बॉस का 'सिर्फ ब्लैक एंड व्हाइट' प्रिंटिंग वाला फरमान, और कर्मचारी की चालाकी!
ऑफिस की दुनिया में 'ऊपर से आदेश, नीचे से जुगाड़' वाली कहावत कितनी सटीक बैठती है! कभी-कभी बॉस लोग ऐसे फरमान जारी कर देते हैं कि आम कर्मचारी तो सिर पकड़ ले। लेकिन, जब कर्मचारी भी अपनी अक्ल लगाता है, तब ऐसे किस्से जन्म लेते हैं जिन पर हँसी भी आती है, और सीख भी मिलती है।
आज की कहानी एक ऐसे ही छोटे ऑफिस की है, जहाँ बॉस का पैसा बचाने का जूनून और कर्मचारी की 'मैलिशियस कम्प्लायंस'—यानि 'आदेश का बेमन से पालन'—दोनों आमने-सामने आ गए। तो चलिए, जानते हैं ये पूरा किस्सा...
बॉस का नया तुगलकी फरमान: रंगीन प्रिंटिंग 'केवल' अफसरों के लिए
कहानी के नायक एक छोटे ऑफिस में काम करते थे, जहाँ बस एक ही चलती-फिरती रंगीन प्रिंटर थी। लेकिन उनकी बॉस, जिनका नाम हम 'मेम साहिबा' रख सकते हैं, खर्चे से इतनी परेशान थीं कि उन्होंने फरमान जारी कर दिया—"अब से सिर्फ ब्लैक एंड व्हाइट में प्रिंटिंग होगी, रंगीन प्रिंटिंग सिर्फ अफसरों के लिए है!"
सोचिए, जैसे किसी हिंदी फिल्म में सासू माँ कहती हैं—"खाना बनाओ, लेकिन घी-तेल मत डालना!" ऑफिस के बाकी लोग तो चुपचाप मान गए, पर नायक की मुश्किल ये थी कि बॉस खुद उनसे रंगीन प्रजेंटेशन और फ्लायर्स बनवाती थीं। हर बार कहतीं—"हमारे कंपनी के लोगो में लाल और नीला रंग दमकना चाहिए!"
नायक ने नियम याद दिलाया, तो बॉस बोलीं—"ब्लैक एंड व्हाइट में ही प्रिंट कर दो, बाद में रंग डाल लूँगी!" (जैसे पुराने जमाने में पोस्टकार्ड पर रंग भरने के लिए रंगीन पेंसिलें चलती थीं!)
आदेश का पालन, लेकिन 'मैलिशियस' अंदाज़ में
अब देखिए, कर्मचारी ने भी नियम का पालन पूरी ईमानदारी से किया। हर चार्ट, हर ग्राफ, हर फोटो—सबकुछ ब्लैक एंड व्हाइट! बॉस को भी वही थमाया। अगले दिन, जब बॉस ने अपने 'महत्वपूर्ण' प्रजेंटेशन कॉर्पोरेट मीटिंग में बांटा, तो सबने समझा मानो किसी ने 90 के दशक के फैक्स मशीन से प्रिंट निकालकर थमा दिया हो—धुंधला सा, रंगहीन, बिल्कुल बेरंग ज़िंदगी जैसा!
बॉस मीटिंग से लौटते ही गुस्से में ऑफिस में घुसीं—"तुमने रंगीन में क्यों नहीं निकाला?"
कर्मचारी ने भी मासूमियत से जवाब दिया—"अफसरों के लिए ही तो रंगीन प्रिंटिंग थी, मैं तो नियम का पालन कर रहा था!"
यह सुनकर बॉस का चेहरा देखने लायक था—'आ बैल मुझे मार!' वाली हालत हो गई।
जब बॉस को मिली 'सबक की स्याही'
इस घटना के बाद बॉस को एहसास हुआ कि सिर्फ आदेश देने से काम नहीं चलता, कभी-कभी नियम खुद पर भी भारी पड़ जाते हैं। मजेदार बात ये कि अगली ही हफ्ते ऑफिस में एकदम चमचमाती नई रंगीन प्रिंटर आ गई!
रेडिट पर इस किस्से पर लोगों ने खूब मजेदार टिप्पणियाँ कीं। एक यूज़र ने तंज कसा—"बजट तो तब ही आता है जब बॉस की खुद की नाक कटती है!" हमारे यहाँ भी कहते हैं—'जब तक खुद पर ना पड़े, तब तक नियम सख्त ही रहते हैं!'
एक और कमेंट में पूछा गया—"बॉस बाद में रंग कैसे भरतीं? क्रेयॉन से?" सोचिए, ऑफिस के प्रजेंटेशन में बॉस क्रेयॉन से रंग भर रही हों, क्या दृश्य होगा!
कुछ पाठकों को यह भी मजेदार लगा कि रंगीन प्रिंटर पहले से थी, फिर नई क्यों आई? भाई, जब बॉस की प्रतिष्ठा दाँव पर हो, तो दो प्रिंटर भी कम हैं!
हिंदी ऑफिसों में ऐसे फरमान आम हैं!
अगर आप कभी सरकारी दफ्तर या प्राइवेट कंपनी में काम कर चुके हैं, तो आपको ऐसे आदेश खूब सुनने को मिलेंगे—"पेपर बचाओ, बिजली बचाओ, रंगीन प्रिंटिंग मत करो, सिर्फ चाय की पत्ती कम डालो!" लेकिन जब ऊपर वाले खुद ही अपने आदेशों में फँस जाएँ, तब असली मजा आता है।
यह किस्सा हमें सिखाता है कि कभी-कभी आदेश का पालन भी इतनी चालाकी से करना चाहिए कि बॉस को ही अपनी गलती का एहसास हो जाए। इसे ही अंग्रेज़ी में 'मैलिशियस कम्प्लायंस' कहते हैं, और हिंदी में कह सकते हैं—'नियम का ऐसा पालन कि नियम देने वाला ही पछता जाए!'
पाठकों से सवाल: क्या आपके साथ भी हुआ है ऐसा?
तो मित्रों, आपके ऑफिस में भी क्या कभी ऐसा कोई तुगलकी आदेश आया है? या आपने कभी अपने मैनेजर को उनकी ही बनाई बंदिशों में फँसते देखा है? अपने अनुभव नीचे कमेंट में जरूर लिखें—शायद आपकी कहानी भी अगली बार यहाँ दिखाई दे!
बड़े-बुजुर्ग कहते हैं—'नियम वही अच्छे, जो सब पर बराबर लागू हों!' अब देखना है, अगली बार आपके ऑफिस में कौन सा नया फरमान आता है, और आप उसे कैसे निभाते हैं?
मूल रेडिट पोस्ट: Only print in black and white? Sure thing