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बॉस की माइक्रोमैनेजमेंट का बदला – छोटी सी शरारत, बड़ी राहत!

एक नाटकीय चित्र जिसमें एक परेशान कर्मचारी सामाजिक कार्य के माहौल में सूक्ष्म प्रबंधक का सामना कर रहा है।
इस नाटकीय चित्रण में हम सूक्ष्म प्रबंधक के अधीन काम करने की चुनौतियों की पड़ताल करते हैं। नियंत्रण की गतिशीलता से तनाव स्पष्ट हो रहा है, जो कई लोगों के कार्यस्थल में सामना की जाने वाली चुनौतियों को उजागर करता है।

आजकल के ऑफिसों में एक बहुत ही आम समस्या है – माइक्रोमैनेजमेंट। आप सुबह से शाम तक मेहनत करते हैं, लेकिन आपका बॉस हर छोटी-बड़ी बात में नाक घुसेड़ता रहता है। सोचिए, अगर आपका बॉस हर वक्त आपके सिर पर सवार रहे, तो आपका क्या हाल होगा? अब एक ऐसी कहानी सुनिए, जिसमें एक कर्मचारी ने अपने माइक्रोमैनेजर बॉस को बड़े ही मज़ेदार और चालाक तरीके से उसकी ही दवा चखाई।

जब बॉस बना ‘सबका बाप’, तो कर्मचारी ने रच दी चाल

कहानी है एक सोशल वर्कर की, जिसका टीम लीडर – यानी उसकी बॉस – एकदम ‘परफेक्ट कंट्रोल फ्रीक’ थी। हिंदी में कहें तो, हर बात में “मैं ही जानूं, मैं ही बताऊँ” वाली। वैसे तो उनकी खुद की समझदारी भी बस एक खास फील्ड तक सीमित थी – NICU (नवजात देखभाल) सोशल वर्किंग। लेकिन फिर भी, बाकी कामों में भी अपनी टांग अड़ाने से बाज़ नहीं आती थीं।

समस्या ये थी कि बाकी टीम के लोग अपने-अपने काम में एक्सपर्ट थे, लेकिन बॉस साहिबा को हर किसी की रिपोर्ट चाहिए थी, हर छोटी बात पर सलाह देनी थी – चाहे वह सलाह कितनी भी बेकार या पुराने ज़माने की हो। और ऊपर से, उनकी दिनभर की मीटिंग्स और कॉल्स के चलते वे हमेशा व्यस्त रहती थीं।

बदला जो सबको भाया – ‘रिपोर्टिंग’ का महारथी अंदाज़

अब ज़रा सोचिए – जब कोई बार-बार आपकी मेहनत में टांग अड़ाए, तो दिल में थोड़ी चिढ़ तो आती ही है। हमारे नायक (या नायिका) ने सोचा कि क्यों न इसी चिढ़ का हल्का सा, मीठा बदला लिया जाए!

तो उन्होंने क्या किया? बॉस के सबसे बिज़ी टाइम पर, जब वो मीटिंग्स या राउंड्स में होतीं, तभी उन्हें कॉल करके, बहुत विस्तार से – एकदम पचास-पचास पॉइंट्स में – अपनी पूरी दिनभर की प्रगति बताने लगे। “ये केस ऐसे हैं, ये-ये दस्तावेज़ बनाए, फलां-फलां लोगों से बात की, आगे का प्लान ये है”—बिना किसी राय या सुझाव मांगे, बस चुपचाप रिपोर्ट दे दी।

और जब बॉस का मूड ज़्यादा ‘हेल्पफुल’ होता, तब तो दिन में कई बार यही अपडेट्स भेज देते! यानी बॉस के लिए ‘आ बैल मुझे मार’ वाली स्थिति। बॉस की अपनी ही बनाई ‘माइक्रोमैनेजमेंट’ की दीवार अब खुद उनके लिए जेल बन गई।

टीम की जीत – ‘प्यारी बदला’ से मिला सबको चैन

इस बदले का असर क्या हुआ? सबसे मज़ेदार बात ये थी कि जब कर्मचारी बॉस को इतने लंबे-लंबे अपडेट्स देने लगे, तो बॉस की खुद की मीटिंग्स और बाकी कामों में खलल पड़ने लगी। ऊपर से, जब बॉस अपडेट्स सुन रही होतीं, तब टीम के बाकी सदस्य चैन की सांस लेते – “चलो, आज थोड़ी देर के लिए बॉस का ध्यान हमारे ऊपर नहीं है!”

एक कमेंटेटर ने तो बिल्कुल सटीक कहा, “ये तो एक तीर से दो शिकार वाली बात हो गई – न सिर्फ खुद सुकून मिला, बल्कि बाकी टीम का भी भला हो गया!” यानी, जिस तरह से गाँव की चौपाल में कोई बुज़ुर्ग गपशप में उलझ जाए, तो बाकी सबको काम करने का मौका मिल जाता है।

दूसरे कमेंट में सलाह दी गई कि “अगर बदला लेना है, तो पूरी डिटेल में, जितनी लंबी कॉल हो सके, उतनी लंबी करो, और फिर उसके बाद एकदम धीमे-धीमे बोलो!” यानी जैसे क्लास में वो छात्र जो टीचर का टाइम बर्बाद करने के लिए हर सवाल का जवाब विस्तार से, धीरे-धीरे देता है।

सीख और अपनापन – जब बॉस बने ‘मुसीबत’, तो अपनाएं ये देसी जुगाड़

इस कहानी से हमें क्या सिखने को मिलता है? देखिए, भारतीय ऑफिसों में भी ऐसे ‘माइक्रोमैनेजर’ खूब मिलते हैं। वो जो हर मीटिंग में आपको “अपडेट दीजिए”, “कहाँ पहुँचे?”, “ये क्यों किया, वो क्यों नहीं किया?” वाले सवालों से परेशान कर देते हैं।

ऐसे में कभी-कभी हल्की सी शरारत – यानी ‘प्यारी बदला’ – भी जरूरी होती है, ताकि बॉस को भी उनकी ही दवाई चखाई जा सके। और हाँ, जैसे एक सलाहकार ने कहा – “हर अपडेट के बाद एक मेल भी भेज दो, ताकि सब कुछ रिकॉर्ड पर आ जाए!” ये टिप हमारे देश के सरकारी दफ्तरों में तो सोने पे सुहागा साबित हो सकती है।

निष्कर्ष: आपकी ऑफिस वाली कहानी क्या है?

तो दोस्तो, अगर आपके ऑफिस में भी ऐसा कोई ‘माइक्रोमैनेजर’ है, तो इस कहानी से जरूर कुछ सीखिए। थोड़ा मज़ाक, थोड़ा जुगाड़, और ढेर सारा धैर्य – यही है जीत का फॉर्मूला। वैसे, आपके पास भी ऐसी कोई मज़ेदार ऑफिस-कहानी हो, तो नीचे कमेंट में जरूर बताइए। आखिर, “सुख-दुख की साझेदारी ही तो असली टीम वर्क है!”

खुश रहिए, काम कीजिए – और अगर कभी बॉस परेशान करे, तो ‘प्यारी बदला’ देना मत भूलिए!


मूल रेडिट पोस्ट: The micromanager