बीमा कंपनी की चालाकी और ग्राहक की जुगाड़: क्लीन ड्राइविंग रिकॉर्ड की अनोखी जंग
हमारे देश में अगर किसी सरकारी दफ्तर या बीमा कंपनी का चक्कर लगाना पड़े, तो हर कोई जानता है – ये काम सीधा नहीं, बल्कि गोल-गोल घुमाने वाला है। ऐसे में अगर कोई आम आदमी अपने हक के लिए थोड़ा दिमाग चलाए, तो वो सारा सिस्टम ही हिल जाता है। आज की कहानी है कनाडा से, लेकिन यकीन मानिए, इसमें वो सारे ताने-बाने हैं जो हमें अपनी गलियों और बीमा एजेंट के ऑफिस में भी रोज़ देखने को मिलते हैं।
बीमा कंपनी की 'न्यायप्रियता' और ग्राहक की मजबूरी
कहानी की शुरुआत होती है टोरंटो की एक सड़क से, जहाँ लेखक की पत्नी (यहाँ हम उन्हें प्रियंका जी मान लेते हैं) आराम से ट्रैफिक सिग्नल पर खड़ी थीं। ग्रीन लेफ्ट एरो जलते ही प्रियंका जी ने कानूनी तरीके से अपनी गाड़ी मोड़ दी। लेकिन सामने से एक सज्जन, जो शायद ध्यान कहीं और लगाए बैठे थे, सीधा अपने वाहन को रेड लाइट पार करवा बैठे – और टक्कर हो गई।
अब आप सोचिए, गलती किसकी? हमारे यहाँ तो साफ है – रेड लाइट तोड़ने वाला ही दोषी। मगर बीमा कंपनी का जवाब सुनिए – "आपकी पत्नी लेफ्ट टर्न ले रही थीं, इसलिए भले ही सामने वाला कानून तोड़ रहा हो, गलती आधी-आधी मानी जाएगी।" अब बताइए, ऐसा 'न्याय' तो हिंदुस्तानी दफ्तरों में भी कम ही मिलता है!
'नुकसान आपका, फिक्र हमारी?' – बीमा कंपनियों का असली चेहरा
चोट ज्यादा नहीं थी, गाड़ी भी चलने लायक थी। लेकिन बीमा कंपनी ने साफ कर दिया कि अगर क्लेम किया, तो अगले पांच साल तक प्रीमियम दुगना हो जाएगा। अब हमारे लेखक (जिन्हें हम 'अजय' कह लें) ने सोचा – चलो, खुद ही मरम्मत करवा लेंगे, बीमा को छोड़ो।
यहाँ एक पाठक ने कमेंट किया, "बीमा कंपनियां दरअसल एक 'लीगलाइज्ड चिट फंड' की तरह हैं, जहाँ सब पैसे डालते हैं और जब पैसा चाहिए, तो बहाने बना दिए जाते हैं।" एक और ने तो ये भी जोड़ दिया, "ये तो बाकायदा कानूनन माफिया है, जिसे सरकार ने वैध बना रखा है!"
'रूल्स आर रूल्स' का जुगाड़ – जब नियमों से ही काम निकला
कुछ महीने बाद अजय और प्रियंका को दूसरे प्रांत जाना पड़ा। नई बीमा कंपनी ने पुराने बीमा इतिहास की डिमांड की – यानी 'क्लीन ड्राइविंग रिकॉर्ड'। पुराने बीमा ऑफिस पहुंचे, तो वहां की महिला कर्मचारी ने बड़ी ईमानदारी से कहा, "सॉरी, आपके नाम पर एक 'फॉल्ट' एक्सीडेंट है, क्लीन रिकॉर्ड नहीं दे सकते।"
अब यहाँ अजय जी ने वही किया, जो हर जुगाड़ू हिंदुस्तानी करता – नियमों की किताब निकाली। पता चला कि एक साल के भीतर क्लेम किया जा सकता है। अजय जी मुस्कराए और बोले, "अगर रिकॉर्ड खराब ही लिखना है, तो फिर क्लेम भी कर देता हूँ – गाड़ी भी ठीक करवाऊँगा, रेंटल भी लूँगा, और बिल जितना बढ़ा सकूँ, बढ़ा दूँ। ऊपर ऑफिस में भी पूरा किस्सा लिख भेजूँगा कि आपकी ईमानदारी की वजह से कंपनी को नुकसान हो गया!"
यह सुनते ही कर्मचारिणी का मूड बदल गया – "एक मिनट, शायद हम कोई समाधान निकाल सकते हैं।" दस मिनट बाद अजय जी को 'क्लेम-फ्री' ड्राइविंग हिस्ट्री का पत्र मिल गया। यहाँ 'एक्सीडेंट-फ्री' नहीं, 'क्लेम-फ्री' लिखा था – जो बिल्कुल वैसा ही है, जैसा सरकारी कागजों में 'नोट टू सेल्फ', 'कृपया फाइल देखें' टाइप टिपण्णी होती है। नई बीमा कंपनी मान गई, और मामला खत्म।
पाठकों की राय: बीमा कंपनियों के खेल पर गुदगुदाते तंज
रेडिट कम्युनिटी में इस कहानी पर खूब चर्चा हुई। एक पाठक ने लिखा, "बीमा वो खेल है, जिसमें आप खुद के खिलाफ जुआ खेलते हैं और कानून आपको जबरदस्ती उसमें शामिल करता है!" दूसरे ने जोड़ा, "कनाडा हो या इंडिया, बीमा कंपनियां सब जगह एक जैसी हैं – मुश्किल में काम आएं, इसकी गारंटी नहीं।"
एक और दिलचस्प कमेंट था – "डैशकैम अब ज़रूरी हो गया है, वरना सारा दोष आपके सिर पर डाल देंगे, चाहे आप रेड लाइट पर रुके हों या एंबुलेंस को रास्ता दिया हो!" और जैसा हमारे यहाँ भी होता है, 'कंपनी पॉलिसी' का बहाना तब तक चलता है, जब तक ग्राहक नुकसान में रह रहा हो – लेकिन जैसे ही कंपनी का घाटा दिखने लगे, पॉलिसी बदलते देर नहीं लगती।
निष्कर्ष: नियमों का खेल और आम आदमी का जुगाड़
इस किस्से से एक बात तो साफ है – चाहे कनाडा हो या भारत, बीमा कंपनियां अपने फायदे के लिए नियमों का जाल बुनती रहती हैं। लेकिन जब आम आदमी थोड़ा दिमाग लगाता है, तो वही नियम उनके खिलाफ भी इस्तेमाल हो सकते हैं। तो अगली बार जब कोई बीमा कंपनी 'रूल्स आर रूल्स' का पाठ पढ़ाए, तो ज़रा नियम खुद भी पढ़ लीजिए – क्या पता, आपकी भी किस्मत चमक जाए!
आपका क्या अनुभव रहा है बीमा कंपनियों के साथ? नीचे कमेंट में जरूर बताइए। और अगर आपके पास भी कोई मजेदार जुगाड़ या किस्सा हो, तो हमारे साथ साझा करें – अगले ब्लॉग में आपका किस्सा भी आ सकता है!
मूल रेडिट पोस्ट: So, insurance company, you won't give me a letter with a clean driving record?