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पिज्जा दुकान में नई मैनेजर का ‘किताबी ज्ञान’ और कर्मचारियों की जबरदस्त बदला-कहानी!

कॉलेज का छात्र, पिज्ज़ा की दुकान में हलचल में, एक सिनेमाई दृश्य के बीच में।
मेरी पहली नौकरी के असिस्टेंट मैनेजर के रूप में पिज्ज़ा की दुकान के इस तूफानी अनुभव में डूब जाइए! यह सिनेमाई पल उन शुरुआती दिनों की अराजक ऊर्जा को कैद करता है, जहाँ हर शिफ्ट एक नई रोमांचक कहानी थी। आइए, मैं आपको उन ऊँचाइयों और निचाइयों के बारे में बताता हूँ जो मैंने पिज्ज़ा व्यवसाय के ताने-बाने को समझते हुए अनुभव की!

कहते हैं, “जहाँ चार बरतन होंगे, वहाँ खटकेंगे ही।” अब सोचिए, अगर किसी खाने-पीने की दुकान में अचानक कोई नई मैनेजर आ जाए, वो भी ऐसी जो सबकुछ सिर्फ किताबों में पढ़े नियमों से चलाना चाहती हो, तो क्या होगा? आज की कहानी है ऐसे ही एक पिज्जा दुकान की, जहाँ ‘किताबी ज्ञान’ और असली दुनिया की टक्कर में मजेदार हंगामा मच गया।

जब कॉलेज का लड़का बना पिज्जा शॉप का बॉस

ये किस्सा Reddit के u/webfloss नामक यूज़र ने साझा किया, जो कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ एक पिज्जा दुकान में असिस्टेंट मैनेजर की नौकरी कर रहे थे। असली मैनेजर के अचानक इस्तीफा देने के बाद, सिर पर सारी जिम्मेदारी आ गई – दुकान चलाने से लेकर कर्मचारियों को संभालना, हर काम इन्हीं के कंधों पर आ गया।

कम उम्र में इतनी बड़ी जिम्मेदारी किसी के भी पसीने छुड़ा दे, लेकिन जनाब ने सबकुछ झट-पट सीख लिया। यहाँ तक कि कंपनी ने मैनेजर बनने का ऑफर भी दे डाला, लेकिन पढ़ाई के चलते ज्यादा बंधन लेना इन्हें पसंद नहीं था।

‘किताबी मैडम’ की एंट्री और दुकान में मची अफरा-तफरी

फिर एक दिन आईं नई मैनेजर – ताजगी से ट्रेनिंग लेकर, नियमों की किताब हाथ में लिए। आते ही दुकान में सालों से बन रही सेटिंग्स, प्रैक्टिकल सिस्टम, सबको किनारे कर दिया और सख्ती से किताब का हर नियम लागू करने लगीं।

अब जो लोग दुकान को असलियत में चला रहे थे, उनके अनुभव को एकदम नजरअंदाज़ कर दिया गया। पिज्जा को ‘हॉट एंड रेडी’ रखना था यानी पहले से तैयारी जरूरी थी, पर मैडम को ‘बुक’ से ज़रा भी इधर-उधर मंज़ूर नहीं था।

सप्ताह के ज्यादातर दिन दुकान में कम भीड़ रहती थी, लेकिन शुक्रवार और वीकेंड आते ही दुकान में जैसे मेला लग जाता! पुराने स्टाफ का कहना था कि शुक्रवार के लिए चार गुना ज्यादा आटा, सौ से ऊपर पिज्जा बॉक्स, सबकुछ एडवांस में तैयार करना पड़ता है। लेकिन नई मैडम– “नहीं! किताब में जितना लिखा है, उतना ही बनेगा, बाकी फिजूल खर्ची है।”

अनुभवी कर्मचारियों का धैर्य टूटा, बदले की कहानी शुरू

कई बार समझाने के बाद भी जब नई मैनेजर नहीं मानीं, तो असिस्टेंट मैनेजर (हमारे कहानीकार) ने हार नहीं मानी। गणित से लेकर, पुराने आंकड़ों तक, हर तरह से समझाया कि अगर तैयारी कम होगी तो रात की शिफ्ट वाले कर्मचारी और ग्राहक दोनों ही परेशान होंगे। आखिरकार, बहुत टालमटोल के बाद कुछ बातें तो मान लीं, लेकिन ज़्यादातर तैयारी अधूरी रह गई।

शुक्रवार दोपहर को जब पिज्जा तैयार करने की बात आई, तब तो जैसे महाभारत छिड़ गया – मैनेजर बार-बार रोकती रहीं और स्टाफ लगातार समझाता रहा कि “अरे दीदी, वीकेंड की भीड़ आप देख नहीं रहीं!” आख़िरकार बहस इतनी बढ़ गई कि असिस्टेंट मैनेजर को थोड़ा बाहर जाकर खुद को शांत करना पड़ा।

फिर आया असली ‘पेटी रिवेंज’ का मोड़! जनाब ने दुकान के सभी नाइट शिफ्ट वालों को फोन कर दिया: “भाई लोग, आज दुकान में जो तांडव होने वाला है, उससे बच जाओ तो अच्छा!” नतीजा – एक के बाद एक सबने अपनी शिफ्ट कैंसिल कर दी। अंदर फोन की घंटी बजती रही, और नई मैनेजर अकेली पड़ गईं।

लाइनों में खड़े ग्राहक, घबराई मैनेजर – और कर्मचारी का विजयी विदा

शाम के 5 बजने से पहले ही दुकान के बाहर लंबी लाइनें लग गईं। मैनेजर इधर-उधर भागती रहीं – फोन पर स्टाफ को बुलाने की कोशिश, दूसरे आउटलेट्स से मदद मांगना…सब बेकार। असिस्टेंट मैनेजर (कहानीकार) ने बिना कोई बात किए, 5 बजे अपनी शिफ्ट खत्म की, मैनेजर को ‘आंखों में आंखें डाल’ देख कर टाइम पर घर निकल गए – “बस, आज का मेरा आखिरी दिन है।”

सामूहिक अनुभव और मजेदार टिप्पणियाँ

Reddit पर इस कहानी को पढ़कर ढेरों लोगों ने अपनी अपनी दुकान की यादें ताज़ा कीं। एक कमेंट में किसी ने लिखा, “ये तो हर जगह होता है – नई मैनेजर आती है और बिना समझे सबकुछ बदलने लगती है, पुराने स्टाफ का अनुभव पूरी तरह अनदेखा!”

एक और ने तो यहाँ तक कहा, “किताबें लिखने वाले शायद कभी असली दुकान में खड़े नहीं हुए होंगे!” घर-घर यही कहानी – चाहे पिज्जा की दुकान हो या गाँव का समोसे वाला, अनुभव और व्यवहारिक समझ कभी किताबों से नहीं सीखी जा सकती।

किसी ने लिखा, “अगर मैनेजर को सबक सिखाना है, तो उसे उसी की बनाई मुसीबत में फँसने दो, तभी समझ आएगा!” और एक कमेंट में तंज कसते हुए कहा गया, “पिज्जा दुकान वाले ही नहीं, हर जगह ऐसे मैनेजर मिल जाते हैं – बस, अपने सिग्नेचर छोड़ने के चक्कर में सबकुछ उल्टा-पुल्टा कर देते हैं!”

क्या सीख मिली?

इस किस्से से हमें यही सबक मिलता है – जिस जगह की मिट्टी नापी नहीं हो, वहाँ अपने जूते पहन कर मत दौड़ो। अनुभव, लोकल समझ और टीम की सलाह, कभी भी ‘किताबी ज्ञान’ से ऊपर होती है।

हमारे कहानीकार ने भी यही किया – टीम को बचाया, ग्राहकों का ख्याल रखा और जब सब्र का बाँध टूटा तो चुपचाप, शांति से ‘रिवेंज’ लेकर विदा हो गए।

आपकी राय क्या है?

क्या आपके ऑफिस या दुकान में भी कभी ऐसा ‘किताबी मैनेजर’ आया है? या आपने भी कभी ऐसी चालाकी से किसी को सबक सिखाया? नीचे कमेंट में अपनी मजेदार कहानी जरूर साझा करें!

पिज्जा खाते-खाते अगर ये ब्लॉग पढ़ा हो, तो अगली बार दुकानदार को सलाम जरूर करना – क्योंकि हर गर्म पिज्जा के पीछे कई बार ऐसी ही जंग छुपी होती है!


मूल रेडिट पोस्ट: Pizza pizza! Chaos