फायर अलार्म फ्रैन' – होटल की रात और पानी की बोतल की चोरी!
कभी-कभी होटल में ज़िंदगी इतनी नाटकीय हो जाती है कि लगता है जैसे हम किसी हिंदी फिल्म के सेट पर आ गए हैं। सोचिए, शनिवार की रात, होटल पूरा भरा हुआ, चारों ओर गहमागहमी और तभी अचानक फायर अलार्म बज उठता है! अब तो हर कोई दौड़ लगा रहा है, कोई पर्स ढूंढ़ रहा है, कोई अपने जूते पहन रहा है, और कुछ लोग…फोन उठा कर रिसेप्शन को कॉल करने लगते हैं – "ये सच में आग है या प्रैक्टिस है?"
"फायर अलार्म" – खतरे की घंटी या सिर्फ शोर?
हमारे देश में जब भी कोई अलार्म बजता है, तो आम तौर पर लोग पहले सोचते हैं – ‘अरे, ये तो झूठा होगा!’ लेकिन भाई साहब, होटल का फायर अलार्म मज़ाक नहीं होता। कई बार तो कुछ मेहमान रिसेप्शन पर फोन करके पूछते हैं, "ये असली आग है या ड्रिल?" अब सोचिए, अगर सच में आग लगी हो तो ये सवाल करना कितना समझदारी भरा होगा? एक कमेंट करने वाले मेहमान ने तो साफ कह दिया – "ऐसी स्थिति में शिष्टाचार की कोई ज़रूरत नहीं, बस सबको बाहर निकालो!"
होटल कर्मचारी भी क्या करें – एक तरफ मेहमानों को बाहर भेजना, दूसरी तरफ फायर ब्रिगेड को सूचना देना, इमरजेंसी लिस्ट प्रिंट करना, और फिर भी कोई-कोई रिसेप्शन पर आकर पूछता है – "रूम में लौट सकते हैं?" एक अनुभवी कर्मचारी ने शेयर किया कि वो ऐसे वक्त में रिसेप्शन का फोन ही उठा लेते हैं ताकि कोई और कॉल न कर सके, और सारा ध्यान सुरक्षा पर रहे।
"फायर अलार्म फ्रैन" – पानी की बोतल का जुगाड़
अब आते हैं कहानी की असली हीरोइन पर – "फ्रैन"! जैसे ही अलार्म बजा, सब बाहर जा रहे थे, तभी एक अजीब सी चाल चलती महिला भीड़ से निकलकर रिसेप्शन के पास गई। रिसेप्शनिस्ट ने टोका – "मैडम, जल्दी बाहर चलिए!" लेकिन फ्रैन ने जैसे सुना ही नहीं। सीधी मार्केटप्लेस में घुसी, फ्रिज खोला और दो पानी की बोतलें उठाई, फिर रिसेप्शनिस्ट को घूरती हुई बाहर निकल गई।
भाई, ऐसी हिम्मत तो अपने यहाँ शादी में रसगुल्ला पहले उठाने वाले बच्चे में भी कम ही मिलती है! रिसेप्शनिस्ट तो बस देखता ही रह गया – "अब क्या करूं? आग लगी है या नहीं, मैडम को तो बस पानी चाहिए!" एक पाठक ने तो मज़ाक में लिखा – "फ्रैन ने पांच उंगलियों वाला डिस्काउंट मार लिया!" (मतलब, चुपचाप चोरी!)
भारतीय संदर्भ – खतरे को हल्के में लेना!
हमारे यहाँ भी अक्सर देखा गया है कि लोग फायर अलार्म को सीरियस नहीं लेते। ऑफिस या होटल में अगर अलार्म बज जाए, तो लोग पहले सोचते हैं – "कहीं कोई टेस्टिंग तो नहीं हो रही?" कई बार तो कोई बाहर ही नहीं जाता! एक पाठक ने बताया – "एक बार होटल में अलार्म बजा, मैं अकेला बाहर निकला, बाकी सब अंदर बैठकर इंजीनियर को देखते रहे।"
यहाँ तक कि एक और अनुभव साझा करने वाले ने कहा – "अगर असली आग है, तो बाहर निकलना सबसे ज़रूरी है, चाहे बरसात हो, चाहे चप्पल न पहनी हो, या चाबी अंदर रह गई हो। जान है तो जहान है, बाकी सब इंतज़ार कर सकता है।"
टेक्नोलॉजी, सुरक्षा और भारतीय जुगाड़
आजकल विदेशों में ऐसे अलार्म सिस्टम आ रहे हैं, जो बोलकर बताते हैं कि किस कमरे में अलार्म बजा, क्या करना है, और मोबाइल पर भी नोटिफिकेशन आ जाते हैं। मगर भारत में ज़्यादातर जगह अभी भी वही तेज़ बीप-बीप वाली व्यवस्था है। एक पाठक ने लिखा – "हमारे यहाँ तो बस तेज़ आवाज़ बजती है, वो भी इतनी कर्कश कि जान ही निकल जाए!"
फिर भी, चाहे जितना भी आधुनिक सिस्टम आ जाए, जब तक लोग अलार्म को गंभीरता से नहीं लेंगे, तब तक सुरक्षा अधूरी है। एक और कमेंट में कहा गया – "किसी भी स्थिति में, चाहे झूठी हो या असली, सबसे पहले बाहर निकलो, बाकी बातें बाद में!"
निष्कर्ष – अगली बार अलार्म बजे, तो क्या करें?
तो साथियों, अगली बार अगर आप किसी होटल, ऑफिस या मॉल में हों और फायर अलार्म बजे, तो फिल्मी हीरो मत बनिए – ना रिसेप्शन पर फोन कीजिए, ना बोतलें उठाइए, बस जल्दी से सुरक्षित बाहर निकल जाइए। और हाँ, अगर कोई "फ्रैन" जैसा बहादुर दिखे, तो उसकी हिम्मत का लुत्फ उठाइए, लेकिन खुद ऐसा करने की कोशिश मत कीजिए!
क्या आपके साथ भी कभी ऐसा कोई मज़ेदार या अजीब अनुभव हुआ है? नीचे कमेंट में साझा करें – आपकी कहानी भी अगली बार हमारी ब्लॉग की स्टार बन सकती है!
मूल रेडिट पोस्ट: Fire alarm Fran