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फुटपाथ की छोटी सी ज़िद: जब खुद्दारी ने जीत ली बाज़ी

सड़कों पर चलते हुए एक व्यक्ति का कार्टून-3D चित्रण, शहर की इमारतों के करीब से गुजरते हुए।
इस मजेदार कार्टून-3D चित्रण में, एक शहरवासी सड़कों पर चलता है, इमारतों के किनारे पर रहते हुए, हमारे दैनिक जीवन में विकसित होने वाली अनोखी आदतों को उजागर करते हुए।

अगर आपने कभी दिल्ली, मुंबई या लखनऊ की गलियों में पैदल सफर किया है, तो आप जानते होंगे – फुटपाथ पर चलना भी किसी कला से कम नहीं! एक तरफ लोग मोबाइल में खोए, दूसरी ओर बाइकवाले फुटपाथ को ही अपनी शॉर्टकट समझते हैं। और अगर गलती से कोई नियम मानने वाला मिल जाए, तो मानिए मज़ा ही आ जाता है।

आज हम आपको एक ऐसी मज़ेदार कहानी सुनाने वाले हैं, जिसमें एक शख्स की 'छोटी सी ज़िद' बड़े ही दिलचस्प तरीके से सामने आती है। ये कहानी है Reddit के r/PettyRevenge पर वायरल हुई एक पोस्ट की, जिसमें लेखक (u/NonnyNarrations) ने अपनी फुटपाथ पर चलने की अदा और उससे जुड़े एक अजीब टकराव का किस्सा शेयर किया। तो चलिए, जानिए किस तरह उनकी 'पेटी' ज़िद ने एक अजनबी को हैरान कर दिया!

फुटपाथ के नियम: अमेरिका से इंडिया तक

हमारे यहां अक्सर सड़क पर चलने के नियमों की कोई खास परवाह नहीं की जाती। "जिसका जोर, उसकी सड़क" वाली बात है। लेकिन अमेरिका जैसे देशों में पैदल चलने वालों के लिए भी अनकहे नियम होते हैं, जैसे – हमेशा फुटपाथ के दाहिने (राइट) तरफ चलो, ताकि ट्रैफिक फ्लो बना रहे। कुछ-कुछ वैसे ही जैसे हमारे यहां रेल प्लेटफॉर्म पर अक्सर "इस तरफ चलें" की पट्टियां लगी होती हैं, मगर लोग फिर भी अपनी मर्जी से चलते हैं!

u/NonnyNarrations बताते हैं कि वो जब भी शहर में चलते हैं, हमेशा दाहिने किनारे, यानी बिल्डिंग के पास चलते हैं। उनका एक सीधा सा तर्क है – "मैं अपनी लाइन में चलता हूं, जिससे बाकी सबको जगह मिल जाए।" ये नियम वो केवल स्वस्थ और सक्षम लोगों पर लागू करते हैं; बुज़ुर्ग, दिव्यांग, या कोई कुत्ता छांव में लेटा हो, तो वो अपना रास्ता बदलने में हिचकते नहीं। कई पाठकों (जैसे u/Knitsanity) ने भी लिखा – "अगर कोई कुत्ता छांव में बैठा है, तो हम भी अपनी 'राइट साइड' की जिद छोड़ देते हैं। आखिर इंसानियत भी कोई चीज़ है!"

जब दो ज़िद्दी आमने-सामने आ जाएं...

अब असली मज़ा तो तब आता है, जब दो अलग-अलग लोग अपनी-अपनी जिद पर अड़े हों। एक दिन लेखक अपनी पत्नी और भाई के साथ शहर घूम रहे थे। हमेशा की तरह दीवार के पास अपनी लाइन पकड़े चल रहे थे कि सामने से एक अधेड़ उम्र का आदमी भी ठीक वैसे ही दीवार के पास आता दिखा। लेखक ने सोचा, "अब ये सामने आएगा, तो अपनी लाइन छोड़ देगा।" मगर जनाब भी पूरे जिद्दी निकले। दोनों आमने-सामने, और न कोई इधर न कोई उधर!

अजनबी ने मुस्कराते हुए पूछा, "नाम क्या है?" लेखक ने झटके से जवाब दिया, "आपसे मतलब?" फिर वो आदमी थोड़ा डराने की कोशिश करने लगा, मगर लेखक ने भी हार नहीं मानी – फोन निकाला, दीवार से लगकर खड़े हो गए और बेफिक्री से टेक्स्ट करने लगे। आखिरकार हारकर अजनबी को घूमकर जाना पड़ा और जाते-जाते बोला, "पता है, तुम्हारे जैसे लोगों को क्या कहते हैं? पेटी!"

अब सोचिए, जिस शब्द से वो डराने आया था, वही लेखक के लिए 'गर्व' बन गया। लेखक खुद लिखते हैं, "मुझे इतनी हंसी आई कि ग्रुप में जाकर सबको किस्सा सुना दिया।"

'पेटी' होना – शान या शर्म?

यहां 'पेटी' यानी छोटी-छोटी बातों पर अड़ जाना। हमारे यहां तो अक्सर कहा जाता है – "छोटी बातों को दिल पे मत लो", मगर सड़कों पर तो हाल कुछ और ही है। Reddit पर एक पाठक (u/rawmeatprophet) ने लिखा – "ये एक अनकहा सामाजिक अनुबंध है। कोई तोड़ता है, तो फुटपाथ पर अराजकता मच जाती है!" यानी, अगर सब अपनी-अपनी लाइन पकड़ लें, तो "सड़क पर डांस" (step left, step right वाला झंझट) से छुटकारा मिल जाए।

एक और पाठक ने मजाक में कहा, "अगर सामने पांच-पांच महिलाएं एक साथ आ जाएं, तो कोहनी टकरा ही जाती है।" वहीं, तेज चलने वालों का कहना है, "हम तो कम से कम रुकते नहीं, रास्ता मिलते ही निकल लेते हैं!"

दिलचस्प बात ये है कि खुद लेखक ने भी अपने नियम में इंसानियत बनाए रखी है – बुज़ुर्ग, दिव्यांग, जानवर, या फुटपाथ पर सो रहे लोग – इन सबके लिए वो हमेशा रास्ता छोड़ देते हैं। एक पाठक ने तो यहां तक पूछा, "अगर कोई बुरी हालत में है, तो क्या वो राक्षस है?" जिसपर लेखक ने हंसते हुए लिखा – "बिल्कुल नहीं, मैं कोई पत्थरदिल नहीं हूं!"

हमारी गलियों की 'फुटपाथ राजनीति'

अगर इस किस्से को भारतीय सड़कों पर देखें, तो ये सब रोज़ की बात है। रेलवे स्टेशन, मार्केट, कॉलेज के बाहर – हर जगह अपने-अपने 'राइट-ऑफ-वे' के लिए आंखें तरेरना आम है। कई बार छोटे-छोटे झगड़े भी हो जाते हैं, पर असल में ये सब मानवीय व्यवहार का हिस्सा है।

कुछ लोग इसे 'पेटी' कहते हैं, तो कुछ इसे 'सीमा' (boundary) मानते हैं। एक पाठक ने लिखा – "ये बस अपनी हदें तय करने जैसा है, बस थोड़ा आत्मविश्वास के साथ!" वहीं, कईयों को ये फुटपाथ का खेल ही इतना पसंद है कि दोस्तियों में 'पॉइंट्स गेम' खेलते थे – टकराने, बचने और माफी मांगने के अपने-अपने पॉइंट्स!

निष्कर्ष: फुटपाथ की दुनिया भी कम दिलचस्प नहीं

तो साथियों, अगली बार जब आप सड़क या फुटपाथ पर चलें, तो याद रखिए – हर किसी की एक 'लाइन' होती है, और कभी-कभी छोटी-छोटी जिदें भी बड़ी खुशी या हंसी का कारण बन जाती हैं। 'पेटी' कहलाना कोई बुरा नहीं, अगर उसमें सम्मान और थोड़ी सी मस्ती छुपी हो।

आपका क्या अनुभव है? क्या आप भी कभी फुटपाथ पर अपनी लाइन के लिए अड़ गए हैं? नीचे कमेंट में अपनी कहानी जरूर शेयर करें – कौन जाने, आपकी छोटी सी 'पेटी' भी किसी दिन वायरल हो जाए!


मूल रेडिट पोस्ट: The stupidest little petty thing