ट्रायल रूम का तमाशा: जब ग्राहकों को खुद अपनी गंदगी उठानी पड़ी
दुकान में काम करना अपने आप में ही एक रोमांचक और कभी-कभी सिरदर्दी भरा अनुभव होता है। खासकर जब बात ट्रायल रूम यानी बदलने के कमरे (Fitting Room) की हो, तो मामला और भी दिलचस्प हो जाता है। हर दिन न जाने कितने लोग नए-नए बहानों और बेहूदगी के साथ आते हैं – कोई अपनी मर्जी का राजा, कोई खुद को नवाब समझता है। लेकिन जब दुकान के कर्मचारी भी थोड़ा तड़का लगाएं, तो मज़ा दोगुना हो जाता है!
ट्रायल रूम: ग्राहक और कर्मचारी की जंग
सोचिए, आप एक बड़े मॉल में कपड़ों की दुकान में काम कर रहे हैं। आपकी ड्यूटी लगती है ट्रायल रूम पर – यानी आने-जाने वाले हर ग्राहक का सामान गिनना, टैग देना और निकलते वक्त फिर से गिनती करना। लेकिन सच्चाई ये है कि ज्यादातर ग्राहक कपड़े ट्राय करने के बाद जो पसंद ना आए, उन्हें ऐसे छोड़ जाते हैं जैसे उनका कोई काम ही न था – कहीं बेंच पर, कहीं फर्श पर, कभी-कभी तो बाहर ही टांग देते हैं।
रेडिट पर एक यूज़र ‘u/Icy_Neighborhood5575’ ने अपनी कहानी साझा की। वे लिखते हैं – “कई ग्राहक तो ऐसे होते हैं, जैसे तीन साल के बच्चों को भी साफ-सफाई की तमीज उनसे ज़्यादा हो। मैं हर बार बड़े प्यार से मुस्कुरा कर उन्हें वापस भेजता – ‘माफ कीजिएगा, आपके दो आइटम कम हैं, कृपया उन्हें उठा लाइए।’ उनका मुंह बनना, झल्लाना, और फिर मजबूरी में गंदगी उठाना – सच में मन को बहुत संतुष्टि देता था!”
“मालिक बनो, पर इंसानियत मत बेचो!”
एक मजेदार टिप्पणी थी – “ग्राहक: मैंने दो कपड़े ट्रायल रूम में ही छोड़ दिए। कर्मचारी: तो जाकर उठा लाओ! ग्राहक: मेरे पास टाइम नहीं! कर्मचारी (रेडियो पर): सिक्योरिटी, ट्रायल रूम में संभावित चोरी की आशंका है!”
ऐसे में ग्राहक के होश उड़ जाते हैं।
दरअसल, हमारे यहाँ भी अक्सर देखा जाता है कि लोग दूसरों की मेहनत की कद्र नहीं करते। एक टिप्पणीकार ने लिखा, “साफ-सफाई की तमीज तो तीन साल के बच्चों में आ जाती है, लेकिन ये बड़े लोग फिर भी सीख नहीं पाते।”
कितना सही कहा!
दुकान के कर्मचारियों की भी अपनी मजबूरी होती है – उन्हें हर आइटम की गिनती करनी होती है, और अगर कोई ग्राहक कुछ छोड़ जाता है तो सारा जिम्मा उन्हीं पर आ जाता है। एक और टिप्पणी में कहा गया, “हमारे यहाँ ग्राहक से अपेक्षा सिर्फ इतनी है कि कपड़े तह करके लौटाएं, या कम से कम फर्श पर ना फेंकें, बस सभ्यता दिखा दें – यही बहुत है।”
“मालिकाना हक़ नहीं, इंसानियत दिखाएँ”
कई बार ग्राहक ये सोचते हैं कि वे पैसे देकर दुकान पर आ गए हैं तो अब सब कुछ उनके हवाले है। लेकिन दुकानदार भी आखिरकार इंसान हैं।
एक कमेंट में किसी ने लिखा, “मैं हमेशा कोशिश करता हूँ कि कपड़े ठीक से तह कर वापस करूं, लेकिन उतना अच्छा नहीं कर पाता। फिर भी, कम से कम चीजें समेटकर देता हूँ।”
दूसरे ने जोड़ा, “अरे, कपड़े परफेक्टली तह करना जरूरी नहीं, बस जानवरों जैसी हरकतें ना करो, यही काफी है।”
किसी ने तो यहाँ तक लिख डाला, “आप ग्राहक से उम्मीद करते हैं कि वो जानवर न बने? मुझे तो उल्टा हमेशा ग्राहकों से सबसे बुरा ही उम्मीद रहती है, अगर वो इंसान निकले तो चौंक जाता हूँ!”
ट्रायल रूम के किस्से: भारत में भी कम नहीं
भारत में भी ये समस्या आम है। शॉपिंग मॉल्स में त्योहारों के सीजन में ट्रायल रूम के बाहर लंबी कतारें लग जाती हैं। और अंदर जाकर लोग कपड़े ऐसे छोड़ते हैं जैसे घर का अलमारी हो। कई जगह तो दुकानदार बोर्ड भी लगा देते हैं – “कृपया कपड़े ट्रायल के बाद यहीं हैंगर पर लटकाएँ।”
फिर भी, कुछ लोग सुनते ही नहीं।
एक टिप्पणीकार ने कहा, “मुझे तो अपने बेटे की कराटे क्लास के लिए कपड़े देने होते हैं, मैं चाहता हूँ कि लोग कपड़े तह न करें, वरना और ज्यादा सिलवटें पड़ जाती हैं, लेकिन फर्श पर छोड़ना बहुत बुरी बात है।”
अंत में: थोड़ा सा सम्मान, बहुत बड़ी बात
क्या हम सब इतना नहीं कर सकते कि दुकान में जितनी सफाई से कपड़े उठाते हैं, उतनी ही शराफत से वापस भी रख दें? याद रखिए, ग्राहक राजा जरूर होता है, मगर राजा भी इंसानियत नहीं भूलता।
जैसा एक टिप्पणीकार ने कहा, “आप तो कमाल के ग्राहक ट्रेनर हैं!”
तो अगली बार जब आप शॉपिंग करने जाएं, ट्रायल रूम में कपड़े ट्राय करें – खुद उठाकर वापस दें।
कर्मचारी का दिन बन जाएगा, और आपकी भी शान बनी रहेगी!
आपका क्या अनुभव रहा है ट्रायल रूम या दुकानों में? नीचे कमेंट में जरूर बताइए!
मूल रेडिट पोस्ट: Retail changing room chaos