पांच मिनट तो क्या, आधा घंटा भी कम था! जब एक 'कागोल' को मिली आलू वाली सज़ा
हर किसी के जीवन में एक न एक बार ऐसा जरूर होता है जब कोई अजनबी अपनी ज़िद या बदतमीज़ी से हमारा दिन बिगाड़ देता है। पर क्या हो जब आप भी उसे उसी की भाषा में जवाब दें, वो भी जरा हटके अंदाज़ में? आज की कहानी फ्रांस के एक छात्र की है, जो समय पर क्लास पहुँचने के चक्कर में एक जिद्दी 'कागोल' से टकरा जाता है — और फिर जो होता है, वो किसी बॉलीवुड मसालेदार सीन से कम नहीं!
सुबह-सुबह मुसीबत का आलम: जब रास्ता रोक ले कोई 'कागोल'
साल 2001, फ्रांस का दक्षिणी इलाका, सुबह के 8 बजे। हमारे नायक (छात्र) कॉलेज के लिए वैसे ही लेट हो रहे थे। ऊपर से उनकी 'स्टूडेंट कार' (जिसे अपने यहाँ "छात्रों की पुरानी अल्टो" वाली इमेज समझिए) को पार्किंग से निकालने जाते हैं, तो देखते हैं कि बाहर निकलने का रास्ता किसी चमचमाती काली Nissan X-trail ने पूरी तरह से जाम कर दिया है। गाड़ी की हालत देखकर तो लगता है जैसे उसने कभी अपनी जगह से हिली ही नहीं!
गाड़ी से उतरती है एक 'कागोल' — फ्रांस की भाषा में ऐसी लड़की जो ज़्यादा बोलती है, दिखावे वाली है, और हर वक्त लाइमलाइट में रहना चाहती है। सोचिए — ब्लीच किए बाल, जड़ से काले, लेदर जैसी टैनिंग, मुंह में च्युइंग गम और कोने में सिगरेट फंसी हुई। मानो मुंबई के 'लोकल ट्रेन' में बैठी कोई 'बिंदास' दीदी हो!
छात्र साहब ने गुस्से में हॉर्न बजाया और मैडम से विनती की — "बहनजी, गाड़ी हटाइए, देर हो रही है।" जवाब में मिली सीधी उंगली और ताना — "पैंटी में ट्विस्ट मत डालो, पाँच मिनट में चली जाऊँगी, चिल करो!"
पाँच मिनट से आधा घंटा: धैर्य का इम्तिहान और बदले की तैयारी
अब यहाँ से असली मज़ा शुरू होता है। पाँच मिनट बीत गए — 'कागोल' गायब। दस मिनट — कोई अता-पता नहीं। पंद्रह मिनट — जैसे गाड़ी के साथ उसकी आत्मा भी पार्क हो गई हो! छात्र बेचारे सोच रहे थे — अब तो क्लास भी छूट गई, ऊपर से प्रोफेसर की डांट भी पक्की।
सोचा, चलो शांति से बात कर लें। अंदर जाकर देखते हैं, मैडम आराम से कॉफी, सिगरेट और गप्पें मार रही हैं। जब दोबारा गाड़ी हटाने को कहा तो जवाब मिला — "दिखता नहीं, मैं काम कर रही हूँ? आधे घंटे में फुर्सत मिलेगी, भागो यहाँ से!"
यहाँ एक पाठक ने कमेंट में लिखा, "भैया, तुमने तो बड़ी सहनशीलता दिखाई, पंद्रह मिनट तक इंतजार किया!" इस पर खुद लेखक ने बताया, "मैंने टाउन सर्विस को पहले ही कॉल कर दिया था। बस यही देखना था कि गाड़ी को 15 मिनट कैसे रोकूं!"
मिसाल बन गया आलू: जब बदमाशी का मिला अनोखा जवाब
अब सवाल था — गाड़ी को कैसे फँसाया जाए? यहाँ असली 'जुगाड़' शुरू होता है। हमारे यहाँ जैसे दादी कहती हैं — "जहाँ चाह, वहाँ राह!" छात्र चुपचाप अपने अपार्टमेंट में गए, किचन से एक आलू निकाला और सीधा गाड़ी के एग्जॉस्ट पाइप में ठूस दिया! ऊपर से चारों टायर की हवा भी निकाल दी — पर ध्यान रहे, कोई नुक़सान नहीं, बस थोड़ी देर के लिए अटका दिया।
इस पर एक और कमेंट आया — "आलू तो क्लासिक है, पर एक्सपैंडिंग फोम ज्यादा मजेदार होता!" खुद लेखक ने भी हँसते हुए जवाब दिया — "वो कहानी फिर कभी!"
पढ़ने वालों को भी यह जानकर मज़ा आया कि आलू जैसी साधारण चीज भी किसी को सबक सिखाने का हथियार बन सकती है। एक अन्य पाठक ने चुटकी ली, "बेचारा आलू, फ्रेंच फ्राइज बन सकता था, पर आज उसकी किस्मत में एग्जॉस्ट पाइप लिखा था!"
पुलिस का पंच और समाज का संदेश
आखिरकार, 'कागोल' मैडम जब बाहर आईं, तो गाड़ी के चारों टायर पिचके देख उनके चेहरे की रंगत उड़ गई। ऊपर से टो ट्रक और पुलिस भी पहुँच गई। पुलिस से बहस करने की बदतमीज़ी में उन्हें न सिर्फ गैरकानूनी पार्किंग का जुर्माना मिला, बल्कि पुलिस से बदतमीज़ी का भी!
यहाँ एक कमेंट का जिक्र करना जरूरी है — "हमारे यहाँ तो ऐसी हरकत करने वालों को मोहल्ले वाले मिलकर सबक सिखा देते हैं।" सही कहा — चाहे फ्रांस हो या हिंदुस्तान, बदतमीज़ी की सज़ा मिलनी ही चाहिए।
निष्कर्ष: जुगाड़, धैर्य और थोड़ा सा बदला — ये है असली जिंदगी
कहानी से एक बात तो साफ है — हर बार सीधे टकराना या गुस्से में जवाब देना जरूरी नहीं। कभी-कभी थोड़ा मजाकिया और रचनात्मक जुगाड़ भी बड़ी समस्या का हल हो सकता है। जैसे हमारे छात्र ने आलू से मैडम को सबक सिखाया, वैसे ही हम भी अपनी रोजमर्रा की परेशानियों में धैर्य और समझदारी से काम लें।
आपका क्या अनुभव रहा है? क्या आपने कभी ऐसा कोई जुगाड़ अपनाया है? कमेंट में जरूर बताइए, और हाँ — अगली बार अगर कोई रास्ता रोके तो आलू की याद जरूर आएगी!
मूल रेडिट पोस्ट: 'Don't get your panties in a twist. I'll be gone in 5 minutes anyway.'