दो हफ्ते की जॉब, सौ सबक: होटल रिसेप्शनिस्ट की नई नौकरी की जद्दोजहद
कहते हैं, "नया झाड़ू ज्यादा साफ़ करता है," लेकिन ऑफिस या होटल की नई नौकरी में तो बिचारा नया कर्मचारी खुद ही साफ हो जाता है! सोचिए, आपकी पहली जॉब है, वो भी होटल के फ्रंट डेस्क पर – जहाँ हर दूसरा मिनट नया ड्रामा, नए चेहरे और हर दिन नई चुनौती! और ऊपर से मैनेजर ऐसे जैसे CID के डीसीपी – एक गलती हुई नहीं, तुरंत डांट शुरू!
तो जनाब, आज की यह कहानी Reddit के एक पोस्ट से ली गई है, जिसमें एक नए रिसेप्शनिस्ट ने अपने पहले 14 दिनों की क़िस्सा-ए-जिंदगी साझा किया। उनकी जर्नी उन सबके लिए आईना है, जो कभी न कभी किसी नई नौकरी में 'पहली बार' की टेंशन से गुजरे हैं। चलिए, बढ़ते हैं इस रोचक सफर की ओर...
जब नई नौकरी बनी 'रोज़ नया इम्तिहान'
क्या आपने कभी दो शिफ्टों में एक साथ ट्रेनिंग ली है? नहीं? तो हमारे 'हीरो' की हालत तो पूछिए ही मत! वीकेंड पर नाइट ऑडिट (NA) और बाक़ी दिन सुबह-सुबह की शिफ्ट – जैसे रात और दिन की दुनिया अलग-अलग हो। सुबह की शिफ्ट में चाय की चुस्की लेने का टाइम नहीं, और नाइट शिफ्ट तो 'केकवॉक' लगती है। लेकिन, असली झटका तब लगा जब ट्रेनिंग की रफ़्तार ऐसी जैसे मुंबई लोकल – रुकी ही नहीं, और बेचारे नए कर्मचारी को सब याद भी करना है!
मैनेजर लोग तो सालों से ये काम कर रहे हैं, उनको सब फटाफट याद है – पर नये बंदे से भी यही उम्मीद! एक गलती हुई नहीं, झट से डांट, "दो हफ्ते हो गए, अभी तक ये नहीं आता?" अब भई, याददाश्त भी कोई कंप्यूटर है क्या? कइयों ने तो कहा, "हम तो दूसरी हफ्ते ही छोड़ देते!" लेकिन हमारा ये रिसेप्शनिस्ट दिल से कहता है – "मैं हार नहीं मानूंगा!"
सीखना आसान नहीं, और सिखाने वाला भी 'मिज़ाज वाला'
यहां एक Reddit यूज़र ने बड़ी काम की बात कही – "जब मैंने शुरुआत की थी, सब कुछ एक साथ सीखना बहुत भारी लगा था। लेकिन अगर आप हार नहीं मानें, तो धीरे-धीरे सब आसान होने लगता है।" और सच कहें तो, हर फील्ड में ऐसे लोग मिलते हैं, जो खुद तो भूल जाते हैं कि वो भी कभी नए थे, और नए लोगों से भी एक्सपर्ट जैसी परफेक्शन की उम्मीद करते हैं।
हमारे देश में तो अक्सर 'सीनियर्स' नए लोगों को 'खिचाई' में ही एक्सपर्ट बना देते हैं! पर एक और कमेंट में किसी ने बड़ा प्यारा सुझाव दिया – "सब नोट कर लो, चाहे कोई बोले कि जरूरत नहीं। और अगर ट्रेनिंग बहुत तेज हो रही है, तो बेझिझक बोल दो – 'मुझे थोड़ा धीरे बताइए, नहीं तो भूल जाऊंगा'।" वाकई, गुरु मंत्र है ये!
एक और साथी ने तो दिल से हौसला बढ़ाया, "मुझे सबकुछ अच्छे से सीखने में दो महीने लग गए थे! दोनों शिफ्ट के रूल्स अलग, और ठीक से ट्रेनिंग भी नहीं मिली थी। पर मेहनत की, और अब सब आसान है।" बस, यही जज़्बा चाहिए – सीखना है तो लगे रहो, चाहे मैनेजर कितना भी डांटे।
'गलती करना इंसानियत है', पर सीनियर्स को याद दिलाना पड़ता है
हम सब जानते हैं, कोई भी काम बार-बार करने से आसान लगता है – चाहे वो सेल्स हो, डॉक्टर का काम हो या होटल का रिसेप्शन। लेकिन, हर सीनियर ये भूल जाता है कि उसने भी कभी गलती की थी। एक यूज़र ने तो मज़ेदार सलाह दी, "कभी-कभी सीनियर से पूछो कि आपको सब याद करने में कितना वक्त लगा था? बड़ा मज़ा आएगा!"
हमारे समाज में भी यही है – गलती करने वाले को तुरंत 'फटीचर' बोल देते हैं, लेकिन खुद भूल जाते हैं कि पहली बार कौन परफेक्ट था? यहां तक कि एक और Reddit कमेंट में लिखा था, "ये ट्रेनिंग प्रोग्राम खराब है, गलती तुम्हारी नहीं, उनकी है!" सच में, ट्रेनिंग ढंग से हो तो बंदा सीख ही जाता है।
'हारना नहीं, सीखते रहना' – यही असली फंडा है
अगर आप भी कभी ऐसी सिचुएशन में फंस जाएं, तो ये बात याद रखें – मेहनत करने वाला कभी हारता नहीं। चाहे मैनेजर कितना भी गुस्सा करे, आप सीखने की जिद मत छोड़िए। आप धीरे-धीरे 'मास्टर' बन जाएंगे, और फिर नए लोगों को खुद ट्रेनिंग देंगे। और सबसे जरूरी – अपने नोट्स लिखते रहिए, सवाल पूछने में कभी शर्म मत करिए।
जैसा कि हमारे नायक ने लिखा, "मैं इस फील्ड में बना रहूंगा और छोड़ूंगा नहीं।" भाई, यही जज़्बा चाहिए! आखिरकार, 'रोटी' कमाना ही है तो मेहनत तो करनी ही पड़ेगी, है कि नहीं?
निष्कर्ष: आपकी कहानी क्या है?
अगर आपने भी कभी ऐसी नौकरी की शुरुआत की है, जहां सीनियर्स का गुस्सा, ट्रेनिंग की भागदौड़ और नई-नई गलतियाँ आपकी दोस्त थीं, तो नीचे कमेंट में जरूर लिखिए। शेयर करिए अपनी सीख, अपनी गलती, और वो मजेदार किस्से जो आपको आज भी हँसा देते हैं।
याद रखिए – "सीखना एक सफर है, मंजिल नहीं।" और इस सफर में कभी-कभी ट्रेनिंग की गाड़ी पटरी से उतर भी जाए, तो भी मुस्कुराइए, क्योंकि आगे रास्ता आसान ही होगा।
आपका क्या अनुभव रहा है? अपने दिल की बात नीचे लिखिए, और इस पोस्ट को शेयर करना मत भूलिए – क्या पता, किसी नए जॉइनर को आपकी कहानी से हिम्मत मिल जाए!
मूल रेडिट पोस्ट: 14 days in