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दादाजी की जिद: जब राइडर मोवर बना मोहल्ले की शान

दादा खुशी-खुशी अपने काटने वाले यंत्र पर सवार हैं, दादी की शंकाओं को चुनौती देते हुए धूप में।
इस जीवंत तस्वीर में, दादा आनंद से अपने काटने वाले यंत्र की सवारी कर रहे हैं, दादी को गलत साबित करते हुए, आस-पास के मोहल्ले में अनपेक्षित रोमांच पर निकलते हुए, आंगनों को मज़े और स्वतंत्रता के रास्तों में बदलते हुए।

हमारे देश में दादी-दादा की छोटी-मोटी नोकझोंक और जिद से जुड़े किस्से हर परिवार में सुनने को मिल जाते हैं। कभी दादी अपनी पसंद का टीवी चैनल देखना चाहती हैं, तो कभी दादाजी अपनी आदतों पर अड़े रहते हैं। लेकिन आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ, वह मिसौरी (अमेरिका) के एक दम्पति की है, जिसमें दादाजी ने एक छोटी-सी बात को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया!

सोचिए, अगर आपके पिताजी या दादाजी अचानक एक महंगा ट्रैक्टर या राइडर मोवर खरीद लें, सिर्फ इसलिए कि उन्हें अपनी बात मनवानी है, तो घर में क्या हलचल मच जाएगी? कुछ ऐसा ही हुआ इस कहानी में – और फिर जो हुआ, वह पूरे मोहल्ले की चर्चा बन गया!

दादी का ताना और दादाजी की जिद

कहानी है मिसौरी के कोलंबिया शहर की, 1990 के दशक के आसपास। दादाजी को राइडर मोवर (यानि बैठकर चलाने वाला घास काटने वाला यंत्र) खरीदने का बहुत शौक था। दादी ने साफ कह दिया – "इतने छोटे आँगन में इसका क्या करोगे? कभी चलाओगे भी नहीं!" अब यह बात दादाजी के दिल पर लग गई।

हमारे यहाँ तो अक्सर ऐसी जिद को लेकर कहावतें चलती हैं – “पुरुष का अहम, कभी-कभी बच्चे से भी ज्यादा जिद्दी होता है।” दादाजी ने भी ठान लिया कि दादी को गलत साबित करना है। और बस, अगले ही दिन दादाजी ने एक चमचमाता राइडर मोवर खरीद लिया!

राइडर मोवर बना रोज़मर्रा की सवारी

अब असली मज़ा तो तब आया जब दादाजी ने उस मोवर का इस्तेमाल सिर्फ घास काटने के लिए नहीं, बल्कि हर काम के लिए करना शुरू कर दिया! किराने की दुकान जाना हो, पार्क जाना हो, डॉक्टर के पास जाना हो, या दोस्तों के साथ बॉलिंग खेलने जाना हो – दादाजी हर जगह उसी मोवर पर निकल पड़ते।

सोचिए, भारतीय मोहल्ले में अगर कोई बुजुर्ग स्कूटर छोड़कर ट्रैक्टर पर बैठकर सब्जी लेने जाए, तो क्या-क्या बातें बनतीं! वहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ – पड़ोसी सोचते, कहीं दादाजी का लाइसेंस तो नहीं छिन गया? या कहीं शराब पीकर गाड़ी चलाने पर रोक तो नहीं लग गई? लेकिन असलियत तो ये थी कि दादाजी ने वियतनाम युद्ध के बाद कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाया था, और लाइसेंस भी बिल्कुल सही सलामत था।

एक मज़ेदार कमेंट में एक व्यक्ति ने कहा, “दादाजी ने दादी की आपत्तियों को तो ऐसे काट दिया, जैसे बिना ब्लेड घास कट रही हो!” और सच में, दादाजी की ये जिद अब मोहल्ले के लिए भी मनोरंजन का साधन बन गई थी।

मोहल्ले की घास और दिल जीतने वाली जिद

अब सवाल था – क्या दादाजी ने वाकई उस मोवर से घास काटी? तो कहानीकार (पोस्ट करने वाले) ने बताया, "दादाजी ने तो पूरा मोहल्ला ही काट डाला!" दादी की बात सही थी – उनके घर का लॉन तो छोटा था, लेकिन दादाजी ने अपनी जिद को पूरा करने के लिए पड़ोसियों के लॉन भी मुफ्त में काटने शुरू कर दिए।

सोचिए, आपके मोहल्ले में कोई 90 साल का बुजुर्ग रोज़-रोज़ हर किसी के घर की घास काटे, तो बच्चे, बड़े, सब मज़े लेते! मोहल्ले के लोगों के लिए ये मुफ्त सेवा और हँसी-मजाक का बहाना बन गई।

एक कमेंट में किसी ने खूब लिखा, “दादी को तो अब ऊपर भी दादाजी मोवर से लेने आए होंगे, क्योंकि उनकी जिद कभी खत्म नहीं हुई!” और खुद कहानीकार ने स्वीकारा – “हमारे दादा-दादी की आपसी टक्कर हमेशा चलती थी, दादी ज़्यादातर जीतती थीं, पर इस बार दादाजी ने इतिहास रच दिया।”

साथ जीना, साथ चल बसना: एक सच्चा रिश्ता

इस कहानी का सबसे भावुक हिस्सा ये है कि दादाजी और दादी ने लगभग 75 साल साथ बिताए। दादाजी की मृत्यु के छह घंटे बाद ही दादी भी चल बसीं। परिवार वाले कहते हैं, “दादी सिर्फ इसलिए रुकीं, ताकि बच्चों को सूचित कर सकें। उन्होंने दादाजी को अच्छे कपड़े पहनाए, खुद भी तैयार हुईं, और फिर उनके पास लेटकर, हाथ में हाथ डालकर चली गईं।”

ऐसा रिश्ता, जिसमें तकरार भी है, तकरार में प्यार भी – भारतीय परिवारों में भी बहुत देखने को मिलता है। एक पाठक ने लिखा, “आजकल इंटरनेट पर तलाक को बहुत बढ़ावा मिलता है, लेकिन पुराने जमाने के लोग परिवार को जोड़कर रखना अच्छी तरह जानते थे।”

कहानी से मिली सीख और हंसी

इस पूरी घटना में सबसे प्यारी बात यह है कि दादाजी की जिद में भी एक मासूमियत और अपनापन था। उन्होंने दादी को गलत साबित करने के लिए, लेकिन पूरे मोहल्ले की भलाई के लिए अपनी जिद को मज़ेदार बना दिया।

किसी ने बढ़िया कहा, “ये बदला नहीं, ये तो जिद का आदर्श नमूना है!” और ये जिद अक्सर हमारे घरों में भी दिखती है – कभी पापा नया गैजेट लाते हैं, कभी मम्मी नया किचन उपकरण। और जब घरवाले मना करते हैं – तो फिर वही ‘उपयोग’ दिखाने की परेड शुरू हो जाती है!

निष्कर्ष: आपकी जिंदगी में भी है ऐसा कोई?

तो दोस्तों, क्या आपके परिवार में भी कोई ऐसा है, जो जिद में आकर कोई चीज़ खरीद लाता है, फिर उसे हर जगह इस्तेमाल करता है, बस ये साबित करने के लिए कि उनका फैसला सही था? या कभी आपने खुद ऐसा किया है?

नीचे कमेंट में ज़रूर बताइए – और अगर दादाजी की ये कहानी आपके चेहरे पर मुस्कान ले आई हो, तो अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर साझा करें!

जिंदगी छोटी है, कभी-कभी जिद्द भी रिश्तों में मिठास घोल देती है। और हाँ, अगली बार जब कोई बोले – “तुम इसका इस्तेमाल नहीं करोगे”, तो दादाजी को याद कर लेना!


मूल रेडिट पोस्ट: Grandma said he'd never use it, so Grandpa proved her wrong