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नाइट ऑडिटर की नौकरी: रात की शिफ्ट और बेहूदगी के किस्से

अगर आप सोचते हैं कि होटल में रात की शिफ्ट यानी नाइट ऑडिट की नौकरी बस कंप्यूटर पर हिसाब-किताब जमाने या मेहमानों के लिए चाय-कॉफी तक ही सीमित है, तो जनाब आप बहुत बड़ी गलतफहमी में हैं! असल ज़िंदगी में, रात की शिफ्ट में काम करने वाले कर्मचारियों को ऐसी-ऐसी अजीब और हैरतअंगेज़ घटनाओं का सामना करना पड़ता है, जिनके आगे बॉलीवुड की थ्रिलर फिल्में भी फीकी पड़ जाएं।

आज हम आपको ऐसी ही एक महिला नाइट ऑडिटर की कहानी सुना रहे हैं, जिसने तीन सालों के अनुभव में वो सब देखा, जो आम लोग फिल्मों में भी नहीं देख पाते। कभी शराबी मेहमानों की बदतमीज़ी, कभी फोन पर अश्लील बातें, तो कभी होटल के पब्लिक बाथरूम में रोमांस के प्रयास – इन सबके बीच खुद की सुरक्षा और आत्मसम्मान बचाए रखना अपने-आप में एक जंग है।

रात की शिफ्ट: गिनती की नहीं, सहने की नौकरी!

होटल का नाइट ऑडिटर यानी रात का पहरेदार – नाम भले ही शाही सा लगे, पर जिम्मेदारी और खतरे किसी चौकीदार से कम नहीं। ऊपर से अगर आप महिला हैं या महिला जैसी दिखती हैं, तो समझ लीजिए, हर रात कोई न कोई 'रंगीन मिज़ाज' मेहमान आपको तंग करने ही आ जाएगा।

हमारी मुख्य किरदार बताती हैं कि कैसे शराब के नशे में धुत मेहमान कभी होटल के इन्फ्लेटेबल शुभंकर को पीट देते हैं, तो कभी दुकान से सामान चुराकर मासूम बनने की एक्टिंग करते हैं। फोन पर 'सेक्स चैट' के लिए तरह-तरह के जुगाड़ भिड़ाते हैं, और हद तो तब हो जाती है जब लोग पब्लिक बाथरूम में ही रोमांस की कोशिश करते हैं, जबकि उनके पास ऊपर कमरे भी होते हैं!

इतना ही नहीं, कई मेहमान तो अपने कमरे से फोन कर 'स्पेशल सर्विस' की मांग करते हुए बार-बार कॉल करते हैं। इसलिए हमारी नाइट ऑडिटर ने नाम का बैज पहनना भी छोड़ दिया – "भई, अगर नाम से भी मुझमें रोमांटिक फीलिंग्स जगा सकते हो, तो नाम ना ही बताऊं तो अच्छा!"

बेहूदगी की हद: जब आधी रात को 'सरप्राइज' मिला

पिछले हफ्ते तो हद ही हो गई। रात के करीब 2:30 बजे एक मेहमान ने फोन करके कमरे में तकिए मंगवाए। नाइट शिफ्ट में ये आम बात है – तकिए, तौलिए, पानी... सब देना पड़ता है। ऑडिटर साहिबा तकिए लेकर पहुंचीं, जैसे ही दरवाजा खोला, सामने से 'आधा आदमी' पूरी 'आनंदित अवस्था' में खड़ा था!

अब आप सोचिए, कोई 'अजनबी', वो भी आधी रात को, ऐसे 'अवतार' में खुलेआम दरवाजा खोले, तो किसका दिल न दहल जाए! हमारी बहादुर ऑडिटर तुरंत नीचे भागीं, पुलिस को फोन किया और उस मेहमान को गिरफ्तार करवा दिया।

जैसा कि कई पाठकों ने कमेंट में लिखा – "अच्छा हुआ पुलिस को बुलाया, बहुत लोग तो ऐसे मामलों में डर के मारे चुप रह जाते हैं।" एक और कमेंट में कहा गया – "जब तक ऐसे लोगों को सजा नहीं मिलेगी, इनकी हिम्मत बढ़ती ही जाएगी।"

क्या होटल वाले ही सबसे आसान शिकार हैं?

होटल या ग्राहक सेवा (कस्टमर सर्विस) की नौकरियों में काम करने वालों को अक्सर लोग 'आसान शिकार' समझते हैं। एक पाठक ने शानदार बात कही – "कोई बैंक मैनेजर या डॉक्टर के सामने तो ऐसे कभी नहीं करेगा, पर होटल में क्यूँ? क्योंकि होटल वाले मजबूरी में 'शालीन' बने रहते हैं, और गाहक को 'भगवान' मानना हमारी आदत है।"

एक और कमेंट में एक अनुभवी नाइट ऑडिटर ने सलाह दी – "अगर कभी किसी कमरे में कुछ देना हो, तो सामान दरवाज़े के बाहर छोड़ दो, दरवाजा खटखटाओ और फटाफट वहां से दूर हो जाओ। और हमेशा वॉकी-टॉकी साथ रखो, ताकि लोगों को लगे कि आप अकेले नहीं हो।"

कुछ लोग तो कहते हैं – "हमारे होटल में नियम है, रात में कोई सामान चाहिए तो खुद रिसेप्शन पर आओ, डिलीवरी नहीं होगी।"

महिला ही नहीं, पुरुष कर्मचारियों को भी ऐसे अनुभव होते हैं। एक सज्जन ने लिखा – "मुझे भी महिला मेहमान ने गलत इरादे से परेशान किया, पर शुक्र है कि मैनेजमेंट ने मेरा साथ दिया।" इससे साफ है कि ये समस्या सिर्फ महिलाओं तक सीमित नहीं है, पर महिलाओं को निशाना बनाए जाने के मामले ज़्यादा हैं।

इन मुश्किलों में भी जज्बा कायम!

इतने सबके बावजूद, होटल कर्मचारियों का हौसला कम नहीं होता। जैसा कि एक अनुभवी महिला नाइट ऑडिटर ने लिखा – "मैंने हमेशा ऐसी हरकतों पर तुरंत ब्रेक लगा दिया। कभी ज़रूरत पड़ी तो सीधे धमकी देती हूँ कि फिर से किया तो होटल से बाहर निकाल दूँगी!"

कुछ लोग इस नौकरी को पसंद भी करते हैं, जैसे एक कमेंट में लिखा – "मुझे रात में अकेले बंद दरवाजों के पीछे काम करना अच्छा लगता है, पर सबकी किस्मत इतनी अच्छी नहीं होती।"

कई बार ग्राहक अपने दुख, दर्द, परेशानियाँ भी रिसेप्शन पर ही उंडेल देते हैं। एक पाठक ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा – "कृपा करके अपने दुख डॉक्टर या काउंसलर को सुनाइए, मैं तो बस अपनी तनख्वाह के लिए यहाँ हूँ!"

समाधान: बदलाव ज़रूरी है

इस किस्से से साफ है कि होटल इंडस्ट्री में सुरक्षा, सम्मान और मानसिक सेहत के मुद्दे बेहद गंभीर हैं। होटल मालिकों को चाहिए कि वो अपने स्टाफ की सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतज़ाम करें – जैसे सीसीटीवी, वॉकी-टॉकी, सख्त नियम, और सबसे अहम – कर्मचारियों का साथ देना।

साथ ही, समाज को भी समझना होगा कि 'कस्टमर सर्विस' में काम करने वाले भी इंसान हैं, उनके साथ भी वही इज़्ज़त और मर्यादा होनी चाहिए, जैसी हम अपने घर में बड़ों या ऑफिस में बॉस के साथ रखते हैं।

तो अगली बार जब आप होटल जाएँ, रिसेप्शन पर मुस्कुराते हुए 'नमस्ते' करें, और याद रखें – हर रात की शिफ्ट के पीछे एक बहादुर इंसान खड़ा है, जो आपकी सुविधा के लिए कई बार अपनी सुरक्षा और सम्मान दांव पर लगा देता है।

आपका अनुभव?

क्या आपको कभी ऐसी किसी बेशर्मी या बेहूदगी का सामना अपने काम की जगह पर करना पड़ा है? या आपके पास कोई अजीब, मजेदार या दिलचस्प होटल किस्सा है? अपने अनुभव नीचे कमेंट में ज़रूर साझा करें – शायद आपकी कहानी भी किसी के लिए साहस का कारण बन जाए!


मूल रेडिट पोस्ट: Night auditor is not for the week