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दोगले मैनेजर की कहानी: ऑफिस पॉलिटिक्स और रात की शिफ्ट का बदला

अगर आपने भी कभी ऑफिस में किसी ऐसे बॉस के नीचे काम किया है, जो दिन में दोस्त और रात को दुश्मन बन जाए, तो आज की कहानी आपकी अपनी ही लगेगी। बड़े-बड़े कॉर्पोरेट टावर हों या किसी लग्ज़री रिहायशी सोसाइटी का रिसेप्शन, हर जगह राजनीति और दोगलेपन का खेल चलता ही रहता है। आज हम आपको Reddit की एक ऐसी ही कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसमें एक कर्मचारी ने अपना गुस्सा और मायूसी किस तरह काबू में रखी—और शायद थोड़ा 'जुगाड़' भी लगाया।

जब मैनेजर बना ‘दूध का धुला’, लेकिन निकला ‘दोगला’

कहानी शुरू होती है एक शानदार रिहायशी सोसाइटी के फ्रंट डेस्क से, जहाँ पर हमारे नायक (या कहें पीड़ित कर्मचारी) की ड्यूटी लगती है। सोसाइटी में नई-नई असिस्टेंट मैनेजर आई थीं, जो जल्दी ही प्रमोट होकर मैनेजर बन गईं, क्योंकि पुराने मैनेजर का रवैया सबको नागवार गुजर रहा था। मज़े की बात ये कि उस पुराने मैनेजर से न सिर्फ कर्मचारी, बल्कि खुद यही नई मैनेजर भी परेशान थीं। जब पुराना मैनेजर गया, तो सबने राहत की साँस ली और सोचा अब सब ठीक हो जाएगा।

लेकिन हुआ उल्टा! नई मैनेजर ने आते ही शिफ्टिंग का पूरा खेल बदल डाला। पहले दो शिफ्टें थीं—सुबह 6 से दोपहर 2 और दोपहर 2 से रात 12 तक। हमारे हीरो को रविवार से बुधवार, दोपहर 2 से रात 12 वाली शिफ्ट मिल गई थी, क्योंकि कोई और लेना नहीं चाहता था। दो बार पूंछा कि अब शिफ्ट बदलेगी क्या? तो मैडम ने साफ बोला, "नहीं, सब ठीक है।" यहाँ तक कि होटल Marriott से भी जॉब ऑफर आया, पर मैनेजर के भरोसे पर इनकार कर दिया।

अब क्या! नये मैनेजर ने पुराने सिस्टम को तोड़ा और बीच में एक "मिड शिफ्ट" जोड़ दी। नतीजा—40 घंटे की जगह सिर्फ़ 24 घंटे मिलना शुरू हो गए। अब तो वही हाल हो गया जैसे भरोसा किया और मिला धोखा!

ऑफिस की राजनीति: ‘फेवर’ या ‘फसाद’?

हमारे कर्मचारी भाई को न सिर्फ़ शिफ्ट कटौती का झटका लगा, बल्कि ऊपर से मैनेजर ने नोट लिखने और रिजर्वेशन की छोटी सी गलती पर 'रिपोर्ट' भी बना दी! अब सोचिए, गाँव के सरकारी दफ्तरों में छोटी भूल पर कैसे बाबू लोग टोकते हैं—कुछ वैसा ही माहौल यहाँ भी बन गया।

एक दिन एक साहब चार लोगों के साथ पोकर खेलने आए। कर्मचारी ने नियम बताते हुए मना किया, मगर तभी मैनेजर साहिबा आ गईं और बोलीं—"नाम लिखो, चार लोग होने चाहिए।" रात को, जब और भी मेहमान आ गए, तो कर्मचारी ने जुगाड़ सुझा दिया—"अगर एक और रेजिडेंट को बुलाओगे तो इवेंट चार्ज नहीं लगेगा।" यहाँ से कर्मचारी के मन में बदले की आग सुलग गई।

अब सोचिए, हमारे ऑफिसों में भी यही होता है—दिन की शिफ्ट वाले फेवर करके चले जाते हैं, और रात की शिफ्ट वालों को लपेटा जाता है। Reddit पर एक कमेंट करने वाले ने खूब सही लिखा, "किसी और की रिपोर्ट बिगाड़कर क्या हासिल करोगे? बात करो, मन हल्का होगा।" ऑफिस की राजनीति में कई बार लोग दूसरों को नीचा दिखाने में खुद ही गिर जाते हैं।

Reddit कम्युनिटी का जवाब: 'दीवार' से टकराओगे तो चोट लगेगी

Reddit पर इस कहानी पर मज़ेदार प्रतिक्रियाएं आईं। एक ने लिखा, "इतनी लंबी पोस्ट पढ़ने में दीवार से टकरा जाने जैसा फील आया!" (वैसे, हमारे यहाँ ये हाल अक्सर सरकारी नोटिसों का होता है, जो इतने लंबे होते हैं कि पढ़ते-पढ़ते नींद आ जाए।)

एक और कमेंट था, "अगर रिपोर्ट बिगाड़ोगे, तो पक्का पकड़े जाओगे। अच्छा है कि या तो खुलकर बात करो, या फिर नई नौकरी ढूंढो।" यह सलाह भारतीय कर्मचारियों के लिए भी सटीक है। यहाँ भी अक्सर लोग बॉस की चालबाजियों से तंग आकर ‘अपना काम करो और घर चलो’ वाला मंत्र अपना लेते हैं।

सीख: ‘अपना काम करो, बाकी रामभरोसे छोड़ दो’

इस कहानी से एक सीधी-सी बात निकलती है—ऑफिस राजनीति में उलझकर खुद की जिंदगी मत खराब करो। दोगले मैनेजर हर जगह होते हैं, लेकिन उनका जवाब तिकड़म से नहीं, बल्कि ईमानदारी और धैर्य से देना चाहिए।

जैसे कि हमारे गाँवों में कहा जाता है, “जो दूसरों के लिए गड्डा खोदता है, खुद उसमें गिर जाता है।” ऑफिस में भी यही लागू होता है। अगर आप किसी का बुरा सोचेंगे, तो कल को वही आपके लिए भी हो सकता है।

अंत में, अगर आपको भी ऐसे किसी दोगले मैनेजर का सामना करना पड़ा है, तो कमेंट में जरूर बताइए। क्या आपके पास भी कोई मज़ेदार या चटपटी ऑफिस कहानी है? शेयर कीजिए, ताकि सबको हँसी आए और कोई नया सीख भी मिल जाए!


मूल रेडिट पोस्ट: Hypocrite manager