विषय पर बढ़ें

बॉस की अजीब पॉलिसी और कर्मचारी का मजेदार जवाब: जब नियम ही बन गए सिर दर्द

एक एनिमे शैली की चित्रण जिसमें एक परेशान कर्मचारी अपने प्रबंधक द्वारा बताए गए भ्रमित करने वाले स्टोर नीति का सामना कर रहा है।
इस जीवंत एनिमे दृश्य में, हमारा नायक स्टोर नीतियों की उलझन भरी दुनिया का सामना कर रहा है, जो एक आरामदायक टेलीको नौकरी में सामना की गई मजेदार चुनौतियों को दर्शाता है। आप इन "बनाए गए" नियमों के बारे में क्या सोचते हैं?

हमारे देश में दफ्तर और दुकान के कामकाज में जितना मसाला होता है, उतना शायद ही किसी और चीज़ में मिले! बॉस का मूड, मैनेजर की मनमानी, और कर्मचारियों के जुगाड़ – ये सब मिलकर ऑफिस लाइफ को मसालेदार बना देते हैं। अभी हाल ही में मैंने Reddit पर एक ऐसी कहानी पढ़ी, जिसे पढ़कर एक पल को लगा कि ये किसी भारतीय दफ्तर की कहानी है, बस नाम-स्थान बदल दो!

कर्मचारी बीमार पड़ जाए तो क्या करे? मैसेज करे, फोन करे या डॉक्टर की चिट्ठी लाए? बॉस की मनमानी यही नहीं रुकती – नियम भी खुद बनाते हैं, खुद ही तोड़ते हैं। तो आइए, जानते हैं एक टेलीकॉम कंपनी में काम करने वाले की कहानी जिसने बॉस की बनाई “खास” पॉलिसी का मुँहतोड़ जवाब दिया।

जब मैनेजर बना “पॉलिसी गुरु”: बीमार पड़ना भी हो गया मुश्किल

भैया, हमारे यहाँ तो बॉस लोग अक्सर अपने हिसाब से नियम बना लेते हैं, कभी-कभी तो ऐसा लगता है जैसे दफ्तर उनका खानदानी जागीर हो! Reddit पर Dangerous_Ordinary11 नामक कर्मचारी का भी कुछ ऐसा ही अनुभव रहा। दो साल से टेलीकॉम कंपनी में काम करते हुए, उन्हें कई बार अजीबोगरीब "पॉलिसी" का सामना करना पड़ा।

एक बार तो मैनेजर ने फरमान जारी कर दिया – "ऑनलाइन डॉक्टर की चिट्ठी नहीं चलेगी, सिर्फ सामने जाकर डॉक्टर से ही मेडिकल सर्टिफिकेट लाना पड़ेगा!" अब सोचिए, आज के जमाने में जब ऑनलाइन डॉक्टर आम बात है, तब भी कुछ मैनेजर पुराने जमाने की सोच से बाहर नहीं आना चाहते। कर्मचारी ने जब इसका विरोध किया तो मैनेजर ने चुपचाप वो नियम वापस ले लिया। भाई, ये तो वही बात हो गई – “अरे बेटा, जब जनता बोले तो राजा भी झुक जाता है!”

सुबह-सुबह की कॉल – बॉस को सता, कर्मचारी का जुगाड़

अब बात करते हैं असली ट्विस्ट की। ऑफिस में ये नियम बना दिया गया कि बीमार पड़ो तो सिर्फ मैसेज नहीं, फोन कॉल करना जरूरी है – चाहे मैनेजर सो रहा हो या जाग रहा हो। Dangerous_Ordinary11 रोज़ सुबह 6 बजे पेट दर्द के साथ उठते, कॉल करते – कोई जवाब नहीं। फिर मैसेज डाल देते – “मैं बीमार हूँ, एक घंटे बाद कॉल करूंगा।” ऐसा कई बार हुआ, लेकिन मैनेजर साहब तो सोए ही रहते!

फिर कर्मचारी ने भी अपनी चालाकी दिखाई – अब वे सिर्फ सुबह 6 बजे मैसेज भेज देते, “प्लीज़ देख लें, अगर न देखा तो 8 बजे कॉल करूंगा।” दो मैनेजर तो मान गए, लेकिन तीसरे को समस्या थी (और उसी से हाल में झगड़ा भी हो गया था)। एक दिन तीसरे मैनेजर ने फरमान सुनाया – “आगे से फोन कॉल ही चाहिए, मैसेज से काम नहीं चलेगा।”

भैया, अगले दिन कर्मचारी ने भी कमाल कर दिया – सुबह 5 बजे से 5 बार कॉल, फिर मैसेज, फिर एक घंटे बाद फिर कॉल! और जब मैनेजर साहब की नींद खुली, तो “ठीक है, जल्दी ठीक हो जाओ” लिखकर जवाब दे दिया। पावर ट्रिप वहीं ढेर हो गई।

कम्युनिटी की राय: “नियम तोड़ो या बॉस की नींद?”

इस कहानी पर Reddit कम्युनिटी ने खूब मजेदार कमेंट्स किए। एक सबसे लोकप्रिय कमेंट था – “अगर कॉल जरूरी है तो मैनेजर को भी फोन उठाना चाहिए, नहीं तो कॉल लॉग और वॉयसमेल ही सबूत है!” बिलकुल सही – भारत में भी कई बार ऐसा होता है कि कर्मचारी फोन करते हैं, लेकिन बॉस साहब जवाब नहीं देते, फिर भी सारा दोष कर्मचारी पर डाल देते हैं।

एक और यूज़र ने लिखा – “हमारे यहाँ तो नियम है कि 9 बजे से पहले सिर्फ मैसेज करो, क्योंकि सबकी नींद खराब न हो।” सोचिए, अगर भारत के ऑफिसों में भी ऐसा नियम लागू हो जाए तो कितने लोग सुकून से सो पाएंगे!

किसी ने मजाकिया अंदाज़ में कहा – “अगर मैनेजर बार-बार कॉल करवाना चाहता है तो उसे नींद से जगाना भी हमारा अधिकार है!” ये तो वही बात हो गई – “जैसा देश, वैसा भेष, जैसा बॉस, वैसी पॉलिसी!”

कुछ ने गंभीर बात भी रखी – “कई बार कॉल करवाने के पीछे मकसद ये होता है कि सामने बात करते हुए झूठ पकड़ना आसान होता है।” अब इसमें कितना सच है, ये तो हर दफ्तर की अपनी कहानी है।

भारतीय दफ्तरों में ऐसे नियम कितने कारगर हैं?

हमारे यहाँ भी कई बार बॉस या मैनेजर अपनी सुविधा के हिसाब से नियम बना देते हैं। कभी-कभी ये पॉलिसियाँ कर्मचारी की परेशानी बढ़ा देती हैं, जैसे बीमार पड़ने पर तुरंत डॉक्टर की चिट्ठी लाना, या बार-बार फोन करना। बड़े शहरों में डॉक्टर से अपॉइंटमेंट मिलना वैसे भी आसान नहीं, ऊपर से बॉस की जिद – “आज ही चिट्ठी लाओ!”

भारत में भी कई दफ्तरों में आजकल व्हाट्सएप, ईमेल या एसएमएस से सूचना देना सामान्य हो गया है। लेकिन पुराने ख्यालात वाले बॉस आज भी कॉल करने पर ही जोर देते हैं। और जब कर्मचारी नियम के मुताबिक बार-बार कॉल करते हैं, तो उन्हीं की नींद हराम हो जाती है!

जैसे एक कमेंट में किसी ने लिखा – “अगर कॉल जरूरी है तो बॉस को खुद टाइम बताना चाहिए कि कब उपलब्ध हैं, वरना सुबह-सुबह कॉल का झंझट उन्हीं पर भारी पड़ेगा!”

निष्कर्ष: नियम बनाओ, मगर इंसानियत मत भूलो!

कहानी से यही सीख मिलती है कि नियम बनाना आसान है, लेकिन जमीनी हकीकत और इंसानियत को नजरअंदाज मत करो। अगर कर्मचारी बीमार है तो उस पर और बोझ डालने की बजाय थोड़ा भरोसा और समझदारी दिखाना ज्यादा जरूरी है।

इस कहानी ने साबित कर दिया कि कभी-कभी बॉस की पॉलिसी उन पर ही भारी पड़ जाती है। आखिरकार, कामयाब संस्थान वही हैं जहाँ नियम के साथ-साथ संवेदनशीलता और आपसी सम्मान भी हो।

आपके ऑफिस में भी ऐसे कोई मजेदार या अजीब नियम हैं? या कभी आपने अपने बॉस की मनमानी का तोड़ निकाला हो? नीचे कमेंट में जरूर बताइए – आपके अनुभव बाकी पाठकों के लिए भी मजेदार हो सकते हैं!


मूल रेडिट पोस्ट: Made up policy by the store managers