पड़ोसी की 'मदद' जब हो जाए सिरदर्द: एक छोटी सी बदला-गाथा
“अच्छा पड़ोसी भगवान का वरदान होता है”—हम सबने यह कहावत सुनी है। लेकिन जरा सोचिए, अगर वही पड़ोसी हर वक्त आपके घर के बाहर, आपकी गाड़ी के पास, आपकी खिड़की के सामने, और यहां तक कि आपके आंगन में भी बिना पूछे घुसता रहे, तब? आज की कहानी ऐसे ही ‘अति-उत्साही’ पड़ोसी की है, जिसकी आदतें किसी बॉलीवुड के कॉमेडी विलेन से कम नहीं!
जब 'मदद' बन गई मुसीबत: पड़ोसी की अजब-गजब हरकतें
हमारे नायक (या कहें पीड़ित) का किस्सा किसी छोटे शहर के एक घर से शुरू होता है, जहां उनका पड़ोसी एक पुराने अपार्टमेंट में रहता है। दोनों के घरों के बीच एक छोटी सी घास वाली ज़मीन है, जो हमारे किस्से के नायक की है। मगर पड़ोसी महोदय ने इसे “सार्वजनिक सेवा क्षेत्र” समझ लिया है!
कभी कूड़ा उठाना, कभी घास काटना, कभी झाड़ियों की छंटाई, तो कभी गाड़ियों की सफाई—ये सब वो बिना पूछे, बड़े प्रेम से करते रहते हैं। एक बार तो हद ही हो गई जब उन्होंने घरवालों की यादगार झाड़ी ही उखाड़ फेंकी। और साहब, इतना सब करने के बाद जब कोई टोके, तो परिवार वाले उल्टा यही कहें—“अरे, उसका दिल बड़ा है, इसमें बुरा मानने की क्या बात!”
मोहल्ले की पंचायत: जब सबको मिली 'हीरो' की झलक
अब जरा सोचिए, रविवार की सुबह, जब आप सो रहे हों और अचानक ‘SSCCCCRRRRAAAAAAPE’ (स्क्रैप, स्क्रैप) की आवाज़ से नींद टूट जाए। पड़ोसी साहब 1 सेंटीमीटर बर्फ हटाने के लिए आपके बेडरूम के ठीक बाहर फावड़ा चला रहे हों! ऊपर से आपके कुत्ते की नींद भी खराब, और आपकी भी।
इस बार हमारे नायक ने ठान लिया—अब और नहीं! जैसे ही पड़ोसी ने उनकी गाड़ी को छुआ, तुरंत गाड़ी का “panic alarm” बजा दिया। पूरे मोहल्ले की नजरें पड़ोसी पर, और उनका “हीरो” वाला सपना चकनाचूर! जब पड़ोसी ने फिर कोशिश की, तो फिर से अलार्म… अबकी बार पड़ोसी अपने घर लौट गए—SCRAAAAPING की आवाज़ के साथ!
क्या सिर्फ 'बड़े दिल' का मामला है? समुदाय की राय
इस कहानी ने Reddit पर भी खूब धमाल मचाया। कई लोगों ने सुझाव दिए—“भाई, एक ऊंची बाड़ लगवा लो!” किसी ने कहा, “मशीन से पानी का छिड़काव करवा दो, जैसे ही वो आए, पानी पड़े!” कुछ का मानना था कि शायद पड़ोसी मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं या अकेलेपन में ऐसा कर रहे हैं।
एक यूज़र ने बड़ी समझदारी से लिखा, “अगर बार-बार बोलने के बाद भी वो नहीं मान रहे, तो अब पुलिस को बुलाओ या उनके मकान मालिक से शिकायत करो।” कई लोगों ने यह भी जोड़ा कि ऐसी अनचाही मदद, असल में ‘help’ नहीं, बल्कि ‘intrusion’—यानि दखलअंदाजी है।
हमारे नायक ने भी माना, “कई बार गुस्सा आता है, लेकिन कहीं-न-कहीं लगता है शायद सामने वाले को सब समझ नहीं आता।” लेकिन आखिरकार, हर किसी का ‘personal space’ होता है। और बिना पूछे बार-बार जाना, न सिर्फ बदतमीजी है बल्कि कानूनन भी गलत है।
देसी अंदाज में समाधान: बाड़, कैमरा या सीधा संवाद?
अब सोचिए, अपने मुहल्ले में ऐसा कोई पड़ोसी हो, तो आप क्या करेंगे? कुछ सुझाव तो बड़े ही देसी थे—“कुत्ते की तरह ट्रेन करो, जैसे घंटी बजे मतलब NO!” या फिर “हर जगह ‘No Entry’ का बोर्ड लगा दो।” कैमरा लगाने का भी सुझाव आया, ताकि सबूत रहे।
एक पाठक ने तो मज़ेदार ताना मारा—“अगर सच में सेवा का इतना शौक है, तो किसी वृद्धाश्रम या मंदिर में जाओ, वहाँ सेवा करो!” और किसी ने कहा—“ऐसी ‘मदद’ का क्या फायदा, जिससे सामने वाले की नींद, चैन, और पौधे—all gone!”
निष्कर्ष: पड़ोसी हो तो समझदार!
कहानी से हमें यही सीख मिलती है—मदद वही, जो जरूरत के वक्त, पूछकर और विनम्रता से की जाए। किसी की निजी सीमा का सम्मान करना सबका फर्ज़ है, चाहे वह शहर हो या गाँव। और अगर कोई पड़ोसी बार-बार समझाने के बाद भी न माने, तो कानून का सहारा लेना भी गलत नहीं।
आपके मोहल्ले में भी कोई ऐसा पड़ोसी है जो हर समय “मदद” के बहाने टपक पड़ता है? या आपने कभी ऐसा मजेदार बदला लिया हो? अपने अनुभव नीचे कमेंट में जरूर शेयर करें—शायद अगली कहानी आपकी हो!