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भैया, घड़ी मेरी सही है!' - दुकान बंद होने के बाद भी ग्राहक का ड्रामा

दुकानदार होना अपने आप में एक अनोखा अनुभव है - रोज़ नए-नए ग्राहक, उनकी अलग-अलग फरमाइशें और कभी-कभी ऐसे किस्से जिन पर हंसी भी आती है, और सिर भी पकड़ा जाता है। सोचिए, आपकी दुकान बंद होने का समय हो, आप पूरा दिन थककर बस ताला लगाने को हों, और तभी कोई महाशय आकर शीशे पर फोन चिपकाकर कहें - "भैया, मेरी घड़ी के हिसाब से अभी दो मिनट बाकी हैं!"

ग्राहक का टाइम, दुकानदार का दिमाग!

पिछले शनिवार, Reddit यूज़र u/DisastrousTarget5060 की दुकान पर ठीक ऐसा ही हुआ। साहब दुकान बंद हो चुकी थी, दरवाज़े पर ताला लग चुका था, लेकिन एक ग्राहक बाहर खड़े होकर अंदर आने की ज़िद करने लगा। दुकानदार ने साफ मना कर दिया, तो जनाब ने मोबाइल का टाइम दिखाकर कहा – "देखिए, अभी दो मिनट बाकी हैं!" लेकिन दुकानदार भी किस्से का हीरो कम न था, उसने दरवाज़ा नहीं खोला।

इस पर एक पाठक ने मज़ेदार कमेंट किया – "हर कोई खुद को कहानी का हीरो समझता है।" सच ही है, कुछ लोगों को लगता है कि पूरी दुकान उनके लिए ही चल रही है!

"साहब, घड़ी बदल दो!" – टाइम की जिद

अब कहानी में ट्विस्ट देखिए। अगले हफ्ते वही ग्राहक फिर आ धमका, इस बार पांच मिनट पहले। आते ही बोला – "आप लोग रोज़ जल्दी बंद कर देते हो!" जब दुकानदार ने बताया कि हर शनिवार वही समय है, तो ग्राहक बोला – "तो अपनी घड़ियां ठीक कर लो।" दुकानदार का जवाब दिल जीतने वाला था – "शायद आपको अपनी घड़ी ठीक करनी चाहिए!"

ऐसे मौके पर एक और पाठक ने लिखा – "यार, लोग बस अपनी सुविधा के हिसाब से दुकान खुलवाना चाहते हैं, ऐसे में दुकानदार बेचारा क्या करे? उसकी भी तो एक लाइफ होती है!"

दुकान का समय, ग्राहक का बहाना – किसकी घड़ी चले?

हमारे देश में भी ये नज़ारा आम है – कोई ग्राहक दुकान बंद होते ही आ धमकता है, "भैया, बस एक चीज़ चाहिए थी!" कभी-कभी तो लोग ताला लगते देख कर भी अंदर घुसने की कोशिश करते हैं। एक पाठक ने लिखा, "हमारी दुकान में तो हर सुबह कोई न कोई 15 मिनट पहले आकर दरवाज़ा बजाने लगता था, जैसे हमने उनके लिए ही दुकान खोली हो!"

एक और कमेंट था – "दुकान का टाइम दुकान की घड़ी से चलता है, न कि आपके मोबाइल या घड़ी से!" सच में, हर दुकान के सामने एक बड़ा सा समय लिखा होता है, फिर भी हर कोई अपनी घड़ी लेकर बहस करने पहुंच जाता है।

"Poor Planning On Your Part..." – आखिरी समय की खरीदारी

दुकानदारों की एक और बड़ी परेशानी – जो ग्राहक बंद होने से ठीक पहले आते हैं, और मानो दुनिया की सबसे ज़रूरी चीज़ खरीदने आए हों। एक कमेंट में लिखा – "भैया, अगर आपको इतनी ज़रूरत है तो थोड़ा पहले क्यों नहीं आए?"

एक और पाठक ने अपने अनुभव साझा किए – "मैंने भी कभी-कभी गलती से किसी दुकान में बंद होने के वक्त घुस गया था, लेकिन जैसे ही पता चला, तुरंत माफी मांगी और बाहर आ गया। पर कुछ लोग तो मानते ही नहीं!"

बहुत से दुकानदारों ने बताया कि वह अपनी दुकान की घड़ी को जानबूझकर 5 मिनट जल्दी सेट रखते हैं, ताकि समय पर सब बंद हो सके। जैसे किसी बार में 'लास्ट ऑर्डर' हमेशा 5 मिनट पहले बुलाते हैं, ताकि लोग समय से निकल जाएं।

ग्राहक बनें समझदार, दुकानदार की भी सुनें

हमारे समाज में अक्सर ग्राहक को ही 'राजा' मान लिया जाता है, लेकिन कभी-कभी दुकानदार की मजबूरी और थकान भी समझिए। एक पाठक ने लिखा – "हर किसी को जिंदगी में एक बार रिटेल या दुकान में काम करना चाहिए, तभी असली दर्द समझ आएगा।"

एक और पाठक ने मजेदार अंदाज में कहा – "भैया, अगर हर ग्राहक के हिसाब से घड़ी सेट करने लगे तो दुकान में 24 घंटे ताला कभी लगे ही न!"

निष्कर्ष: घड़ी की लड़ाई या समझदारी?

आखिर में, यह किस्सा हमें यही सिखाता है – दुकानदार भी इंसान है, उसकी भी सीमाएं हैं। ग्राहक का टाइम ज़रूरी है, लेकिन दुकान का टाइम भी ज़रूरी है। अगली बार जब आप दुकान के बंद होने के वक्त पहुंचें, तो दुकानदार की परेशानी भी समझें – शायद वो भी घर जाकर चाय पीना चाहता हो, या बच्चों के साथ वक्त बिताना चाहता हो।

आपका क्या अनुभव रहा है? कभी आप भी ऐसे 'लेट-लेट' पहुंचे हैं? या दुकान चलाते हुए आपको भी ऐसे ग्राहक मिले हैं? कमेंट में ज़रूर बताइए – और हां, अगली बार टाइम से शॉपिंग कीजिए, दुकानदार भी आपसे खुश रहेगा!


मूल रेडिट पोस्ट: I am not changing all the clocks in our store for you