विषय पर बढ़ें

पड़ोसी ने बच्चे पर बजाई हॉर्न, तो मैंने भी सिखा दिया सबक – शहर में कर दी शिकायत!

हैलोवीन के दौरान सड़क पर साइकिल चलाते हुए बच्चा, पीछे एक चिंतित पड़ोसी के साथ।
हैलोवीन की रात का जीवंत चित्रण, जिसमें एक बच्चा सड़क पर साइकिल चला रहा है, जबकि एक पड़ोसी देख रहा है, जो सामुदायिक तनाव को दर्शाता है।

हमारे मोहल्ले में त्योहारों का अपना ही मज़ा है – खासकर जब बच्चों की टोली मिठाइयों और चॉकलेट की खोज में गलियों में घूमती है। इस बार की 'ट्रिक ऑर ट्रीट' की रात भी वैसी ही थी। बच्चे, मस्ती और हलचल से भरी सड़कें। लेकिन क्या हो जब मोहल्ले का कोई खुद को 'राजा' समझे और बच्चों की खुशियों पर पानी फेर दे? ऐसा ही कुछ हमारी गली में हुआ, जब एक पड़ोसी ने बच्चे को डराने के लिए ज़रूरत से ज़्यादा हॉर्न बजा दी।

अब आप सोच रहे होंगे, इसमें नया क्या है? हर मोहल्ले में एक-दो ऐसे 'बड़ों' की लाइन लगी रहती है जिन्हें बच्चों की मस्ती से एलर्जी होती है। लेकिन इस बार मामला कुछ अलग ही था – और बदले का तरीका भी!

बच्चों की मस्ती में टांग अड़ाना – क्यों भई?

त्योहारों में, खासकर बच्चों के लिए, हमारी गली एकदम जश्न का मैदान बन जाती है। लेकिन कुछ लोगों को शायद यह पसंद नहीं आता। उस रात, जब बच्चे चॉकलेट लेकर हँसते-खिलखिलाते हुए मेरे घर से निकले, उनमें से एक बच्चा अपनी सायकिल लेकर सड़क पर आया। तभी हमारे मोहल्ले के 'खास' पड़ोसी अपनी कार से आ धमके।

बच्चे को देख कर न सिर्फ उन्होंने गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी, बल्कि इतने पास आकर हॉर्न बजाई मानो बच्चा कोई अपराधी हो! मेरे पति और मैंने सारा नज़ारा अपनी आंखों से देखा – और सच कहें तो, गुस्सा भी आया और दुख भी। अरे भाई, बच्चे तो बच्चे होते हैं, वो भी त्योहार की रात! आपको क्या परेशानी थी, जो इतना आक्रामक हो गए?

बदला – थोड़ा सा मज़ेदार, थोड़ा सा चुटीला

हमारे संस्कारों में सिखाया गया है कि बड़ों की इज़्ज़त करो, लेकिन जब कोई बार-बार बद्तमीज़ी करे, तो कभी-कभी 'चुटीला' तरीका अपनाना भी ज़रूरी है। उसी पड़ोसी की दो गाड़ियाँ हफ्तों से हमारे घर के सामने सड़क पर खड़ी थीं। वैसे तो हम कभी कुछ नहीं कहते – मोहल्ले में रहना है, सब चलता है। लेकिन इस बार बच्चे से ऐसा बर्ताव देखा, तो हमने भी शहर के अफसरों को शिकायत करने में देर नहीं लगाई।

सुबह-सुबह नगर निगम वाले आए, दोनों कारों पर नारंगी रंग का नोटिस चिपका गए – 'गाड़ी हटाओ, वरना उठवा ली जाएगी!' अब पड़ोसी महाराज ने अपनी दोनों गाड़ियाँ ऐसी जगह ले जाकर खड़ी कर दी कि न हमारी गली दिखे, न हमारा घर।

यह कोई बड़ा बदला तो नहीं था, लेकिन मन को ठंडक जरूर मिली। जैसे गाँव में कोई शरारती लड़का आम तोड़ने आए और हम उसकी साइकिल की हवा निकाल दें – बस वैसा ही संतोष!

मोहल्ले की राय – 'बच्चे से पंगा? तो भुगतो!'

इस किस्से को लेकर मोहल्ले में खूब चर्चा हुई। कुछ लोग बोले – 'बिल्कुल ठीक किया, ऐसे लोगों के खिलाफ शिकायत करते रहना चाहिए।' एक अंकल ने तो हँसते हुए कहा, "अरे, गाड़ी का हॉर्न बच्चों के लिए नहीं है, खासकर जब वो अपनी धुन में मस्त हों।"

दूसरी तरफ, एक-दो लोगों ने यह भी कहा कि 'बच्चे को भी सड़क पर ध्यान से चलना चाहिए।' लेकिन जब उन्हें पता चला कि बच्चा बिलकुल सही तरीके से सड़क पर था, और पड़ोसी ने जानबूझ कर डराया, तो सबने हामी भर दी कि गलती उसी पड़ोसी की थी।

एक मोहल्ले वाली बुआ ने तो यहाँ तक कह दिया, "बच्चों को डराना और कुत्ते को पत्थर मारना – दोनों पाप बराबर हैं!" और सच कहें तो, जब कोई त्योहार पर बच्चों की मस्ती में खलल डाले, तो उसे भी अपने किए का स्वाद चखना चाहिए।

क्या सीखा – मोहल्ले में रहना है, तो बच्चों से पंगा मत लो!

इस पूरे मामले ने एक बार फिर साबित किया कि मोहल्ले में रहना है, तो धैर्य, समझदारी और थोड़ी हंसी-मज़ाक जरूरी है। बच्चे त्योहार पर खुशियाँ बाँटते हैं – उन पर बेमतलब गुस्सा दिखाना, वो भी सड़क पर, न तो इंसानियत है और न ही समझदारी।

इस किस्से से हमें यह भी समझना चाहिए कि कभी-कभी छोटी-छोटी 'पेटी रिवेंज' (हल्की-फुल्की बदला) से बड़े-बड़ों की अकड़ निकल जाती है। और सबसे ज़रूरी – बच्चों की मस्ती में खलल डालना सिर्फ उनका दिल ही नहीं दुखाता, बल्कि पूरे मोहल्ले का मूड खराब कर सकता है।

अंत में, यही कहना चाहूँगा – बच्चों के साथ प्यार से पेश आइए, उनका त्योहार है, उनकी खुशी में ही मोहल्ले की रौनक है। और अगर किसी ने ज़रूरत से ज़्यादा 'बड़प्पन' दिखाया, तो हल्के-फुल्के तरीके से सबक सिखाना भी बुरा नहीं!

आपको क्या लगता है? क्या आपने कभी किसी पड़ोसी को ऐसे सबक सिखाया है? अपनी राय नीचे कमेंट में जरूर लिखिए – मोहल्ले की मस्ती में सबका स्वागत है!


मूल रेडिट पोस्ट: A neighbor honked at a kid, so I reported them to the city