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नियम तोड़ने वाले 'कैरन' को उसी की भाषा में जवाब – एक शहरी पार्क की छोटी-सी बदला कहानी

कभी-कभी हमारे पड़ोस में छोटी-छोटी बातों को लेकर ऐसा ड्रामा हो जाता है, जिसे देख-सुनकर लगता है मानो टीवी सीरियल का लाइव एपिसोड चल रहा हो। खासकर जब बात हो नियमों की, और नियम तोड़ने-मनवाने वालों की। आज की कहानी एक ऐसे ही शख्स की है, जिसे एक 'कैरन' ने नियम तोड़ने पर टोक दिया, लेकिन साल भर बाद उसी ने 'कैरन' को उन्हीं के हथियार से जवाब दिया।

क्या आपने कभी अपने मोहल्ले के पार्क में सुबह-सुबह डॉग वॉक करते हुए ऐसे किसी सख्श से सामना किया है जो नियमों का ठेकेदार बना घूमता हो? अगर हां, तो ये कहानी आपके दिल में एक हल्की सी मुस्कान छोड़ जाएगी।

सुबह-सुबह पार्क में डॉग वॉक – और नियमों की चूहे-बिल्ली

इस कहानी का नायक, Reddit यूज़र u/RaspitinTEDtalks, हर सुबह अपने प्यारे हस्की कुत्ते के साथ पास के शहरी पार्क में जाता था। नियम के मुताबिक, पार्क में डॉग्स को हमेशा पट्टे (leash) में रखना चाहिए, लेकिन अगर पार्क खाली हो तो पांच मिनट के लिए वो अपने डॉग को खुला छोड़ देता। यही उसकी छोटी सी ‘गलती’ थी, लेकिन उसका कहना था – कोई दूसरा आ जाए, तो तुरंत पट्टा लगा देता।

इसी दौरान एक दिन एक मोहतरमा, जिन्हें इंटरनेट की भाषा में 'कैरन' कहा जाता है (हमारे यहां इन्हें 'नियमों की बुआ', 'मोहल्ले की प्रधान' या 'सुपरवाइजर आंटी' भी कह सकते हैं), अपने डॉग के साथ वहां से गुजर रही थीं। उन्होंने देखते ही ताना मारा – "बड़ा अच्छा है, आपको तो नियम मानने की ज़रूरत ही नहीं।"

हमारे नायक ने भी तपाक से जवाब दिया – "हां, सही कहा आपने।" मन ही मन सोचा, काश कुछ और तीखा बोल देता, जैसे – "क्या मतलब, जैसे कभी औरत को हाथ ना लगाना?" (यहां गौर करें, ये जवाब उसने सिर्फ सोचा, बोला नहीं।)

साल भर बाद – वही कैरन, पर अब पासा पलट गया

समय बीत गया। कैरन और हमारे नायक के रास्ते कई बार फिर टकराए, लेकिन दोनों ने एक-दूसरे को नजरअंदाज ही किया। फिर एक दिन, करीब एक साल बाद, वही कैरन एक नए पार्क के रास्ते स्कूल की पार्किंग में डॉग के साथ जा रही थीं। हमारे नायक ने संयम से काम लिया – अपने डॉग को साइड में किया और उन्हें निकलने दिया।

जैसे ही कैरन स्कूल के परिसर में घुसीं, नायक ने मौका देखकर वही ताना लौटा दिया – "स्कूल परिसर में सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक डॉग्स अलाउड नहीं हैं। बड़ा अच्छा है, आपको तो नियम मानने की ज़रूरत ही नहीं।"

कैरन ने हल्की हंसी में बात टाल दी, "अरे, कोई सालों से ध्यान नहीं देता।" मगर नायक ने भी अबकी बार डायलॉग मार ही दिया – "नहीं, असल में आप सिर्फ उन्हीं नियमों की परवाह करती हैं जो आपको पसंद हों। यही तो दोगलापन है।"

कैरन मुस्कराती हुई निकल गईं, लेकिन इस बार नायक के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी – "लो, तुम्हारे ही तीर से तुमको मार दिया!"

कमेंट्स – जब इंटरनेट बना पंचायत का चौपाल

अब Reddit पर इस कहानी को लेकर जो महाभारत छिड़ी, वो कम मज़ेदार नहीं। किसी ने कहा – "भाई, ये तो 'कैरन बनाम कैरन' हो गया, दोनों ही नियम तोड़ने में उस्ताद!" एक दूसरे यूज़र ने तंज कसा – "कड़ाही में छेद करने वाला तवा से कहता है – देख, तेरा भी पेट फटा है!"

कुछ लोगों को नायक की 'सोच' पर ऐतराज भी था, कि ‘औरत को हाथ न लगाने’ वाली बात दिमाग में क्यों आई? किसी ने इसे सीधा मर्दवादी सोच कह डाला। मगर कुछ लोग बोले – "कैरन शब्द हर तेज आवाज़ उठाने वाली महिला के लिए नहीं, बल्कि उनके लिए है जिन्हें लगता है नियम उनके लिए बने ही नहीं।"

एक कमेंट में बड़ा मजेदार तर्क निकला – "हम सब कभी-कभी ऐसे छोटे नियम तोड़ते हैं, लेकिन दूसरों को उसी के लिए जज भी करते हैं। असल मुद्दा ये है कि खुद नियम तोड़ो, तो चुप रहो, दूसरों को उपदेश ना दो।"

असल जिंदगी में ऐसे 'कैरन' हर गली-मोहल्ले में

हमारे यहां भी ऐसे 'कैरन' या 'काका' मिल जाएंगे – जो खुद तो गाड़ी नो पार्किंग में लगा देंगे, और किसी और ने किया तो नगर निगम को फोन कर देंगे। मोहल्ले की पार्क में बच्चों को खेलने से रोकना, लेकिन अपने पोते-पोती को झूले पर बैठाना – ये सब अपनी-अपनी सहूलियत के नियम हैं।

यह कहानी हमें यही सीख देती है – कभी-कभी दूसरों की छोटी गलतियों को तूल देना, खुद को ही कटघरे में खड़ा कर सकता है। और सबसे जरूरी – जब तक आपकी गलती से किसी को सच में नुकसान नहीं, मोहल्ले की शांति में खलल नहीं, तो टोकाटाकी में भी संयम रखना चाहिए।

जैसे एक कमेंट में लिखा था – "अगर मोहल्ले में सबको बुरा न लगे, और कोई नुकसान न हो, तो 'चुप रहो, आनंद लो' – यही शहरी जिंदगी का पहला नियम है!"

निष्कर्ष – ‘प्याले में तूफान’ वाली बदला कहानी

कहानी जितनी छोटी, उतनी ही मजेदार – और सीख भी साफ़: 'दूसरों को टोकने से पहले अपने गिरेबान में भी झांक लें।' आखिरकार, नियमों की आड़ में अपनी चलाना, औरों की गलती पर उंगली उठाना – दोनों ही किसी को बड़ा नहीं बनाते।

अब बताइए, आपके मोहल्ले में भी ऐसे कोई 'कैरन' या 'काका' हैं, जिनकी वजह से पार्क या सोसाइटी में हंगामा मच जाता है? या कभी आपने भी किसी को इसी तरह 'उनकी ही भाषा' में जवाब दिया हो? नीचे कमेंट में जरूर शेयर करें – क्योंकि भाई, हर गली-मोहल्ले की अपनी अलग ही ‘पेटी रिवेंज’ स्टोरी होती है!


मूल रेडिट पोस्ट: Rescold Served Cold