फ्लॉपी डिस्क से विंडोज 95 तक: एक आईटी ऑफिस की अनोखी जद्दोजहद
क्या आपने कभी सोचा है कि ऑफिस में कंप्यूटर चलाने के लिए हर रोज़ फ्लॉपी डिस्क लेकर घूमना कैसा होता होगा? आज के ज़माने में जब सबकुछ क्लाउड और SSD पर है, ये बात किसी पुराने बॉलीवुड गाने जैसी लगती है—nostalgia से भरपूर, थोड़ी हास्यपूर्ण, और काफी हद तक सिरदर्दी वाली! लेकिन 90 के दशक के एक खास आईटी ऑफिस में यही हकीकत थी, और उस हकीकत की कहानी सुनकर आप अपनी SSD को शायद गले लगा लें!
फ्लॉपी के ज़माने की अनोखी टेक्नोलॉजी
90 का दशक, इंडिया में भी कंप्यूटर धीरे-धीरे ऑफिसों में घुस रहे थे। उस दौर में एक विदेशी कंपनी थी, जहां AS/400 जैसे बड़े सिस्टम चलते थे और साथ में Netware सर्वर, कस्टम पीसी सॉफ्टवेयर और सबको जोड़ने के लिए नेटवर्क कार्ड भी लगे थे। लेकिन असली ट्विस्ट था—हर कंप्यूटर में हार्ड ड्राइव ही नहीं थी! जी हां, हर सुबह लोग जेब से फ्लॉपी निकाली, कंप्यूटर में डाली और फिर डॉस से बूट किया। विंडोज़ 3.11 और बाद में विंडोज़ 95—ये सब सर्वर से चलाया जाता था।
अब सोचिए, जैसे हमारे गांव के पुराने स्कूलों में हर रोज़ तख्ती और स्याही लेकर जाना पड़ता था, वैसे ही इन लोगों को रोज़ फ्लॉपी लेकर ऑफिस आना पड़ता था। अगर फ्लॉपी भूल गए तो? समझिए दिन बर्बाद!
बॉस के "जुगाड़" और उसका नतीजा
इस कहानी की असली हीरोइन थीं—वह बॉस, जिन्हें लगा कि हार्ड ड्राइव हटाने से लोग फालतू चीज़ें लोकल सेव नहीं करेंगे, और सब डाटा सर्वर पर रहेगा। उन्होंने कम्पैक जैसी नामी कंपनी से कंप्यूटर मंगवाए, $400 (लगभग तीस हज़ार रुपए!) एक्स्ट्रा देकर हार्ड ड्राइव निकलवा दी। और जब टीम को नए कंप्यूटर मिले, तो सब फिर वही पुराना डॉस बूट डिस्क लेकर ऑफिस आने लगे।
शुरुआत में बॉस को अपना आईडिया बड़ा शानदार लगा। लेकिन दो हफ्ते बाद, जब रोज़-रोज़ विंडोज़ 95 को फ्लॉपी से बूट करने की झंझट झेलना पड़ा, तब उनका माथा ठनका। एक दिन टीम से पूछा, "तुम्हें हार्ड ड्राइव लगानी आती है?" जब हां सुना, तो फौरन हार्ड ड्राइव मंगाई गई—but यहाँ भी जुगाड़ का तड़का!
जुगाड़ के पीछे की असली मार: कमेंट्स से आई सच्चाई
अब सुनिए असली मज़ा—कंपनी ने हार्ड ड्राइव के साथ केबल्स तो मंगवा लिए, लेकिन "माउंटिंग ब्रैकेट्स" यानी हार्ड ड्राइव को पीसी में कसने वाला हिस्सा भूल गए! कम्पैक कंपनी ने भी "जैसा ऑर्डर वैसा माल" के तर्ज़ पर ब्रैकेट्स नहीं भेजे। फिर क्या, हार्ड ड्राइव, केबल्स और ब्रैकेट्स का अलग-अलग बिल—हर पीसी पर करीब $600 (चार-पांच गुना महंगा)!
एक कमेंट करने वाले ने तो ताना भी मार दिया—"ऐसी बॉस को तो नौकरी से निकाल देना चाहिए इतने बेवकूफी के लिए!" (यहाँ आप अपने ऑफिस के उस मैनेजर को याद कर सकते हैं, जो छोटी-छोटी बचत के चक्कर में बड़ी गड़बड़ कर देता है।) एक और पाठक ने हँसते हुए कहा, "मेरे ऑफिस में भी ऐसा ही हुआ था!"
कई लोग पुरानी यादों में चले गए—किसी ने अपने पहले पीसी की बात की, जिसमें 5MB की हार्ड ड्राइव थी, जो आज के मोबाइल के कैमरा सेंसर जितनी बड़ी थी। एक बुज़ुर्ग पाठक ने लिखा, "पहली हार्ड ड्राइव तो एक पुरानी कार के पहिए जितनी बड़ी थी!"
टेक्नोलॉजी, जुगाड़ और भारतीय तड़का
अगर इस कहानी को भारतीय संदर्भ में देखें, तो ये हमारे यहां के 'जुगाड़' कल्चर को बखूबी दर्शाती है। चाहे ऑफिस के प्रिंटर का टोनर खत्म हो जाए, या इंटरनेट बार-बार कटे—हमारी पहली प्रतिक्रिया होती है: "चलो, कोई जुगाड़ निकाला जाए!"
वैसे ही, यहाँ भी बॉस ने शुरुआत में "सिक्योरिटी" और "कंट्रोल" के नाम पर खर्चा बचाने की कोशिश की, लेकिन आखिर में उल्टा महंगा पड़ गया। जैसे कोई शादी में खानदानी हलवाई छोड़कर बाहर का खानसामा बुला ले और बाद में पछताए!
कमेंट्स में एक तकनीकी जानकार ने बताया कि उस जमाने में कम्पैक जैसी कंपनियां अपने पीसी में इतने "प्रोप्राइटरी" पुर्ज़े डालती थीं कि आम दुकानों से खरीदे केबल्स और ब्रैकेट्स फिट ही नहीं होते थे। जैसे आजकल कुछ मोबाइल कंपनियां चार्जर अलग बेचती हैं!
निष्कर्ष: पुरानी गलतियों से मिली सीख
इस कहानी से एक ही सीख मिलती है—"अति बचत भी कभी-कभी भारी पड़ सकती है।" ऑफिस में टेक्नोलॉजी का चुनाव सोच-समझकर करें, वरना रोज़-रोज़ फ्लॉपी लिए घूमना पड़ेगा या फिर जुगाड़ के चक्कर में ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे।
क्या आपके ऑफिस में भी कभी ऐसा कोई किस्सा हुआ है? या आपने भी कभी कोई "जुगाड़" किया जो बाद में सिरदर्द बन गया? कमेंट में जरूर बताइए, और अगर आपको ये आईटी वर्ल्ड की पुरानी कहानी पसंद आई, तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें।
पुराने ज़माने की इन यादों के साथ, आज के हाई-टेक ऑफिस को सलाम!
मूल रेडिट पोस्ट: Booting from floppies Win 95