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बॉस ने तरक्की रोकी, इंजीनियर ने कंपनी के पैसे पर सीखे हुनर और पा लिया दोगुना वेतन!

काम में कमतर आंके जाने के बाद करियर विकास और कौशल विकास पर विचार करता इंजीनियर।
एक फोटोरियलिस्टिक छवि, जिसमें एक इंजीनियर गहरे विचार में है, अपनी अनदेखी प्रतिभाओं और करियर उन्नति की यात्रा पर ध्यान दे रहा है, जब उन्होंने पहले की भूमिका में रुकावट महसूस की।

आजकल की नौकरी में वफादारी किसकी, कंपनी की या कर्मचारी की? क्या मेहनत और लगन ही तरक्की का रास्ता है, या 'जुगाड़' और 'सही वक्त' पर कदम उठाना भी ज़रूरी है? आज की कहानी एक ऐसे इंजीनियर की है, जिसने अपने बॉस द्वारा लगातार अनदेखा किए जाने पर कंपनी के पैसों से ही अपने लिए सुनहरा भविष्य बना लिया!

इंजीनियर साहब ने अपने हुनर और दिमाग से ऐसा खेल किया कि बॉस के होश उड़ गए। चलिए, जानते हैं कैसे एक आम-सी दिखने वाली नौकरी, समझदारी और सही मौके पर लिए गए फैसले से ज़िंदगी बदल सकती है।

जब मेहनत का फल नहीं मिला, तो...

शुरुआत होती है एक डिफेंस कंपनी से, जहाँ ये इंजीनियर चार साल तक नौकरी करता रहा। हर साल वही 2-4% का मामूली इंक्रीमेंट, प्रमोशन के लिए लंबा इंतजार – कुछ वैसा ही जैसा भारत की सरकारी नौकरियों में अक्सर देखने को मिलता है।

एक दिन इंजीनियर ने सोचा कि अब आगे बढ़ना है, तो मैनेजमेंट ट्रैक पकड़ना पड़ेगा। उसने प्रोजेक्ट इंजीनियर की जिम्मेदारी ली, टीम को संभाला – 4 इंजीनियर्स, 1 डिजाइनर, 2 एडमिन – और साल भर में बंपर काम किया। टीम ने कंपनी के लिए नया सिस्टम बनाया, करोड़ों की बिक्री करवाई, पेटेंट दिलवाया, यहाँ तक कि USAF ने उन्हें अवॉर्ड के लिए नामांकित किया!

पर जब सालाना परफॉर्मेंस रिव्यू आया, तो बॉस ने फिर वही 3% का झुनझुना पकड़ाया, जबकि उसी की टीम का एक सदस्य (जिसका मैनेजर कोई और था) प्रमोशन और मोटी सैलरी के साथ आगे बढ़ गया। सोचिए, क्या गुजरती होगी ऐसे कर्मठ कर्मचारी पर!

'क्वाइट क्विटिंग' – जब दिल तंग आ जाए

इंजीनियर ने सोचा, "अब बहुत हो गया!" उसने 'क्वाइट क्विटिंग' यानी चुपचाप नौकरी करना शुरू किया – मतलब जितना काम जरूरी, उतना ही किया, ओवरटाइम बंद, ट्रैवल बंद, छुट्टियाँ फुल इस्तेमाल, और दिमागी सुकून वापस पा लिया।

ऐसा करना भारत में भी कई लोग करते हैं – जब ऑफिस पॉलिटिक्स या बॉस की नाइंसाफी हद से बढ़ जाए, तो 'अपना काम करो, बाकी जाने दो' वाला रवैया अपना लेते हैं।

इसी दौरान, इंजीनियर ने कंपनी के एजुकेशन बजट का पूरा फायदा उठाया – FEA और 3D मॉडलिंग जैसी टेक्निकल क्लासेज़ कीं, जो कंपनी रेइम्बर्स तो करती थी, पर कोई बंधन नहीं था कि कितने साल कंपनी में रहना है।

स्किल्स सीखे, रिज़्यूम चमकाया, नई नौकरी में धमाल!

जैसे ही क्लासेज़ खत्म हुईं, इंजीनियर ने चुपचाप बाहरी कंपनियों में एप्लाई करना शुरू कर दिया – और जल्द ही उसे ऐसी नौकरी मिली, जिसका बेस वेतन उसकी पुरानी सैलरी से दोगुना था, ऊपर से ओवरटाइम अलग!

जैसे ही उसने रिज़ाइन दिया, बॉस के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ गईं – "हमने तुम्हारे लिए ट्रेनिंग में पैसे खर्च किए, अब तुम हमें छोड़ रहे हो?" बॉस ने वेतन मिलाने की कोशिश की, लेकिन नई कंपनी इतनी ज्यादा दे रही थी कि बॉस खुद बोल पड़ा, "ये तो मुझसे भी ज्यादा है!"

यहाँ एक कमेंट याद आता है – "कंपनी ने खुद की कब्र खोद ली, न कर्मचारी को सम्मान दिया, न सही इंक्रीमेंट। अब पछताए क्या जब चिड़िया चुग गई खेत!"

क्या सीखें? वफादारी या समझदारी?

इस कहानी पर Reddit कम्युनिटी में खूब चर्चाएँ हुईं। एक ने लिखा, "कंपनी हमेशा वफादारी माँगती है, लेकिन बदले में कर्मचारी को क्या मिलता है? आखिरकार, सफलता की सबसे मीठी 'बदला' है!"

एक और मज़ेदार कमेंट था – "लॉयल्टी दो-तरफा सड़क है, अगर कंपनी सिर्फ एक तरफा चाहती है, तो वो लॉयल्टी नहीं 'कल्ट' है!"

भारतीय संदर्भ में भी यही सच है – कई दफा कंपनियाँ कर्मचारियों को 'परिवार' बोलती हैं, पर जब बोनस, प्रमोशन या सम्मान देने का वक्त आता है, तो बहाने बना देती हैं।

कई बार कंपनियाँ ट्रेनिंग के बदले बांड साइन करवाती हैं, लेकिन समझदार लोग शर्तें पढ़कर, सही मौके पर कंपनी को 'टाटा' बोल ही देते हैं। एक पाठक ने लिखा – "अगर कंपनी आपको ट्रेनिंग के बाद रोकना चाहती है, तो नई कंपनी से बात कीजिए, कई बार वो पेनल्टी भी चुका देती है!"

आख़िर में – अपनी क़ीमत पहचानिए!

इस कहानी से साफ है – खुद की काबिलियत और मेहनत की क़ीमत खुद पहचानिए, और मौका मिले तो आगे बढ़ने से कभी न डरिए।

कंपनियाँ बदलती रहती हैं, लेकिन हुनर, अनुभव और आत्मसम्मान हमेशा साथ रहते हैं। जैसा एक और कमेंट में कहा गया, "कर्मचारी को इतना अच्छा ट्रेन करो कि वो कहीं भी चला जाए, लेकिन इतना अच्छा व्यवहार करो कि वो कहीं न जाए।"

दोस्तों, क्या आपने भी कभी ऑफिस में ऐसी राजनीति या नाइंसाफी झेली है? आपने क्या किया? अपने अनुभव नीचे कमेंट में ज़रूर साझा करें – और हाँ, अपने हक के लिए आवाज़ उठाना कभी न भूलें!


मूल रेडिट पोस्ट: My boss refused to promote me or give me reasonable raises so I developed skills on the company dime that got me a >100% raise at another company.