विषय पर बढ़ें

देर से आने वाले मेहमान और 'नो-शो' – होटल कर्मियों की सबसे बड़ी सिरदर्द!

एक एनीमे चित्रण जिसमें एक निराश होस्ट देर से आने वाले मेहमानों और नॉन-शो से जूझ रहा है।
इस जीवंत एनीमे दृश्य में, हमारा निराश होस्ट नॉन-शो और देर से आने वाले मेहमानों की परेशानियों के बारे में अपनी बात रखता है। घड़ी बंद होने का समय दर्शाती है, लेकिन मेहमानों का प्रबंधन करने की हलचल यहीं खत्म नहीं होती! हॉस्पिटैलिटी की समस्याओं की इस विलेन की उत्पत्ति की कहानी में डूबकी लगाएं।

होटल में काम करना जितना आसान दिखता है, उतना है नहीं। बाहर से देखने पर लगता है बस रिसेप्शन पर बैठो, मुस्कराओ, चाबी दो और मेहमानों से पैसे लो! लेकिन असल जिंदगी में, होटल स्टाफ का संघर्ष बिल्कुल अलग है – खासकर जब बात आती है उन मेहमानों की, जो या तो आते ही नहीं (नो-शो) या फिर ऐसे वक्त पर आते हैं जब होटल बंद हो चुका होता है। आज हम आपको सुनाएंगे एक ऐसे ही होटल कर्मचारी की कहानी, जिसकी 'विलेन' बनने की वजह ही यही नो-शो और लेट-लतीफ मेहमान हैं!

'नो-शो' मेहमान: अदृश्य संकट

सोचिए, आपने किसी को अपने घर खाने पर बुलाया, सारी तैयारी कर ली, वेट किया और आखिरकार मेहमान ही न आए! होटलवालों के लिए 'नो-शो' मेहमान भी कुछ ऐसे ही होते हैं। कमरे खाली पड़े रहते हैं, नुकसान होता है, और ऊपर से बॉस की डांट – "कमरे क्यों खाली हैं?"।

रेडिट पर u/More_Paramedic3148 नाम के एक यूज़र ने बताया, "मुझे नो-शो से सख्त नफरत है, लेकिन उससे भी बुरा तब होता है जब कोई मेहमान होटल बंद हो जाने के बाद प्रकट होता है – जैसे कोई बॉलीवुड फिल्म में विलेन एंट्री ले रहा हो!"

देर से आने वाले मेहमान: 'क्या मुझे चाबी नहीं मिलेगी?!'

अब आते हैं दूसरी किस्म के मेहमानों पर। होटल का टाइम टेबल साफ लिखा है – वीकडेज़ में रात 9:30 बजे और वीकेंड पर 10:30 बजे तक ही चेक-इन। उसके बाद स्टाफ घर चला जाता है। लेकिन कुछ मेहमान तो जैसे इस नियम को चुनौती देने के लिए ही आते हैं! कई बार होटलवाले फोन, ईमेल, SMS, यहां तक कि 'धुआँ-इशारे' (smoke signals) तक भेज देते हैं, लेकिन जवाब नहीं आता। फिर अचानक 11 बजे दरवाजे पर दस्तक होती है – "मैं तो घंटों से बाहर खड़ा हूँ!" या "मुझे तो कार में सोना पड़ा!"

u/MarlenaEvans नाम की एक होटल कर्मचारी ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, "हम तो धुआँ-इशारे तक भेज चुके, इससे ज्यादा और क्या करें!"

नियमों की अनदेखी: 'पढ़ना' अब यात्रा की तैयारी में नहीं!

कुछ मेहमान तो मानो होटल के नियम पढ़ना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। दरवाजे पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है – 'अगर आपने आफ्टर-आवर्स चेक-इन का इंतज़ाम नहीं किया, तो माफ कीजिए, अब कोई मदद नहीं मिलेगी।' लेकिन मेहमान जैसे यह नोटिस पढ़ने के बजाय शीशे पर हाथ मारना और स्टाफ को कोसना ज्यादा जरूरी समझते हैं।

u/Rhesusmonkeydave ने कहा, "अमेरिका में 20% लोग ठीक से पढ़ नहीं सकते, बाकी को पढ़ना बोझ लगता है। लोग 'रिंग बेल' का बोर्ड देखकर भी सीधे शीशे पर हाथ पटकने लगते हैं!"

हमारे भारत में भी क्या पार्किंग के बोर्ड देखकर लोग सही जगह गाड़ी लगाते हैं? बिल्कुल नहीं! यही हाल होटल के नियमों का है।

हल क्या है?– 'मेहमान भगवान हैं' या सीमाएँ जरूरी?

कुछ लोगों का मानना है कि अगर बार-बार ऐसी समस्या हो रही है, तो होटल को अपनी सेवा में बदलाव लाना चाहिए। u/RoyallyOakie ने सलाह दी, "अगर कोई समस्या रोज़ हो रही है, तो शायद आपको अपनी सेवा में सुधार करना चाहिए – 'आइना देखिए'।" लेकिन u/Shawntra का कहना है, "हर ग्राहक की मनमानी के हिसाब से होटल का टाइम बदलना संभव नहीं, सिस्टम ऐसे ही चलता है।"

कुछ होटल, जैसे u/SuspiciousImpact2197 के बुटीक होटल, तो चेक-इन टाइम के बाद किसी भी कीमत पर दरवाजा नहीं खोलते – चाहे मेहमान कितना भी बेल बजाए। उनका कहना है, "अगर आप हमारी कॉल, ईमेल, मैसेज का जवाब नहीं देते, तो 8:30 के बाद आपको बाहर ही रहना पड़ेगा।"

u/4Shroeder ने बढ़िया जवाब दिया – "हमने हर तरह से आपसे संपर्क करने की कोशिश की, अब अगर आप समय पर नहीं पहुंचे, तो इसके लिए हम जिम्मेदार नहीं!"

होटल कर्मियों की भावनाएँ – 'मुझे भी तो छुट्टी चाहिए!'

कई बार लोग भूल जाते हैं कि होटल स्टाफ भी इंसान होते हैं, मशीन नहीं। u/TheOtherUprising ने लिखा, "अगर किसी ने टाइम नहीं बताया और देर से आया, तो मुझे फर्क नहीं पड़ता वो क्या करते हैं। कार में सोएं या कहीं और जाएं, अब मेरी जिम्मेदारी नहीं।"

u/Trua33 लिखती हैं, "हर महीने कोई न कोई ऐसा होता है, जो कई बार कॉल, ईमेल, मैसेज का जवाब ही नहीं देता, और जैसे ही मैं डिनर करने बैठती हूँ, तभी 'मैं होटल पहुँच गया, चेक-इन कैसे करूँ?' के मैसेज आने लगते हैं!"

'ग्राहक देवता' बनाम 'ग्राहक की जिम्मेदारी'

भारत में अक्सर कहा जाता है – 'अतिथि देवो भवः'। लेकिन क्या देवता भी बिना बताए देर से आते हैं? होटल कर्मियों की भी ज़िंदगी, उनकी छुट्टियाँ, परिवार होता है। अगर सब कुछ पहले से तय है, तो नियम तो दोनों तरफ से निभाए जाने चाहिए।

जैसा u/Crown_the_Cat ने कहा, "आपकी खराब योजना, मेरी इमरजेंसी नहीं बन सकती!"

निष्कर्ष: आपकी यात्रा, आपकी जिम्मेदारी

दोस्तों, अगली बार जब आप किसी होटल में बुकिंग करें, तो चेक-इन टाइम जरूर नोट कर लें। अगर आपको देर हो रही है, तो एक फोन या मैसेज होटल स्टाफ को कर दीजिए – ये आपके लिए भी अच्छा रहेगा और उनके लिए भी! आखिरकार, रिश्ते तभी अच्छे रहते हैं जब दोनों तरफ जिम्मेदारी और समझदारी हो।

क्या आपके साथ कभी ऐसा कोई मजेदार या अजीब अनुभव हुआ है? होटल में देर से पहुंचे हों, नो-शो हुए हों या किसी होटल में चेक-इन का समय मिस कर दिया हो? अपने अनुभव कमेंट में जरूर साझा करें – पढ़कर मजा आएगा!


मूल रेडिट पोस्ट: No-shows and late arrivals are my villain origin story 😤