बदला तो छोटा सा था, मगर दिल को बड़ी राहत मिली – स्कूल की बदमाशी का मीठा हिसाब
स्कूल के दिनों की दोस्ती और दुश्मनी दोनों ही गजब होती हैं। कभी जो साथ बैठकर टिफिन खाते हैं, वही अगले दिन मुंह फेर लेते हैं। और जब कोई दोस्त अचानक दुश्मन बन जाए, तो दिल पर जो बीतती है, उसे वही समझ सकता है। आज की कहानी एक ऐसी ही लड़की की है, जिसने अपने पुराने बुली को इतना छोटा, मगर मीठा सबक सिखाया, कि पढ़कर आपके चेहरे पर भी मुस्कान आ जाएगी।
स्कूल का वो कड़वा अनुभव
हमारे समाज में स्कूल के दिनों की यादें अक्सर मीठी होती हैं, मगर कभी-कभी इनमें कड़वाहट भी घुल जाती है। हमारी नायिका (कहानी की मुख्य पात्र) की किस्मत भी कुछ ऐसी ही थी। स्कूल में उसकी एक दोस्त थी – मजबूत, दबंग किस्म की लड़की। अचानक एक दिन वही दोस्त उसकी सबसे बड़ी बुली बन गई। वजह? किसी तीसरी लड़की ने अफवाह उड़ा दी कि हमारी नायिका ने सबके बारे में अपशब्द कहे हैं – “वे सब घटिया लड़कियाँ हैं” (मूल अंग्रेज़ी में “fucking bitches”)। सोचिए, बिना कोई सबूत, बिना सीधे पूछे, सारी सहेलियाँ एक साथ दुश्मन बन गईं!
अब तो स्कूल की गलियों में पीछा, धक्का-मुक्की, डराना-धमकाना – दो साल तक यही चलता रहा। किसी ने सच जानना भी जरूरी नहीं समझा। एक पाठक (u/Just_Aioli_1233) ने कमेंट में बड़ा सही लिखा – “ऐसे लोग दोस्त नहीं, बस साथ पढ़ने वाले थे, वो भी बहुत कमजोर किस्म के दोस्त।” वाकई, हमारे यहाँ भी तो कहते हैं, ‘सच्चा दोस्त वही जो बुरे वक्त में साथ दे, बाकी तो भीड़ है।’
छोटी सी जीत, बड़ी राहत
समय बीता, स्कूल छूटा, और जख्म दिल में रह गया। लेकिन किस्मत का भी अपना अंदाज़ है। ग्रेजुएशन के बाद नायिका एक बड़े रिटेल स्टोर में काउंटर पर काम करने लगी। एक दिन वही पुरानी बुली दुकान पर आई और सीधा उसके काउंटर पर पहुँची। गर्मी का दिन था, बाहर धूप तेज़ थी। बुली ने विनती की – “फोन मिल सकता है? टैक्सी बुलानी है।” (उस समय मोबाइल फोन हर किसी के पास नहीं होते थे, दुकान में ही फोन करना पड़ता था।)
नायिका ने मुस्कुरा कर फोन पकड़ा दिया। बुली ने कई बार नंबर मिलाया, लेकिन हर बार दुकान के ऑटोमोटिव सेक्शन का फोन बजता रहा, टैक्सी का नंबर ही नहीं लग पाया। बुली बार-बार कोशिश करती रही, परेशान होती रही, और हमारी नायिका बस कंधे उचका कर ‘पता नहीं क्यों’ वाली मासूमियत बनाए रही। आखिरकार बुली हार मान गई, और तपती धूप में पैदल ही चल दी। असली खेल ये था – दुकान के फोन से बाहर का नंबर मिलाने के लिए ‘9’ दबाना पड़ता था, जो बुली को पता नहीं था। लेकिन हमारी नायिका ने ये राज कभी बताया ही नहीं!
एक पाठक (u/chalavet) ने कमेंट में लिखा, “कई बार छोटी सी बदला ही सबसे मीठा होता है – बिना शोर, बिना मारपीट, बस एक छोटी सी चाल और सामने वाला खुद ही हार मान ले!” यही तो असली ‘कविता-सी’ न्याय है।
क्या यह बदला सही था?
कई बार हमारे समाज में बदला लेना गलत माना जाता है, मगर जब चोट बहुत गहरी हो और इंसान अपनी बेइज्जती का दर्द बरसों तक झेले, तो ऐसी छोटी-सी जीत दिल को तसल्ली जरूर देती है। एक पाठक (u/VivianDiane) ने बढ़िया लिखा – “तुम बराबरी पर नहीं आई, बल्कि थोड़ा और ऊपर उठ गई। ये छोटी सी जीत परफेक्ट रही।” और सच कहें तो, ऐसी बदला किसी को नुकसान नहीं पहुँचाता, बस दिल को सुकून दे जाता है।
हमारे देश में भी तो कहावत है – ‘बुरा करो तो बुरा ही पाओगे’। बुली को उस दिन पैदल चलना पड़ा, शायद उसने भी सोचा होगा – “कर्म का हिसाब यहीं चुकता हो गया।”
किशोरावस्था की दोस्ती और दुश्मनी – अक्सर बेवजह
कहानी पढ़कर एक और कमेंट (u/catsareniceDEATH) याद आ गया – “किशोर लड़कियाँ कभी-कभी कितनी निर्दयी हो जाती हैं, वो भी बिना किसी वजह के!” हमारे यहाँ भी स्कूल-काॅलेज में छोटी-छोटी बातों पर दोस्ती टूट जाती है, ग्रुप बदल जाते हैं, और कभी-कभी अफवाहें रिश्ते बिगाड़ देती हैं। पर जो टिक जाए, वही असली दोस्त है। बाकी सब तो – “साथ चलने वाले मुसाफिर” हैं।
पाठकों से सवाल – आपकी छोटी-सी जीत?
दोस्तों, क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है? किसी ने आपको गलत समझा, या बिना वजह अफवाह फैला दी? और फिर आपको मौका मिला छोटा सा, मगर मीठा बदला लेने का? ऐसे अनुभव कमेंट में जरूर लिखिए। कौन जाने, आपकी कहानी भी किसी का दिल हल्का कर दे!
निष्कर्ष: बदला छोटा हो या बड़ा, जरूरी है कि दिल को चैन मिले
कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे मौके देती है, जहाँ हम बिना किसी को चोट पहुँचाए भी अपना बदला ले सकते हैं। ये छोटी-सी जीत भले ही बाहर से मामूली लगे, मगर अंदर की तकलीफ को थोड़ा कम जरूर कर देती है। इस कहानी ने हमें यही सिखाया – इंसाफ हमेशा बड़ा नहीं, कभी-कभी बहुत छोटा भी हो सकता है। और हाँ, अगली बार जब स्टोर का फोन यूज़ करें, तो ‘9’ दबाना न भूलें!
अगर आपको ये कहानी पसंद आई हो, तो शेयर करें और अपने अनुभव जरूर बताएं। आपकी छोटी-सी जीत भी किसी के चेहरे पर मुस्कान ला सकती है!
मूल रेडिट पोस्ट: The smallest petty win over a bully