बॉस की छुट्टी में होटल का नाश्ता बन गया सिरदर्द!
कहते हैं, "जब बिल्ली घर से बाहर जाती है, तो चूहे नाचते हैं!" लेकिन होटल की दुनिया में तो हाल कुछ और ही हो जाता है। बॉस की छुट्टी होते ही, होटल का पूरा सिस्टम डगमगाने लगता है। आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं एक छोटे होटल के नाइट ऑडिटर की कहानी, जिसके हिस्से सुबह-सुबह का नाश्ता भी आ गया – और वो भी बिना किसी मदद के!
जब नाश्ते की जिम्मेदारी सिर पर आ गिरी
हमारे नायक (या कहें – बेचारे शिकार) होटल के नाइट ऑडिटर हैं, यानी वो शख्स जो रात की शिफ्ट में होटल के गेस्ट्स, बिलिंग और बाकी काम संभालता है। लेकिन यहाँ तो कहानी में ट्विस्ट है! होटल में 75 कमरे हैं, और सुबह 6:30 बजे नाश्ता शुरू करना पड़ता है। नाश्ते की अटेन्डेंट आती हैं 7 बजे के बाद, तो बाकी सारा झंझट नाइट ऑडिटर के सिर!
अब सोचिए, रात भर जागने के बाद, सुबह-सुबह नाश्ते की तैयारियाँ – और वो भी तब, जब जरूरी सामान ही गायब हो! पूरे हफ्ते से होटल में न ना दही है, ना सेब, ना केले, और ना ही Pam ऑयल (जिससे अंडे नहीं चिपकते)। ऊपर से रविवार तो जैसे आफत बन गया! साहब को आखिरकार अपने पति से Pam मंगवानी पड़ी, क्योंकि बिना उसके 10 मिनट तक एग ट्रे रगड़ना पड़ेगा – कौन झंझट करे?
"लोगों को शिकायत करने का पूरा अधिकार है!"
हमारे देश में भी अक्सर ऐसा होता है – अगर होटल में चाय कमज़ोर मिल गई, तो रिसेप्शनिस्ट की शामत आ जाती है! Reddit पर एक समझदार कमेंटकर्ता ने लिखा, "गेस्ट से साफ कह दो – मैनेजर या कंपनी के नंबर पर शिकायत करें, आपको जो कहना है वहीं कहें!" बिलकुल सही – कभी-कभी सबसे बड़ा डिफेंस यही है कि जिम्मेदार व्यक्ति का नंबर पकड़ा दो, और खुद शांत बैठ जाओ।
एक और मजेदार कमेंट था, "अगर नाश्ते वाली को सबकुछ अपनी तरह से चाहिए, तो वो खुद जल्दी आकर सेटअप कर ले!" भारत में भी कई ऑफिसों में यही होता है – कोई सीनियर रोज़ आपको बताता रहेगा कि 'फाइल ऐसे रखो', 'चाय ऐसे बनाओ', लेकिन काम करने वाला तो आप ही हो। ऐसे में कई लोग सलाह देते हैं – "भैया, जब सबको अपनी मर्ज़ी चाहिए, तो खुद ही कर लें।"
"इंतज़ार करते रहो, सामान नहीं आएगा!"
एक और कमेंट में किसी ने कहा, "लॉगबुक में लिखते रहो, पर जब तक जिम्मेदार हाउसकीपिंग या मैनेजर खुद ना उठे, तब तक सामान कभी नहीं आएगा!" ये तो हमारे सरकारी दफ्तरों जैसा है – फाइल घूमती रहती है, पर काम पूरा नहीं होता। नाइट ऑडिटर साहब ने हफ्ते भर इंतजार किया, पर न दही आया, न फल। आखिर झुंझलाकर खुद का Pam भी वापिस घर ले गए – शायद किसी को ध्यान आ जाए। पर अफसोस, किसी ने नोटिस ही नहीं किया!
"सिस्टम की गड़बड़ी – और फोकट की जिम्मेदारी!"
इस Reddit चर्चा में कई लोगों ने होटल प्रबंधन की पोल खोली। किसी ने लिखा, "घर के पैसे खर्च कर के होटल का सामान लाना बंद करो! साफ-साफ नोट लिखो, कौन सा सामान चाहिए, और ये जिम्मेदारी किसकी है।" कई बार ऐसा होता है कि जो असली जिम्मेदार है, वो तो मौज में हैं – और जो काम कर रहा है, उसी को गेस्ट की डांट भी सुननी पड़ती है।
एक और कमेंट ने बड़ा अच्छा तर्क दिया – "नाश्ते की पूरी जिम्मेदारी एक ही व्यक्ति की होनी चाहिए, जिससे बाद में कोई दोषारोपण न हो।" भारत में भी ये बहस चलती रहती है – 'मेरी ड्यूटी नहीं थी', 'उसकी शिफ्ट थी, मैंने बस मदद कर दी थी!' आखिर में, सब एक-दूसरे पर टालमटोल करते रहते हैं।
"छोटे होटल, बड़ी समस्याएँ!"
सवाल उठा – आखिर क्यों जरूरी सामान खत्म हो जाता है? असल में, बड़े-बड़े होटल्स में तो सब कुछ सिस्टमैटिक होता है, लेकिन छोटे होटलों में मैनेजर खुद लोकल मार्केट से सामान लाते हैं – पैसे बचाने के चक्कर में! किसी ने लिखा, "जो थोड़े पैसे बचा रहे हो, उससे ज्यादा नुकसान गेस्ट की नाराज़गी और खराब रिव्यू से हो जाता है।" सही बात है – हमारी 'पैसे-पैसे जोड़ने' की आदत कभी-कभी उल्टी पड़ जाती है।
निष्कर्ष: "अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता!"
इस पूरी कहानी का सार यही है – जब टीमवर्क नहीं होता, और जिम्मेदारियां साफ नहीं होतीं, तो सबसे ज्यादा परेशान वही इंसान होता है जो वाकई मेहनत कर रहा है। चाहे वो रात की शिफ्ट का कर्मचारी हो या ऑफिस का जूनियर – जब तक सब मिलकर नहीं चलेंगे, ऐसी उलझनें बनी रहेंगी।
अगर आप भी कभी किसी होटल में नाश्ता करने जाएं, और टोस्ट या दही न मिले – तो रिसेप्शनिस्ट पर गुस्सा मत निकालिए! हो सकता है, वो बेचारा भी आपके जैसी ही उलझनों से गुजर रहा हो।
क्या आपके साथ भी ऑफिस या होटल जैसी कोई 'बॉस-गॉन' वाली कहानी घटी है? अपनी कहानी कमेंट में जरूर शेयर करें – कौन जाने, आप ही अगली कहानी के हीरो बन जाएं!
मूल रेडिट पोस्ट: The boss is gone for week