बस से उतरने का संघर्ष: जब भीड़ ने रास्ता रोका, जवाब मिला मज़ेदार ताने में
अगर आपने कभी दिल्ली, मुंबई या किसी बड़े शहर में लोकल बस या मेट्रो पकड़ी है, तो यह कहानी आपके दिल के बहुत करीब लगेगी। जरा सोचिए—आप अपनी मंज़िल पर पहुँच चुके हैं, बस के दरवाज़े के पास खड़े हैं, बाहर निकलने का इंतज़ार कर रहे हैं। लेकिन जैसे ही दरवाज़ा खुलता है, बाहर खड़ी भीड़ ऐसे टूट पड़ती है जैसे दुकान में ताज़ा समोसे आ गए हों! न उतरने की जगह मिलती है, न चढ़ने वालों को कोई फिकर कि अंदर पहले किसी को बाहर निकलने देना भी जरूरी है।
भीड़भाड़ में फंसा मुसाफिर: आम समस्या, अनोखा जवाब
फिलाडेल्फिया (अमेरिका) की सड़कों पर चलती बस में ऐसी ही एक घटना Reddit यूज़र u/Either_Coconut के साथ घटी। वो बस से उतरना चाह रहे थे, लेकिन बाहर इंतज़ार कर रही भीड़ ने दरवाज़े पर कब्ज़ा जमा लिया। बेचारे मुसाफिर को रास्ता बनाते हुए बाएँ- दाएँ से टकराना पड़ा। बाईं ओर की महिला ने तो चुप्पी साध ली, मगर दाईं ओर वाली ने गुस्से में गाली दे डाली।
अब यहाँ अगर आप या मैं होते, तो शायद या तो चुपचाप निकल जाते या बहस करने लगते। लेकिन OP ने कमाल का ताना मारा—"क्या चाहती हो, मैं उड़ जाऊँ? मेरी झाड़ू तो अभी मरम्मत में है! अगर वो ठीक होती तो मुझे बस लेने की ज़रूरत ही नहीं थी।" बस, इतना सुनते ही भीड़ ठहाके लगाने लगी। गुस्साई महिला के चेहरे पर तो जैसे मिर्ची लग गई, बाकी सब मुस्कुरा रहे थे।
सार्वजनिक परिवहन में शिष्टाचार: क्या सच में कोई फॉलो करता है?
यह समस्या सिर्फ अमेरिका की नहीं, भारत के हर बड़े शहर में देखने को मिलती है। Reddit पर एक बस चालक ने लिखा, "मैं खुद चिल्ला कर कहता हूँ—पहले उतरने दो, फिर चढ़ो।" सोचिए, ड्राइवर को यह बोलना पड़े तो हमारी चेतना कहाँ है! एक और यूज़र ने लिखा, "मेट्रो हो या बस, सबसे बड़ा नियम है—पहले उतरने वालों को जगह दो। लेकिन भीड़ तो ऐसे टूटती है जैसे मुफ्त की बिरयानी बँट रही हो!"
दिल्ली मेट्रो में तो बाकायदा एनाउंसमेंट होता है—"कृपया पहले उतरने दें, फिर चढ़ें।" लेकिन फिर भी लोग दरवाज़े पर ऐसे खड़े हो जाते हैं जैसे स्टेशन वहीं से उड़ जाएगा। Reddit पर एक यूज़र ने तो मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, "अगर उतारने वालों को पहले नहीं निकलने दिया, तो किसी को सीट भी नहीं मिलेगी!"
हंसी का हथियार: जब बात बने ना, ताना मारो!
भारत में भी कई लोग ऐसे तानों का इस्तेमाल करते हैं। जैसे—"भैया, अगर आप रास्ता देंगे तो मैं भी इंसान की तरह उतर जाऊँगा, वरना उड़ने-फिरने की शक्ति तो मेरे पास नहीं है।" Reddit पर एक कमेंट में लिखा था, "मैं अपने बैग को ऐसे फैला देता हूँ कि लोग मजबूरन मुझे निकलने देते हैं। कुछ लोग बुरा मान जाते हैं, लेकिन कम से कम उतरने का रास्ता तो मिल जाता है!"
एक और यूज़र ने लिखा, "मज़ाक में कहना पड़ता है—'अगर हम उतरेंगे नहीं, तो आप चढ़ेंगे कहाँ?' ऐसे ताने माहौल को हल्का भी कर देते हैं और कई बार भीड़ खुद-ब-खुद रास्ता दे देती है।" OP ने भी यही कहा—"आजकल लोगों के मूड का क्या भरोसा! बहस करने से अच्छा है, हल्का-फुल्का मज़ाक कर लो, कम से कम बाकी लोग तो हंस पड़ेंगे।"
क्या भारत में भी ऐसी 'झाड़ू' जुगाड़ काम करती है?
अगर आप मुंबई लोकल, दिल्ली मेट्रो या किसी भी भीड़-भाड़ वाली बस में सफर करते हैं, तो OP की तर्ज़ पर ताना मारना कभी-कभी बहुत काम आ सकता है। बस थोड़ा सा हास्य, थोड़ा सा धैर्य और बाकी आपके जिगर पर है। वैसे, Reddit पर एक मजेदार कमेंट मिला—"मोटा होने का एक फायदा है, लोग चाहें या न चाहें, मुझे निकलना ही है, वरना मेरी 'अपराहम्य शक्ति' उन्हें पीछे धकेल देगी!"
कई बार तो लोग जान-बूझकर रास्ता रोकते हैं, जैसे उन्हें लगता है पूरी बस उन्हीं के लिए आई है—यहां इसे 'Main Character Syndrome' बोला गया। भारत में इसे 'अपना ही बाप का बस/ट्रेन समझना' कह सकते हैं!
निष्कर्ष: हंसी, ताने और थोड़ा-सा सब्र—यही है सफर का असली मज़ा
तो अगली बार जब आप बस या मेट्रो से उतर रहे हों और दरवाज़े पर भीड़ लगी हो, तो घबराएं नहीं। थोड़ा सा ताना, थोड़ा सा हंसी का तड़का और बाकी सब्र—यही मंत्र है। याद रखिए, पब्लिक ट्रांसपोर्ट सबका है, और शिष्टाचार सबको निभाना चाहिए। क्या आपके साथ भी ऐसा कुछ हुआ है? या आपके पास भी कोई मज़ेदार ताना है? नीचे कमेंट में ज़रूर बताएं—शायद अगली बार वही ताना किसी की भीड़ में मुस्कान बिखेर दे।
आखिरकार, सफर में हंसी और सीख दोनों जरूरी हैं—वरना बस के सफर में रोज़ाना की 'भीड़-भाड़' कब 'भीड़-भाड़' से 'खुशहाली' बन जाए, कौन जाने!
मूल रेडिट पोस्ट: Block me from leaving the bus? Here, have some snark!