पड़ोसी की बेटी और टूटी हुई कार की विंडशील्ड – जब सब्र का बांध टूटा!
क्या आपके पड़ोसी ने कभी आपकी नींद हराम की है? अगर हाँ, तो आप अकेले नहीं हैं! पड़ोस की शांति एक जलेबी की तरह उलझी रहती है, लेकिन जब मामला गाड़ियों की विंडशील्ड पर आ जाए, तब तो सब्र का बांध भी टूट जाता है। आज की कहानी है एक ऐसे शख्स की, जिसने बदला लेने के लिए न केवल दिमाग लगाया, बल्कि पड़ोसी की 'बिगड़ी बेटी' को भी सीधा करने की ठान ली।
जब पड़ोसी की बेटी बनी सिरदर्द
हमारे किस्से के नायक का कहना है कि उनके सामने वाले घर में रहने वाली लड़की, जो अपने एक्स-हसबैंड के साथ 26 फीट के ट्रेलर में रहती है, पड़ोस की ‘फूलन देवी’ बन चुकी है। उम्र कोई ज़्यादा नहीं, लेकिन कारनामे पूरे मोहल्ले को परेशान करने वाले। नशे की लत, बच्चों की जिम्मेदारी से भागना, और गुस्से में पूरी दुनिया को कोसना – ये उसकी आदतें हैं। मोहल्ले में मानो उसका आतंक छाया हो!
अब आप सोच रहे होंगे, “अरे भाई! इसमें नया क्या है? हमारे यहां भी तो ऐसी-वैसी बुआ या मौसी होती ही है।” लेकिन जनाब, मामला तब बिगड़ा जब उस लड़की ने अपने घर के पीछे से बीबी गन या पैलेट गन से अपने पड़ोसी की गाड़ियों को निशाना बना डाला। गाड़ियों की विंडशील्ड पर बारीक दरारें, एक ही जगह – बिल्कुल ‘तेरा निशाना कमाल है’ टाइप!
दो कारें, एक निशाना – संयोग या साजिश?
अब सोचिए, दोनों गाड़ियां अलग-अलग दिन, लेकिन निशान एकदम बराबर! ये कोई आम पत्थर या क्रिकेट की गेंद का काम तो नहीं लग रहा था। जब हमारे नायक ने दोनों गाड़ियों की विंडशील्ड को गौर से देखा तो समझ गए – ये तो किसी ने जानबूझकर किया है। वही जगह, वही ऐंगल, और काँच का दरकना भी एक जैसा।
हमारे देश में तो बच्चे गलती से गेंद मार दें तो पूरी कॉलोनी जमा हो जाती है – “माफी मांगो, शर्मा जी की कार टूट गई!” लेकिन यहां मामला कुछ और था। गाड़ियों की मरम्मत भी कोई सस्ता सौदा नहीं है, खासकर जब गाड़ी नई हो और दिल भी टूटा हो!
बदला लेने की रणनीति – मोहल्ला स्टाइल!
अब सवाल था – क्या किया जाए? सीधे-सीधे लड़ाई करने से बात बिगड़ सकती थी। तो नायक ने सोचा, “क्यों न उसके पिताजी से बात की जाए?” आखिरकार, भारत में भी तो बड़े-बुजुर्गों की बात का असर होता है। यहां भी वैसे ही सोचा गया – या तो विंडशील्ड ठीक करवाओ, या अदालत जाओ!
लेकिन मामला यहीं नहीं रुका। हमारे नायक ने सोचा कि अगर पिताजी टालमटोल करें, तो गुप्त तरीके से एक अनजान चिट्ठी भी डाली जा सकती है – बिल्कुल वैसे जैसे हिंदी फिल्मों में विलेन धमकी देता है! और अगर बात नहीं बनी, तो फॉरेंसिक एक्सपर्ट (यहां आप इसे ‘गांव का होशियार’ कह सकते हैं) बुलाकर सबूत भी इकट्ठे किए जा सकते हैं।
मोहल्ले की राजनीति और चुप्पी का खेल
इन सबके बीच, पड़ोसी के पिताजी ने भी चालाकी दिखाई – अपनी गाड़ी अब गैरेज में छुपा दी! जैसे कोई बच्चा गलती करने के बाद छुप जाता है। बेटी को बार-बार नई गाड़ी दिलवाना, और छत पर सोलर पैनल लगवाना – मानो सब कुछ सही दिखाने की कोशिश। लेकिन मोहल्ले में सबकी नजरें गिद्ध की तरह होती हैं, कौन क्या कर रहा है, सबको पता होता है!
ऐसे मामलों में अक्सर हमारे समाज में भी या तो पंचायत बैठती है, या फिर चुपचाप सबकुछ सह लिया जाता है। लेकिन जब बात खुद की मेहनत की कमाई पर आती है, तब हर कोई हक मांगता है – और ये सही भी है।
निष्कर्ष – आपके पड़ोसी के लिए कौन सा तरीका सही?
दोस्तों, इस कहानी से एक बात तो साफ है – मोहल्ले की राजनीति कभी खत्म नहीं होती! कभी पड़ोसी की बेटी, कभी उसका कुत्ता, तो कभी उसकी गाड़ी – झगड़े की वजहें कभी खत्म नहीं होतीं। ऐसे में क्या किया जाए?
क्या आप भी ऐसे किसी पड़ोसी से परेशान हुए हैं? क्या आपने कभी कोई मस्त बदला लिया है? या फिर आप भी सब्र का घूंट पीकर रह गए? अपने अनुभव जरूर साझा करें – हो सकता है आपकी कहानी अगली बार यहां चर्चा में आ जाए!
चलते-चलते एक बात – पड़ोसी अगर परेशान करें, तो सीधे बात करें, या फिर कोई पेटी रिवेंज वाला तरीका अपनाएं। लेकिन ध्यान रहे, शांति बनाए रखना भी उतना ही जरूरी है जितना अपनी गाड़ी की सुरक्षा!
आपकी राय का इंतजार रहेगा – कमेंट में जरूर बताएं!
मूल रेडिट पोस्ट: Neighbors Daughter