बचपन की दुश्मनी और मासूम बदला – एक रूसी स्कूल की मज़ेदार घटना
बचपन की दुश्मनियाँ अक्सर बड़ी मासूम होती हैं, लेकिन कभी-कभी उनमें ऐसी चालाकी छुपी होती है कि बड़े-बड़े लोग भी हैरान रह जाएँ। आज मैं आपको एक ऐसी ही कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जिसमें एक मासूम रूसी बच्ची ने अपने दुश्मन को सबक सिखाने के लिए जो तरीका अपनाया, उसे पढ़कर आप भी मुस्कुरा उठेंगे।
हमारे यहाँ भी बचपन में मोहल्ले या स्कूल के 'शत्रु' होते थे, जिनसे छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई-झगड़ा चलता रहता था। लेकिन जिस तरह इस रूसी बच्ची ने अपनी चाल चली, वो सचमुच काबिल-ए-तारीफ है।
बचपन की दुश्मनी: जब गुलाबी केप ने दोस्ती तोड़ दी
कहानी की नायिका महज़ 8-9 साल की थी, पर उसकी दुश्मनी किसी बॉलीवुड फिल्म के विलेन जैसी थी। उसकी क्लास में एक लड़की थी – उससे दो साल बड़ी, जो हमेशा उसे छोटा, बच्चा और कमज़ोर समझती थी। एक बार उसने उससे एक बेहद प्यारा गुलाबी रंग का पंखों वाला केप (कपड़ा) पार्टी में पहनने के लिए माँगा। लेकिन पार्टी के बाद उस लड़की ने ये कह दिया कि उसे केप मिला ही नहीं! सोचिए, कैसा गुस्सा आया होगा।
इतना ही नहीं, उस लड़की की माँ ने भी मासूम बच्ची को फोन पर धमकाया कि उसकी बेटी को तंग करना बंद करे, जबकि असली परेशान तो वही लड़की कर रही थी। ये तो हमारे यहाँ की 'मोहल्ले वाली आंटी' जैसी हरकतें हो गईं।
मासूम बदला: चालाकी से खेला गया दांव
अब सीधा जाकर 'शिकायत' करना नायिका को पसंद नहीं था, आखिर दुश्मन उसे 'बच्चा' कहकर चिढ़ाती थी। इसलिए उसने सोचा कि बदला भी चालाकी से लिया जाए। मौका मिला जब दुश्मन लड़की ने सबके सामने उसे 'लेस्बियन' कह दिया। अब रूस जैसे देश में, 2000 के दशक में, बच्चों के लिए ऐसे शब्द सुनना बहुत बड़ी बात थी।
हमारी नायिका फौरन मासूम बनती हुई टीचर के पास पहुँची – "मैम, लेस्बियन का मतलब क्या होता है?" बस फिर क्या था, टीचर के होश उड़ गए! उन्होंने पूरी क्लास के सामने उस लड़की की क्लास लगा दी, माँ को स्कूल बुला लिया और यहाँ तक कि हेडमास्टर के पास ले जाने की धमकी भी दे दी। 'सांप भी मर गया और लाठी भी न टूटी' वाली बात हो गई। मासूम ने बिना सीधे चुगली किए, दुश्मन को सबक सिखा दिया।
टीचर का 'वोक' जवाब – रूसी समाज में एक नया सबक
दिलचस्प बात ये रही कि रूसी टीचर, जो आम तौर पर कड़क और पुराने ख्यालों की मानी जाती थीं, उन्होंने भी बिना किसी भेदभाव के क्लास को 'सेक्शुअल ओरिएंटेशन' का मतलब समझाया। सोचिए, 2000 के दशक के रूस में ये अपने आप में बड़ी बात थी। जैसे हमारे यहाँ कोई सख्त मास्टरजी बच्चों को प्यार से समझा दें – "बेटा, दुनिया में हर रंग के लोग होते हैं।"
रेडिट पर एक यूज़र ने भी यही लिखा – "आश्चर्य की बात है कि इतनी सख्त टीचर ने भी इतनी समझदारी दिखाई। काश आज उस दुश्मन को बता पाते कि वो सही थी!" और खुद कहानी की नायिका ने भी मज़ाक में कहा, "वो लड़की सही थी, उसने मुझे तब पहचान लिया था जब मुझे खुद भी नहीं पता था!" यानी, 'दुश्मन' ने दस साल पहले ही उसे पहचान लिया था – ये तो वही बात हुई, 'दूध का दूध, पानी का पानी'।
केप की कहानी और सीख – जीत का असली मज़ा
अब आप सोच रहे होंगे, क्या उसे अपना प्यारा गुलाबी केप वापस मिला? जवाब है – नहीं। दुश्मन ने कहा कि केप क्लासरूम में रह गया था, और फिर किसी ने उठा लिया। नायिका के माता-पिता ने भी कहा कि चूंकि वो लड़की आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से थी, इसलिए उससे पैसे माँगना ठीक नहीं। माँ ने समझाया – "गिरा हुआ आदमी अगर खुद ही परेशान हो, तो उसे और गिराना नहीं चाहिए।" यहाँ एक गहरी सीख भी छुपी है – जीत वही है, जब दिल बड़ा हो।
रेडिट कम्युनिटी ने भी इस मासूम बदले की खूब तारीफ की। एक ने लिखा – "आठ साल की उम्र में ऐसा दिमाग, क्या मास्टरमाइंड हो!" दूसरे ने कहा – "बचपन में बुली करने वाले को सबक मिलते देखना सबसे बड़ी खुशी है।" और किसी ने लिखा – "परफेक्ट रिवेंज!"
निष्कर्ष: मासूमियत, चतुराई और थोड़ी-सी शरारत
इस कहानी में हमें बचपन की मासूमियत, थोड़ी-सी चालाकी और समाज की बदलती सोच, तीनों का संगम देखने को मिलता है। स्कूल की दुश्मनियाँ तो हर किसी के हिस्से आती हैं, लेकिन अगर आप दिमाग से काम लें, तो बिना झगड़े के भी जीत हासिल की जा सकती है। और सबसे बड़ी बात – कभी-कभी आपके 'दुश्मन' आपको आपसे बेहतर जान लेते हैं!
तो दोस्तों, क्या आपके साथ भी कभी ऐसा कुछ हुआ है? क्या आपने कभी अपने बचपन के दुश्मन को मज़ेदार तरीके से सबक सिखाया है? अपनी कहानी नीचे कमेंट में ज़रूर शेयर करें – क्योंकि बचपन की शरारतें कभी पुरानी नहीं होतीं!
मूल रेडिट पोस्ट: How I got my elementary school enemy in trouble lol