बॉस के ‘नो फोन’ नियम की ऐसी तैसी! जब नियम खुद बॉस के गले पड़ गया
ऑफिस की दुनिया में कुछ नियम ऐसे होते हैं, जो सुनने में तो बड़े सख्त लगते हैं, लेकिन असल ज़िंदगी में जब इन्हें लागू किया जाता है, तो खुद बनाने वाले ही फंस जाते हैं। ऐसी ही एक कहानी है Reddit के एक यूज़र की, जिसने अपने बॉस के बनाए नियम को उसकी ही जुबान में जवाब दे दिया। पढ़िए, कैसे एक ‘नो फोन’ पॉलिसी ने पूरे ऑफिस का माहौल ही बदल दिया!
ऑफिस का सख्त फरमान – "कोई मोबाइल नहीं!"
सोचिए, आप सुबह-सुबह ऑफिस पहुंचे, चाय का कप भी पूरा नहीं हुआ और बॉस ने ऐलान कर दिया – "अब से कोई भी मोबाइल फोन डेस्क पर नहीं दिखना चाहिए। कोई बहाना नहीं, कोई अपवाद नहीं!" हमारे देश में वैसे भी बड़े-बड़े अफसरों के ऐसे फरमान आम बात हैं – "ऑफिस टाइम में मोबाइल नहीं!" – लेकिन जब ज़रूरत पड़ती है तो वही साहब खुद कॉल करने लगते हैं।
reddit यूज़र u/SilkPeachy की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। बॉस ने ट्रेनिंग के दौरान सबके सामने सख्त नियम बना दिया – "वर्किंग आवर्स में फोन बाहर नहीं आना चाहिए, कोई अपवाद नहीं!" सबने सोचा, चलो ठीक है, नियम तो नियम है। लेकिन असली मज़ा तो तब आया, जब एक हफ्ते बाद बॉस ने खुद तीन बार कॉल और मैसेज कर डाले!
नियम बना तोड़ने के लिए या निभाने के लिए?
अब ज़रा सोचिए, अगर भारत के किसी सरकारी दफ्तर में साहब ने मोबाइल बैन कर दिया हो, तो चपरासी से लेकर क्लर्क तक सब चोरी-छुपे स्टाफ़ वॉट्सऐप ग्रुप पर एक्टिव मिल जाएंगे। लेकिन हमारे कहानी के हीरो ने नियम का पूरा पालन किया। बॉस ने जब कॉल किया, तब भी फोन नहीं उठाया। आखिरकार ब्रेक के वक्त कॉल बैक किया और सीधे बोल दिया – "माफ़ कीजिए, मैं तो आपके 'नो फोन, नो एक्सेप्शन' नियम का पालन कर रहा था।"
यह सुनते ही बॉस का मूड बदल गया। अगले ही दिन से नियम गायब! अब न कोई सख्ती, न कोई रोक-टोक।
कमेंट्स में आई जनता की आवाज़ – असली ज्ञान और तजुर्बा
इस कहानी पर Reddit की जनता ने भी खूब मज़ेदार कमेंट्स किए, जिनमें हमारे ऑफिस कल्चर की झलक साफ दिखी। एक यूज़र ने लिखा, "ब्रेक में भी बॉस को कॉल बैक किया? ये तो काम के बाहर काम करना हो गया!" – बिल्कुल वही बात, जो हमारे यहां भी होती है – ब्रेक का मतलब, काम से फुर्सत!
एक और कमेंट बड़ा दमदार था, "अगर ऑफिस के काम के लिए फोन चाहिए, तो कंपनी खुद फोन दे, क्यों अपना पर्सनल फोन इस्तेमाल करें?" सोचिए, आजकल जब हर चीज़ के लिए OTP, मल्टी-फैक्टर ऑथेन्टिकेशन चाहिए, तब मोबाइल के बिना काम ही नहीं चलता। एक यूज़र ने लिखा, "मैं तो अपना फोन गाड़ी में छोड़ देता, शिफ्ट के बाद ही देखता।" और किसी ने तो यही कह दिया – "बॉस को भी नियम मानना चाहिए, नहीं तो ऐसे ही सबक सीखेंगे!"
किसी ने ये भी सलाह दी – "अगर ब्रेक पर वर्क कॉल आए, तो ब्रेक दोबारा शुरू करो!" ये बात कनाडा के लेबर लॉ में लिखी है, लेकिन हमारे यहां तो ब्रेक में भी बॉस का हुक्म चले, यही चलता है।
नियम जब खुद बॉस के लिए मुसीबत बन जाए...
हमारे देश में भी अकसर ऐसे नियम बना दिए जाते हैं, जो खुद बनाने वालों के लिए उल्टा पड़ जाते हैं। जैसे कि किसी स्कूल में मोबाइल बैन कर दो, लेकिन प्रिंसिपल खुद टीचर्स को कभी फोटो भेजने तो कभी OTP के लिए फोन यूज़ करने को कहते हैं। एक यूज़र ने मज़ेदार तंज कसा, "अगर फोन है तो गलत, और नहीं है तो भी गलत! बॉस की नज़र में आप कभी जीत नहीं सकते!"
इस कहानी की सबसे बड़ी सीख यही है – नियम बनाते वक्त ये सोचना चाहिए कि क्या खुद भी उस पर अमल कर पाएंगे? वरना, कर्मचारी तो मौका मिलते ही ‘नियम पालन’ की आड़ में बॉस को आईना दिखा देंगे!
निष्कर्ष – ऑफिस के नियम, हकीकत और हंसी-मज़ाक
इस Reddit पोस्ट ने एक बड़ी पुरानी कहावत याद दिला दी – "जैसा बोओगे, वैसा काटोगे!" जब बॉस ने खुद ही अपने बनाए नियम की वजह से परेशानी झेली, तब समझ आया कि नियम बनाना आसान है, निभाना मुश्किल। और कर्मचारी कभी-कभी नियमों का अक्षरश: पालन करके भी बॉस को अच्छा सबक सिखा सकते हैं।
तो अगली बार अगर आपके ऑफिस में कोई अजीब सा नियम आए, तो सोच-समझकर ही उसका पालन करें – क्या पता, बॉस को ही ‘उनकी जुबान’ में जवाब देना पड़ जाए!
आपके ऑफिस में भी ऐसे किस्से हुए हैं? या कभी आपने भी किसी नियम का ऐसा जवाब दिया हो? नीचे कमेंट में ज़रूर शेयर करें, ताकि सब मिलकर हंसी के ठहाके लगा सकें!
मूल रेडिट पोस्ट: No phones allowed, no exceptions