ताकि मैं पीछे खड़ी मैडम की मदद कर सकूं?”

लेकिन भैया, साहब को तो जैसे कानों में रुई डाल दी गई थी! पहले तो उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, फिर जब दोबारा कहा गया, तो महाशय ने रिसेप्शनिस्ट को घूरा, मोबाइल पर नज़र गड़ाई और ऐसे खड़े रहे जैसे ज़मीन में पाँव गाड़ दिए हों। मानो कह रहे हों – “मैं तो यहीं रहूँगा, तुम जो कर लो!”

यहाँ पर रिसेप्शनिस्ट को भी समझ आ गया कि साहब किसी ‘ईगो ट्रिप’ पर हैं – यानी अपनी अहमियत का रौब दिखा रहे हैं। ऐसे लोग तो भारत में भी बहुत मिल जाते हैं – लाइन में घुसने वाले, बैंक में धक्का-मुक्की करने वाले, या मेट्रो में दूसरों को पीछे छोड़ने वाले!

ग्राहक सेवा और भारतीय संस्कृति – सब्र का इम्तिहान

इस पूरे मामले में कम्युनिटी के कई लोगों ने अपनी राय दी। एक ने लिखा – “क्यों न महिला को आवाज़ देकर बुला लिया जाता?” लेकिन रिसेप्शनिस्ट (ओपी) ने स्पष्ट किया – “साहब, वह पुरुष इतनी जगह घेर कर खड़े थे कि महिला को बुलाना ही असंभव था। क्या महिला को उनके ऊपर से झुककर बात करनी चाहिए थी?”

यह बात बिल्कुल सही है। हमारे यहाँ भी कई बार ऐसी स्थिति आ जाती है कि सामने वाले की वजह से दूसरों को असुविधा होती है, लेकिन कोई अपनी जगह छोड़ने को तैयार नहीं होता। किसी ने लिखा – “कभी-कभी सहकर्मी को ही इशारा कर देना चाहिए था कि भैया, ज़रा हटिए!” लेकिन ऐसी स्थिति में, जब सामने वाले की ‘अना’ आसमान छू रही हो, तो कर्मचारी भी क्या करे?

यहाँ तक कि किसी ने तो मज़ाकिया अंदाज़ में कहा – “ऐसे लोगों को देख कर तो लगता है, शायद ये उसी तरह के ‘ह्यूमर’ के फैन हैं, जिसमें दूसरों की बेइज्जती में ही खुशी मिलती है!” वैसे, भारतीय शादी-ब्याह में भी आपने देखा होगा – जब कोई लड़का पंडित जी के सामने से हटता ही नहीं, तो बाकी लोग बस इंतज़ार करते रह जाते हैं!

हास्य, ‘मर्दानगी’ और हमारी सोच

इस घटना से यह भी सोचने का मौका मिलता है कि जो लोग खुद को बहुत बड़ा समझते हैं, वे दूसरों को छोटी-छोटी बातों में भी तंग करने से नहीं चूकते। आजकल सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो खूब वायरल होते हैं – “अंकल जी लाइन में क्यों नहीं खड़े?”, “आंटी जी, सबको जल्दी है!” – और नीचे कमेंट्स में लोग हँसी का ठहाका लगाते हैं।

यहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ – एक कॉमेडी शो के बहाने आए साहब ने होटल के कर्मचारियों और बाकी मेहमानों के लिए छोटी-सी असुविधा को भी अपनी ‘शान’ का सवाल बना लिया। क्या यही है ‘मर्दानगी’ या ‘भैयागिरी’? शायद नहीं! असली मर्दानगी और संस्कार तो दूसरों के लिए जगह बनाने, सहयोग करने और विनम्रता दिखाने में है।

आप क्या सोचते हैं?

तो दोस्तों, क्या आपने भी कभी ऐसी स्थिति का सामना किया है, जब कोई अपनी ‘अना’ के कारण दूसरों को परेशानी में डाल दे? या ऑफिस, बैंक या शादी में ऐसी मजेदार घटनाएँ देखी हैं? अपने अनुभव कमेंट में जरूर लिखिए। आखिर, “होटल हो या हाट – हमें सबके लिए जगह बनानी चाहिए!”

अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो, तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और अगली बार रिसेप्शन पर खड़े हों, तो दूसरों के लिए भी थोड़ी सी जगह छोड़ना न भूलें – क्योंकि, “थोड़ी सी जगह, बहुत सा सुकून!”


मूल रेडिट पोस्ट: Can you please move?