दादी ने पोस्टमास्टर को उसके ही नियमों से मात दी – एक मज़ेदार बदला
हमारे देश में भी दादी-नानी की कहानियाँ केवल परियों की नहीं होतीं, कई बार उनमें ज़िंदगी की असली सीख छुपी होती है। ऐसी ही एक कहानी है, जिसमें एक दादी ने अपने समझ और नियमों की ताकत से पोस्ट ऑफिस को उसकी ही चाल में फंसा दिया। पढ़िए, कैसे एक आम सी दिखने वाली दादी ने गजब का बदला लिया और सबको सीख दे गई – “सीधे-सादे दिखने वालों से कभी पंगा मत लेना!”
क्रिसमस की तैयारी और पोस्ट ऑफिस का अड़ंगा
करीब पचास साल पहले की बात है, जब ऑनलाइन शॉपिंग का नामोनिशान भी नहीं था। अमेरिका में लोग त्योहारों के लिए Sears नाम की कंपनी की कैटलॉग देखकर सामान मंगवाते थे – बिलकुल वैसे ही जैसे हमारे यहाँ लोग दिवाली या शादी के लिए पुराने जमाने में मनचाही चीज़ें विक्रेता की लिस्ट देखकर चुनते थे। खास बात ये थी कि वहाँ “Cash on Delivery” यानी सामान पहुँचने पर पैसे देने का सिस्टम था, जिसे वहाँ C.O.D. कहते हैं।
हमारी कहानी की दादी ने भी हर साल की तरह अपने नाती-पोतों के लिए बढ़िया तोहफे Sears से ऑर्डर कर दिए – वो भी बहुत पहले, ताकि क्रिसमस से पहले सबकुछ सही-सलामत आ जाए। लेकिन इस बार, थैंक्सगिविंग (वहाँ का एक बड़ा त्योहार) आ गया, पर कोई भी डिब्बा दरवाजे तक नहीं पहुँचा!
पोस्टमास्टर की चालाकी और दादी का जवाब
दादी ने सीधा Sears को फोन लगाया – वहाँ से पता चला कि कंपनी ने तो समय पर डिलीवरी कर दी थी, अब पोस्ट ऑफिस से पूछो। छोटे कस्बे के पोस्ट ऑफिस में पोस्टमास्टर साहब ने दादी को एक लंबा-चौड़ा फॉर्म पकड़ाया और बड़े ठसके से बोले, “हमारी नीति है कि हमें 30 दिन तक पैकेट डिलीवर करने का हक है। अगर 30 दिन में आपका सामान नहीं मिले, तो हमें लिखित में बताइए, फिर हम खोजबीन शुरू करेंगे। और अगर 30 दिन बाद भी न मिले, तो Sears को पैसे देंगे; आप चाहें तो दोबारा ऑर्डर कर लीजिए।”
दादी ने समझाया कि ऐसे तो बच्चों के तोहफे क्रिसमस पर नहीं पहुँचेंगे – लेकिन पोस्टमास्टर का जवाब सीधा-सा था, “नीति तो नीति है!”
दादी का जुगाड़ – नए तोहफे, नया नियम
अब दादी भी भारतीय दादी की तरह, हार कहाँ मानने वाली थीं! उन्होंने नए पैकेट ऑर्डर कर दिए – थोड़ा अलग, ताकि अगर पुराना सामान कभी आ भी जाए, तो अगले साल काम आ जाए। दो हफ्ते में नए सामान आ गए। दादी ने डाकिए को C.O.D. का चेक थमा दिया – मामले की इतिश्री समझ कर चैन की सांस ली।
कुछ दिन बाद, वही डाकिया हड़बड़ाया हुआ फिर आ गया – “दादी, रिकॉर्ड में तो है कि आपने चेक दिया, पर वो चेक कहीं गुम हो गया है। क्या आप एक नया चेक दे सकती हैं?” अब दादी ने सोच-समझकर वही दवाई पोस्ट ऑफिस को पिलाई, जो उन्होंने दादी को दी थी।
दादी की समझदारी – नीति से नीति टकराई
दादी सीधे पोस्टमास्टर के पास पहुँचीं। वहाँ भी वही रटा-रटाया जवाब – “चेक नहीं मिला, नया देना पड़ेगा।”
अब दादी मुस्कराईं, और बोलीं, “आपके पास रिकॉर्ड है कि मैंने चेक दिया। मेरी नीति ये है कि आपको चेक खोजने के लिए 30 दिन मिलेंगे। अगर 30 दिन में नहीं मिला, तो लिखित में मुझे सूचना दीजिए। फिर मुझे 30 दिन मिलेंगे नया चेक देने के लिए।”
सब सन्न! पोस्टमास्टर भी चुप, डाकिया भी चुप! और आखिरकार, चेक कभी नहीं मिला, न ही दादी को दोबारा पैसे देने पड़े। Sears ने भी दादी का अकाउंट ‘Paid in Full’ यानी पूरा भुगतान दिखाया।
कम्युनिटी के मजेदार रिएक्शन: “दादी, आप असली मास्टर हो!”
इस कहानी ने Reddit पर धूम मचा दी। एक यूज़र ने लिखा, “दादी तो असली पोस्टमास्टर मास्टर निकलीं!” एक और ने मज़ाकिया अंदाज में कहा, “दादी ने तो FAFO (किसी से उलझो, भुगतो) का अविष्कार कर दिया!” किसी ने अपने बचपन की यादें ताज़ा कर दीं – “Sears की कैटलॉग से गिफ्ट चुनने में घंटों लग जाते थे, वो भी क्या दिन थे!”
एक और पाठक ने कहा, “ऐसी दादी की अक्ल और हिम्मत आज की पीढ़ी को भी सीखनी चाहिए।” Reddit पर कई लोगों ने अपनी-अपनी दादी-नानी की बहादुरी की कहानियाँ साझा कीं – जैसे हमारे यहाँ लोग कहते हैं, “पुरानी पीढ़ी के लोग सच में ज़माने से दो क़दम आगे थे।”
सीख: हर नियम का जवाब भी नियम से!
इस कहानी में दो बातों की गहराई है – एक, जब सिस्टम आपको तंग करे, तो उसकी ही भाषा में जवाब दो; और दूसरा, अपने परिवार की खुशी के लिए कोई भी समझदारी भरा कदम छोटा नहीं होता।
दादी की तरह, हमें भी कभी-कभी ‘नीति’ को ‘नीति’ से मात देने का हुनर आना चाहिए। और हाँ, जो सीधे-सादे और मीठे दिखते हैं, उन पर कभी शक मत करना – क्योंकि अंदर से वो असली शेर होते हैं!
क्या आपके पास भी है ऐसी कोई “दादी” या “नानी” की कहानी?
अगर आपके परिवार में भी कोई दादी, नानी, या मौसी-मामी ऐसी रही हैं जिन्होंने अपनी अक्लमंदी से सबको चौंका दिया हो, तो कमेंट में ज़रूर साझा करें। आइए, इन कहानियों को आगे बढ़ाएँ और आज की पीढ़ी को सिखाएँ – असली ताकत हमेशा दिमाग और धैर्य में होती है!
आपको ये कहानी कैसी लगी? क्या आप भी कभी सरकारी दफ्तर या किसी सिस्टम से इसी तरह भिड़े हैं? अपने अनुभव ज़रूर बताइए!
मूल रेडिट पोस्ट: C.O.D. and lost check