तीसरे पक्ष की बुकिंग का चक्कर: होटलवालों की नींद हराम करने वाली कहानी
होटल की फ्रंट डेस्क पर काम करना वैसे तो कई बार शांति से बीत जाता है, लेकिन जैसे ही ‘तीसरे पक्ष’ यानी थर्ड पार्टी बुकिंग का मामला सामने आता है, तो सब कुछ तितर-बितर हो जाता है। अगर आपने कभी ऑनलाइन बुकिंग वेबसाइट से होटल बुक किया है, तो यह कहानी आपको हंसी भी दिलाएगी और सोचने पर भी मजबूर कर देगी कि सीधा होटल से बुक करना ही क्यों बेहतर है।
कहानी एक ऐसे शांत शाम की है, जब सबकुछ बढ़िया चल रहा था। तभी अचानक एक तीसरी पार्टी से बुकिंग आती है — और उसके बाद जो हुआ, वह किसी बॉलीवुड मसालेदार फिल्म से कम नहीं था।
तीसरे पक्ष की बुकिंग: होटलवालों का सिरदर्द
जैसे ही बुकिंग आती है, तुरंत मेहमान का फोन आ जाता है— "भैया, गलती से आज की जगह कल बुकिंग कर दी। कुछ हो सकता है?" जवाब सीधा था, "आपने जिस वेबसाइट से बुकिंग की है, उन्हीं से बात करिए।" लेकिन असली झंझट वहीं से शुरू होती है!
थोड़ी ही देर में तीसरे पक्ष का फोन आता है। दूसरी तरफ एक एजेंट, जिनकी हिंदी ऐसी जैसे किसी बॉलीवुड फिल्म के विलेन की। "हम अपने साझा मेहमान की ओर से कॉल कर रहे हैं..." अब जो लोग होटल इंडस्ट्री में हैं, वे जानते हैं कि ये वाक्य सुनकर ही मूड खराब हो जाता है। एक कमेंट में किसी ने लिखा, "ये लाइन सुनते ही जैसे कोई नींबू नमक छिड़क देता है मेरे मूड पर।"
फ्रंट डेस्क वाले आमतौर पर फोन पर कोई रिक्वेस्ट नहीं लेते, ईमेल की मांग करते हैं। वजह साफ है—कई बार एजेंट बातें घुमा-फिरा कर आपके शब्दों का गलत मतलब निकाल लेते हैं और बाद में सारी जिम्मेदारी होटल पर डाल देते हैं।
सिस्टम का जाल और तीसरे पक्ष का बहाना
इस बार फ्रंट डेस्क ने सोचा, चलो सीधा बोल देते हैं—"आप बुकिंग कैंसिल कर दें, मेहमान कल के लिए नई बुकिंग कर लेगा।" लेकिन यहां गलती हो गई!
एजेंट ने शुरू कर दिया—"हमारे सिस्टम में कैंसिलेशन का विकल्प नहीं है...आपको ही करना पड़ेगा..." होटल के सिस्टम में ‘कैंसिल’ का बटन ग्रे हो चुका था, यानी होटल भी कुछ नहीं कर सकता। अब एजेंट ने सवालों की बौछार कर दी—नाम, पद, जन्मतिथि, और न जाने क्या-क्या!
फ्रंट डेस्क वाले ने साफ मना कर दिया—"भैया, लिखित में भेजिए, फोन पर कुछ नहीं करेंगे।" और फोन काट दिया। उसके बाद तो फोन ऐसे घनघनाने लगा, जैसे शादी वाले घर में बैंड बज रहा हो—एक के बाद एक, फिर से एजेंट, फिर से मेहमान, फिर नया एजेंट, हर बार वही कहानी!
कमेंट्स में छिपी सच्चाई और भारतीय संदर्भ
कई कमेंट्स में लोगों ने अपनी भड़ास निकाली—किसी ने लिखा, "तीसरी पार्टी वालों से कभी बुक मत करना, खुद भुगत चुका हूं।" एक और कमेंट में मजाकिया लहजे में कहा गया, "ये लोग बार-बार कहते हैं– 'हमारे साझा ग्राहक के लिए'... अरे भाई, ग्राहक आपका है, पैसा आपका है, तो जिम्मेदारी भी आपकी!"
कुछ अनुभवी ट्रैवल एजेंट्स ने बताया कि जब ग्राहक खुद तीसरे पक्ष से बुकिंग करता है, तो बाद में कैंसिलेशन के लिए उन्हीं से उम्मीद करता है, जबकि पॉलिसी तो साफ-साफ मना करती है।
एक मजेदार कमेंट में किसी ने लिखा, "अगर होटल फुल है और मैं मना कर दूं, तो लोग ऐसे बर्ताव करते हैं जैसे मैंने उनकी शादी कैंसिल कर दी हो!"
इस कहानी में एक खास बात और सामने आई—कई लोग सिर्फ सस्ता सौदा पाने के चक्कर में थर्ड पार्टी साइट्स का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन जब मुसीबत आती है तो न होटल मदद कर सकता है, न साइट। एक सज्जन ने तो यहां तक कह दिया, "अब मैं कभी भी सीधे होटल से बुकिंग ही करता हूं, चाहे 100-200 रुपये ज्यादा क्यों न लगें।"
सीख और सलाह: सीधे होटल से बुकिंग है सुकून
इस पूरे घटनाक्रम से एक बात तो साफ है—तीसरे पक्ष की बुकिंग में होटल वाले भी फंस जाते हैं और ग्राहक भी। न होटल के पास कंट्रोल रहता है, न एजेंट के पास जिम्मेदारी। और अगर गलती हो गई, तो दोनों के बीच पिसता बेचारा ग्राहक!
इसीलिए, अगर आप अगली बार होटल बुक करने की सोच रहे हैं, तो सीधा होटल की वेबसाइट या फोन नंबर का इस्तेमाल करिए। कम से कम, अगर कुछ गड़बड़ हो जाए, तो सामने वाला आपकी बात सुनेगा, न कि आपको एक सिस्टम से दूसरे सिस्टम की भंवर में फंसा देगा।
कई होटल कर्मचारियों ने भी यही सलाह दी है—सीधे बुकिंग करने से आपको बेहतर रेट, फ्लेक्सिबल पॉलिसी और सच्ची मानवीय सहायता मिलती है। और हां, होटल वालों की नींद भी नहीं उड़ती!
निष्कर्ष: आपकी राय क्या है?
तो दोस्तों, आपके साथ भी कभी ऐसी गड़बड़ बुकिंग या ग्राहक सेवा का चक्कर हुआ है? क्या आप भी ऑनलाइन बुकिंग साइट्स के चक्कर में फंस चुके हैं? नीचे कमेंट में अपनी कहानी जरूर साझा करें—कौन जाने, आपकी कहानी भी किसी और की नींद बचा दे!
इस पोस्ट के लेखक की तरह ही, हम सभी को कभी-कभी अपने अनुभवों की भड़ास निकालने का हक है। तो अगली बार होटल बुक करें, तो सोच-समझकर करें, ताकि ‘तीसरे पक्ष की बुकिंग का चक्कर’ आपके सिर पर न आ जाए!
मूल रेडिट पोस्ट: The third party loop of hell