पैसे और ताकत की करामात: जब 'करन' बनी मुसीबत की जड़
भाई साहब, आजकल के अपार्टमेंट और सोसाइटी में रहना आसान कहाँ! एक तरफ तो शांति की तलाश, दूसरी तरफ कुछ ऐसे किरदार, जिनका नाम सुनते ही सिर में दर्द शुरू हो जाता है। ऐसी ही एक करन (Karen) की कहानी है, जो पैसे और पावर के बल पर अपने आस-पड़ोस और स्टाफ की नाक में दम करती है। लेकिन कहते हैं न, हर एक्शन का बराबर और उल्टा रिएक्शन जरूर मिलता है।
'करन' का जलवा: सोसाइटी की रानी या आफत की जड़?
अब बात करते हैं इस कहानी की असली नायिका—HOA (Home Owners Association) की प्रेजिडेंट, एक बुजुर्ग महिला, जिनका व्यवहार देखकर किसी को भी 'सास-बहू' सीरियल की याद आ जाए। भाई, जब तक लोग सामने हों, मोहब्बत की मूर्ति बनकर मुस्कराएँगी, और जैसे ही पीठ घुमा लो, पीछे से ऐसी बुराई करेंगी कि मानो मोहल्ले की चुगलखोर चाची हों!
इनकी खासियत? अपने पति और सबसे करीबी दोस्त को रंगे हाथों पकड़ना, फिर सालों बाद भी उसी किस्से को हर किसी के सामने दोहराना—"देखो, मैंने तलाक में सब पैसे ले लिए, मैं जीत गई!" और इनका कुत्ता? अरे भई, उस पर तो राम राम! सीधा दूसरे पालतू जानवरों पर झपट पड़ता है, फिर भी दोष दूसरों को ही सुना देती हैं—"अपने डॉगी को संभालिए ज़रा!"
ऑफिस की राजनीति और 'करन' का कंप्यूटर कांड
अब सोचिए, आप नई-नई नौकरी पर गए हों—कंसीयर्ज/सिक्योरिटी का काम, सबकुछ सीखने की कोशिश कर रहे हों, और तभी ये करन मैडम सामने आ जाएं! बिल्डिंग में 24 HD कैमरे, दिन-रात रिकॉर्डिंग, कंप्यूटर बेचारा दिन-रात थका हुआ—लेकिन गलती? सिर्फ कर्मचारी की!
एक छोटी सी तकनीकी गड़बड़ी (क्रैश हुए क्रोम टैब्स), और करन मैडम ने तुरंत ऊँगली उठा दी: "मैं ये नहीं कह रही कि ये आपकी गलती है, लेकिन अगली बार ये वाला फंक्शन यूज़ कीजिएगा।" फिर कुछ घंटे बाद वही दिक्कत, और सीधे HR से फोन—"अब आपको नौकरी पर नहीं आना है।"
सोचिए, किस्सा कितना जाना-पहचाना है—हमारे यहाँ भी तो अक्सर बॉस या सोसाइटी के सेक्रेटरी ऐसे ही तानाशाही दिखाते हैं। गलती सिस्टम की, सज़ा कर्मचारी को!
बदला भी जरूरी है! 'करन' के लिए मुफ़्त कैटलॉग की बाढ़
अब भाई, जब इंसाफ न मिले, तो दिल में जलन होना लाजमी है। तो OP (यानी कहानी के लेखक) ने भी अपनी 'पेटी रिवेंज' का तरीका निकाला—करन मैडम के बिज़नेस एड्रेस पर हर फ्री कैटलॉग, न्यूज़लेटर, ऑफर, मैगज़ीन के लिए ऑनलाइन फॉर्म भरना शुरू कर दिया! अब सोचिए, उनके घर का लेटरबॉक्स—शायद 'झाँसी की रानी' के किले जैसा लग रहा होगा, कागजों से भरा हुआ!
रेडिट कम्युनिटी के लोग तो और भी मस्त आइडिया देने लगे—एक ने तो कहा, "मॉर्मन, जेहोवा विटनेस, साइंटोलॉजिस्ट... सबके विजिट के लिए साइन-अप कर दो, चैन से सो न पाएंगी!" कोई बोला, "सोलर पैनल, इंश्योरेंस, अंतिम संस्कार की योजनाएँ, हर पार्टी की पॉलिटिकल न्यूजलेटर—सबकुछ मंगवा दो!" और हाँ, एक साहब बोले, "अगर पैसे हों तो हाथी, गाय, सूअर का गोबर भी भिजवा सकते हैं—गौर से देखो, भारतीय शादी के कार्ड की तरह गिफ्ट पैक में!"
यहाँ एक और पाठक ने मज़ेदार तंज कसा—"अगर करन के बोलने की रिकॉर्डिंग बाकी लोगों तक पहुँचा दो, तो शायद नौकरी वापस भी मिल जाए!"
क्या ये सही बदला है? सोचिए, समझिए
अब सवाल उठता है—ये बदला सही है या सिर्फ मज़ाक? हमारे समाज में अक्सर देखा गया है—बड़े लोग अपनी पोज़िशन का गलत फायदा उठाते हैं, लेकिन आम आदमी के पास चुपचाप सहने के अलावा चारा नहीं होता। लेकिन यहाँ OP ने 'जुबान की नहीं, दिमाग की लड़ाई' लड़ी।
एक पाठक ने तो लिखा, "क्यों न हर सोसाइटी मेंबर्स को एक चिट्ठी लिखकर बता दो कि करन उनके पीछे क्या-क्या कहती हैं!" दूसरे ने कहा, "शायद अब करन को समझ आ जाए कि ताकत के साथ जिम्मेदारी भी आती है।"
ये कहानी हमें याद दिलाती है कि हर सोसाइटी, ऑफिस, या मोहल्ले में एक 'करन' जरूर होती है—जो खुद को सबका मालिक समझती है, लेकिन भूल जाती है कि एक दिन उसके सामने भी कोई चालाक खिलाड़ी आ सकता है।
निष्कर्ष: आपकी सोसाइटी में भी है कोई 'करन'?
तो दोस्तों, अगर आपके आस-पास भी कोई 'करन' है, जो सिर्फ दूसरों को नीचा दिखाने में विश्वास रखती है, तो याद रखिए—कभी-कभी छोटे-छोटे बदले भी बहुत बड़ा सबक सिखा सकते हैं। वैसे हम हिंसा या बदतमीज़ी को बढ़ावा नहीं देते, लेकिन थोड़ा-सा ह्यूमर, दिमाग और सोशल मीडिया का इस्तेमाल, किसी की नींद जरूर उड़ा सकता है!
आप क्या सोचते हैं—क्या ऐसा बदला लेना सही है? या आपको भी अपने जीवन में कभी किसी 'करन' से दो-चार होना पड़ा है? नीचे कमेंट में जरूर बताइए, और अगर आपको ये कहानी पसंद आई हो, तो शेयर करना न भूलें!
सोसाइटी की राजनीति और करन की कहानियाँ कभी खत्म नहीं होतीं—बस किरदार बदल जाते हैं!
मूल रेडिट पोस्ट: Money+Power=Karen