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बॉस ने निकाला 'तेज़' गाड़ी चलाने पर, फिर बोला दफ्तर लौटो - कर्मचारी ने लिया मज़ेदार बदला!

15 किमी/घंटा की गति से ड्राइवर को जिला कार्यालय में गुस्साए बॉस का सामना करना पड़ता है।
एक ड्राइवर और गुस्साए बॉस के बीच तनावपूर्ण क्षण का यथार्थवादी चित्रण, जो मामूली गति के लिए नौकरी से निकालने की बेवकूफी को उजागर करता है। यह छवि कार्यस्थल के संघर्षों और दुर्भावनापूर्ण अनुपालन के अनपेक्षित मोड़ों का सार प्रस्तुत करती है।

क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि किसी छोटे से ग़लतफ़हमी पर बॉस ने आपको डाँट-फटकार लगा दी हो? और फिर आप ऐसे बदला लें कि बॉस खुद शर्मिंदा हो जाए! आज की कहानी कुछ ऐसी ही है – एक नौजवान कर्मचारी, गुस्सैल बॉस और बदले की वो 'मलाईदार' मिठास जो सबको मुस्कुरा दे।

जंगल की आग, सरकारी नौकरी और तेज़ गाड़ी का झमेला

साल 1980 के आख़िर की बात है, कनाडा के घने जंगलों में आग लगी थी। हमारे नायक, जो उस समय महज़ 19 साल के थे, ने Ministry of Natural Resources (सरकारी वन विभाग) में नौकरी पकड़ी। काम था – जंगल की आग बुझाने वाली टीम को ज़रूरी सामान और लोग पहुँचाना। तनख्वाह भी अच्छी, और घंटों की कोई लिमिट नहीं थी – जैसे भारत में सरकारी ड्राइवरों को कभी-कभी मिल जाती है।

अब कहानी में ट्विस्ट देखिए – एक दिन उन्हें हेलिकॉप्टर लैंडिंग साइट से 'फायर बॉस' (मुख्य अधिकारी) और उसकी टीम को बेस कैंप तक छोड़ना था। रास्ता इतना उबड़-खाबड़, जैसे बिहार या छत्तीसगढ़ के गाँवों की कच्ची सड़कें। गाड़ी 15 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चला रहे थे, फिर भी एक गहरे गड्ढे में गाड़ी हिल गई। फायर बॉस तो जैसे बारूद बन गया – "ये लड़के कभी सुधरेंगे नहीं! तेज़ गाड़ी चलाते हो, कोई इज्जत ही नहीं!" पाँच मिनट की डांट-फटकार के बाद जैसे ही बेस कैंप पहुँचे, बॉस ने फिल्मी अंदाज में चिल्लाकर कहा, "निकालो इसको नौकरी से! सीधे जिला दफ्तर जाओ और फॉर्मेलिटी पूरी करो!"

'मालिशियस कंप्लायंस' – जब बॉस के आदेश को ही बना दिया हथियार

अब हमारे नायक ने भी सोच लिया – 'ठीक है साहब, जैसा आप कहें!'

अब अगर 15 किमी/घंटा तेज़ है, तो फिर गाड़ी की स्पीड रखी केवल उतनी जितनी बिना एक्सिलरेटर दबाए अपने आप चलती है – यानी 7-8 किमी/घंटा! सोचिए, जंगल के बीचों-बीच, 22 घंटे लगे केवल पहली पक्की सड़क तक पहुँचने में! रास्ते में दो पेट्रोल के कनस्तर भी साथ लिए थे – आखिर इतनी लंबी यात्रा में गाड़ी कहीं बंद न हो जाए। फिर जैसे-तैसे ऑफिस पहुँचे, अपनी फाइनल सैलरी ली और करीब $300 (करीब 25,000 रुपये) एक्स्ट्रा मिल गए। बॉस की गलती ने जेब भी भर दी, समय भी काट दिया!

किस्मत का खेल – नया बॉस, पुराना बॉस और 'जले पर नमक'

अब कहानी में असली मज़ा यहीं से शुरू होता है। जब यह कर्मचारी दफ्तर पहुँचा, वहाँ उसकी मुलाकात 'क्रू बॉस' (CB) से हुई – वही जो पहले उसे ट्रेनिंग देता था। संयोग देखिए, उसके क्रू में एक लड़का घायल हो गया था और उसे तुरंत नए सदस्य की जरूरत थी। पुराने जान-पहचान के चलते हमारे नायक को सेकंड चांस मिल गया – इस बार जंगल की आग बुझाने वाली टीम में।

मज़ेदार बात ये कि अगले ही हफ्ते वही टीम, उसी आग के लिए पहुँची, जहाँ से बॉस ने निकाल दिया था। और CB, फायर बॉस का जिगरी दोस्त निकला! अब फायर बॉस का चेहरा देखना बनता था – जब उसने देखा कि जिसे उसने निकाला, वही अब नए क्रू के साथ उसके सामने है। Reddit पर एक कमेंटेटर ने तो लिखा – "उसका चेहरा जैसे गुस्से में गुलाबी से लाल और फिर बैंगनी हो गया!" (भारत में कहते हैं – 'चेहरा गुस्से में टमाटर हो गया!')

CB ने भी खूब मसाला लगाया – हर बार कर्मचारी को ऐसी जगह बिठाता कि फायर बॉस की नजर सबसे पहले उसी पर पड़े। टीम के बाकी सदस्य भी इस मज़ेदार बदले का लुत्फ उठा रहे थे। एक Reddit यूज़र ने तो बढ़िया लिखा, "कभी-कभी ऐसे छोटे-छोटे बदले ही मन को असली तसल्ली देते हैं!"

कर्मचारियों की दुनिया और हमारे अनुभव

अगर भारतीय दफ्तरों की बात करें, तो ऐसे बॉस मिलना कोई अजूबा नहीं। आपको भी कभी ड्राइवर से 'धीमे चलाओ', 'तेज़ चलाओ', 'सीधा नहीं गाड़ी चला सकते?' जैसी डांट सुनने को मिली होगी। लेकिन यहाँ जिस अंदाज में कर्मचारी ने 'मालिशियस कंप्लायंस' दिखाई – यानी बॉस के आदेश का इतना 'पालन' कि बॉस खुद पछताए – वो काबिले-गौर है। Reddit पर भी कई लोगों ने लिखा कि ऐसे बॉस हर जगह होते हैं – चाहे कनाडा हो या भारत। किसी ने मज़ाक में कहा, "अगर इंटरनेशनल इंग्लिश टेस्ट में कनाडियन ऑडियो आ गया तो गड़बड़ हो जाएगी!" – जैसे हमारे यहाँ इंग्लिश स्पीकिंग कोचिंग में अलग-अलग एक्सेंट की टेंशन रहती है।

एक और यूज़र ने लिखा, "बॉस ने खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी – जिसको निकाला, उसी को फिर सामने देखना पड़ा!" भारत में भी कहते हैं, 'जैसी करनी, वैसी भरनी!'

निष्कर्ष: बदला भी कभी-कभी दिल को सुकून देता है

इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि कभी-कभी बदले की भावना बुरी नहीं होती – खासकर जब बात 'इंसाफ' की हो। बॉस का गलत व्यवहार, कर्मचारी की समझदारी और किस्मत का खेल – तीनों ने मिलकर एक ऐसी कहानी बना दी जो सबको मुस्कुराने पर मजबूर कर दे।

तो दोस्तों, आपके साथ भी कभी ऐसा कुछ हुआ हो, या किसी बॉस ने बिना बात के डांट लगाई हो, तो नीचे कमेंट में ज़रूर शेयर करें। और हाँ, अगली बार जब बॉस बोले – "धीमे चलाओ", तो सोच-समझ के चलाना... हो सकता है, आपकी भी कोई मज़ेदार कहानी बन जाए!


मूल रेडिट पोस्ट: Fire me for driving too fast at 15 kph then tell me to drive back the district office? You got it boss!!