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थैंकगिविंग पर होटल की रिसेप्शन डेस्क: मुस्कान की अनसुनी दास्तान

कहते हैं, "मुस्कान वो भाषा है जिसे हर कोई समझता है।" लेकिन क्या हो जब आपकी मुस्कान लौट कर ही ना आए? यही हुआ अमेरिका के थैंकगिविंग (जो हमारे यहाँ दिवाली या ईद जैसे बड़े त्योहार जैसा है) के दिन एक होटल रिसेप्शनिस्ट के साथ। सबको परिवार के साथ खाना-पीना और मस्ती करनी चाहिए थी, लेकिन साहब, ड्यूटी है तो निभानी तो पड़ेगी!

थैंकगिविंग की ड्यूटी: स्वादिष्ट खाने की सौगात, लेकिन मन उदास

हमारे इस कहानी के नायक, Reddit यूज़र u/Hamsterpatty, को थैंकगिविंग की शाम होटल की रिसेप्शन डेस्क पर ड्यूटी करनी पड़ी। सोचिए, जैसे हमारे यहाँ कोई दिवाली की रात को काम पर बुला ले! खैर, उनकी सासू मां (जी हाँ, वही जिनके हाथ का खाना सबको ललचाता है) ने उनके लिए पहले ही स्वादिष्ट खाना बना दिया था। मन नहीं था, फिर भी थोड़ा सा खाया और बाकी झोले में डालकर ऑफिस ले गए।

अब होटल में उस दिन सन्नाटा था – बस चार मेहमान आने वाले थे, जिनमें से दो तो पहले ही आ चुके थे। बाकी लोग पास के रेस्टोरेंट में खास थैंकगिविंग डिनर के लिए आ-जा रहे थे। रिसेप्शन डेस्क पर बैठे-बैठे उन्होंने सोचा, "चलो, मोबाइल पर थोड़ा टाइम पास कर लेते हैं।" जब भी कोई सामने से गुजरता, वो सिर उठाते, आँख मिलती तो प्यारी सी मुस्कान दे देते।

मुस्कान का सूखा: त्योहार पर भी लोग क्यों चुप थे?

अब यहाँ पर ट्विस्ट आया! नायक मुस्कुराते रहे, लेकिन सामने वालों ने न तो आँख मिलाई, न मुस्कराए, न कोई 'हाय-हैलो'! आठ घंटे की शिफ्ट में सिर्फ तीन लोगों ने आँख मिलाई और उनमें से एक ने भी मुस्कराहट लौटाई नहीं!

सोचिए, हमारे यहाँ तो त्योहार पर अजनबी भी "नमस्ते", "शुभकामनाएँ", "खुश रहो बेटा" बोल देते हैं। Reddit पर एक कमेंट करने वाले ने हँसी-मजाक में लिखा, "लगता है लोगों को छुट्टी की थकान हो गई है, बस जल्दी से खाना खाकर सोना है।" एक और ने जोड़ा, "मैं अपने परिवार के साथ हूँ, अब तुमसे भी अच्छे से बात करूं क्या?"

लेकिन कुछ ने यह भी कहा कि शायद लोगों को अंदर ही अंदर शर्म महसूस हो रही हो कि कोई इनके कारण त्योहार पर ड्यूटी कर रहा है। जैसे हमारे यहाँ भी कई बार हम वेटर या सुरक्षा गार्ड से नजर नहीं मिलाते क्योंकि मन में अपराधबोध रहता है कि ये लोग भी अपने घर जाना चाहते होंगे।

होटल, ग्राहक और त्योहार: क्या हम भी यही करते हैं?

इस कहानी में एक कमेंट पढ़कर दिल छू गया – "अरे भाई, कम से कम 'हैप्पी थैंकगिविंग' तो बोल ही सकते हैं! हम भी अपने परिवार से दूर हैं, फिर भी आपको मुस्कान देते हैं।"

सोचने वाली बात है, हम भी तो अक्सर ऑफिस, बैंक, या किसी दुकान में काम करने वालों को अनदेखा कर देते हैं। त्योहार के दिन भी हम इतने व्यस्त या थके होते हैं कि सामने वाले की मुस्कान का जवाब देना भूल जाते हैं।

एक और मजेदार कमेंट में लिखा था, "कभी-कभी ग्राहक सोचते हैं कि बार-बार मुस्कराना भी एक तरह का एक्टिंग है, इसलिए सामने वाले को राहत देने के लिए नजर चुरा लेते हैं!" ये बात सुनकर तो हमारे यहाँ की सरकारी ऑफिसों की लाइन याद आ गई – वहाँ भी तो लोग खामोशी से फाइल पकड़कर आगे बढ़ जाते हैं।

काम पर त्योहार: क्या बदल सकते हैं हम सबकी दुनिया?

इस पूरी घटना में दो बातें सीखने को मिलती हैं। पहली – काम कोई छोटा-बड़ा नहीं, हर किसी की मेहनत की कद्र होनी चाहिए। दूसरी – त्योहार हो या आम दिन, एक मुस्कान या दो शब्द किसी का दिन बना सकते हैं।

जैसे एक कमेंट में किसी ने कहा, "मुस्कराना कोई मेहनत का काम नहीं, लेकिन सामने वाले की थकान जरूर दूर कर देता है।" सोचिए, अगर आप भी अपने ऑफिस के सिक्योरिटी गार्ड, स्वीपर, या रिसेप्शनिस्ट को त्योहार के दिन हल्की सी मुस्कान दे दें, तो उनकी ड्यूटी की थकान आधी हो जाएगी।

निष्कर्ष: आपकी मुस्कान, किसी की खुशियों की चाभी

तो अगली बार जब आप किसी होटल, बैंक, या अस्पताल में जाएँ – खासकर त्योहार के मौके पर – तो नज़रें मिलाकर मुस्कराना न भूलें। क्या पता, आपकी वही मुस्कान किसी के लिए पूरी दिवाली या ईद बन जाए।

क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है, जब आपकी मुस्कान का जवाब न मिला हो? या आप भी किसी त्योहार पर ड्यूटी कर चुके हैं? अपनी कहानी कमेंट में जरूर साझा करें – आखिर, खुशियाँ बाँटने से ही तो बढ़ती हैं!


मूल रेडिट पोस्ट: Thanksgiving day.