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ब्रेक के चक्कर में फंसी ज़िंदगी: जब काम के बहाने सिगरेट की लत लग गई

सोचिए ज़रा – आप एक ऐसी जगह काम कर रहे हैं जहाँ सिर्फ़ सिगरेट पीने वालों को ही काम के बीच ब्रेक की इजाज़त है! बाकी सबको बिना रुके काम करो, जैसे बैल खेत में जुत रहे हों। अब अगर आप खुद स्मोकिंग नहीं करते, तो क्या करेंगे? कुछ तो जुगाड़ लगाना पड़ेगा ना! आज की कहानी एक ऐसे ही तेज़-तर्रार कर्मचारी की है, जिसने इस अजीब ऑफिस पॉलिसी को चकमा देने के चक्कर में खुद की ही सेहत दांव पर लगा दी।

दफ्तर की अजीबो-गरीब पॉलिसी: सिर्फ़ स्मोकर्स को ब्रेक!

साल था 2000 के आस-पास। एक साहब (हम इन्हें "जेएल" कहेंगे) एक बड़ी कंपनी में काम करते थे, जिसका नाम उन्होंने मज़ाक-मज़ाक में "Crapita" रखा है। अब दफ्तर का ये नियम सुनिए – “सिर्फ़ वही ब्रेक ले सकता है, जो स्मोक करता है।” बाकी सब, चाहे पसीना बहाओ या सिर धुनो, काम से फुरसत नहीं!

हिंदुस्तान में भी ऐसे दफ्तर मिल जाते हैं, जहाँ “सिगरेट ब्रेक” लेना आम बात है। कई बार तो लोग पान या तंबाकू के बहाने भी बाहर चले जाते हैं। लेकिन यहाँ मामला सीधा-सीधा भेदभाव का था – न पीने वाले, न ब्रेक वाले!

ब्रेक के लिए बनी आदत, जो पड़ी भारी

जेएल साहब ने ठान लिया – “अरे, जब सबको ब्रेक मिल रहा, तो मैं क्यों पीछे रहूँ?” बस, सिगरेट पीनी शुरू कर दी, ताकि दिन में दो बार ब्रेक का मज़ा मिल जाये। उस समय उन्हें ये नहीं सूझा कि झूठमूठ भी सिगरेट ले जा सकते थे, या यूँ ही बहाना बना सकते थे (जैसा एक कमेंट करने वाले ने बताया कि वे सिर्फ़ सिगरेट लेकर बाहर चले जाते थे, बिना पिए)। लेकिन जवानी में अक्ल कहाँ पूरी होती है? जेएल खुद ही मानते हैं – “काश तब दिमाग लगाया होता!”

समुदाय के कई लोगों ने भी यही अनुभव साझा किया। किसी ने लिखा, “मैं भी ऑफिस में सिगरेट ब्रेक के नाम पर बाहर जाता था, लेकिन सिगरेट जलाकर बस किताब पढ़ता था।” एक और मज़ेदार कमेंट आया, “मैं तो च्युइंग गम चबाने के बहाने बाहर चला जाता था, लेकिन बॉस को समझ नहीं आया कि असली मकसद क्या है!”

ऑफिस कल्चर और ‘सिगरेट ब्रेक’: क्या ये वाकई फेयर है?

इस Reddit पोस्ट पर 500 से भी ज़्यादा लोगों ने अपनी राय रखी। कुछ ने तो याद दिलाया कि पुराने ज़माने में हमारे यहाँ भी जुगाड़ चलता था – मसलन, “पान ब्रेक”, “चाय ब्रेक” या “स्मोकर्स गैंग” की गपशप। एक जनाब ने लिखा, “मुझे तो ये देखकर हैरानी होती थी कि बड़े शेफ भी सिगरेट पीते हैं, जबकि इसका स्वाद पर असर पड़ता है!” एक और ने जोड़ा – “अरे साहब, हमारे यहाँ तो स्मोकर को हर घंटे ब्रेक मिलता था, बाकी सब को बस काम!”

कुछ लोगों ने इस पर मज़ाकिया अंदाज़ में कहा – “अगर कंपनी हीरोइन ब्रेक देती तो क्या करते?” तो जवाब आया, “सिगरेट छोड़ना मुश्किल है, ड्रग्स छोड़ना तो फिर भी आसान!”

कईयों ने अपनी कहानियाँ बाँटी – “मेरे दोस्त को ऑफिस के बड़े फैसले स्मोक ब्रेक के दौरान ही पता चल जाते थे, इसलिए उसने भी सिगरेट की लत लगा ली। आज 20 साल बाद भी नहीं छूटी!” एक और ने बताया, “मैं तो बिना सिगरेट के बस बाहर खड़ा रहता था, किसी ने कभी टोका ही नहीं।”

छोड़ने की जद्दोजहद: ‘इस बार पक्का छोड़ूंगा!’

जेएल साहब आज भी इस लत से जूझ रहे हैं। पोस्ट के आखिर में वे लिखते हैं – “आज फिर छोड़ने की कोशिश कर रहा हूँ, उम्मीद है इस बार सफल रहूँगा।” कई लोगों ने उन्हें हिम्मत बँधाई – “सिगरेट छोड़ना आसान नहीं, लेकिन नामुमकिन भी नहीं। एक दिन में नहीं, पर लगातार कोशिश से मुमकिन है।” एक पाठक ने बढ़िया सलाह दी – “हर बार जब मन करे, खुद से कहो – अभी नहीं, अभी छोड़ना है।”

एक बुजुर्ग पाठक ने मज़ाक में लिखा, “सदी की शुरुआत! बेटा, ये सुनकर तो मेरी कमर ही दुखने लगी!” किसी ने कहा, “2000s की बातें अब पुरानी हो गईं, वक्त के साथ बदला सबकुछ।”

निष्कर्ष: सेहत या सिस्टम – किसकी सुनें?

कहानी का सार यही है – कभी-कभी सिस्टम को चकमा देने के चक्कर में खुद की ही सेहत दाँव पर लग जाती है। ऑफिस की बेवकूफी भरी नीतियाँ तो बदल भी सकती हैं, लेकिन जो आदत बन जाए, वो सालों पीछा नहीं छोड़ती। इस कहानी में मज़ा भी है, सीख भी – छोटे फायदे के लिए बड़ी कीमत न चुकाएँ।

तो अगली बार जब ऑफिस में कोई अजीब नियम दिखे, जुगाड़ से पहले दो बार सोचिए – सेहत सबसे ऊपर है! क्या आपके दफ्तर में भी ऐसे अजीब अनुभव हुए हैं? कमेंट में जरूर बताइए, और अगर सिगरेट छोड़ने की जद्दोजहद चल रही है तो, हिम्मत मत हारिए – आप भी जीत सकते हैं!


मूल रेडिट पोस्ट: Cutting Nose Off to Spite Lungs