झूठ बोले कौवा काटे: होटल गेस्ट्स और लेट चेक-आउट की गजब जुगलबंदी
होटल का रिसेप्शन, यानी फ्रंट डेस्क, एक ऐसी जगह है जहाँ हर दिन दिलचस्प किस्से जन्म लेते हैं। कभी कोई मेहमान अपनी शादी की पूरी बारात लेकर आ जाता है, तो कभी कोई सुबह-सुबह ही समोसे की फरमाइश करने लगता है। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती तब आती है, जब एक ग्रुप का ग्रुप लेट चेक-आउट की मांग लेकर पहुँच जाता है। आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिसमें झूठ, तिकड़म और देसी जुगाड़ का तड़का है।
होटल के मैदान में झूठ का चौका
अब सोचिए, एक बड़े ग्रुप का होटल में आना वैसे ही रिसेप्शन वाले के लिए किसी रणभूमि से कम नहीं। सबका रूम नंबर भूल जाना, पैसे किसने दिए किसने नहीं, कौन किसके साथ रुका है—ये सब तो रोज़ की बातें हैं। लेकिन इस बार, जैसे सारे तारे एक साथ खराब हो गए। हर कोई लेट चेक-आउट चाहता था, और वो भी पूरे हक से!
हमारे कहानीकार, जो फ्रंट डेस्क पर तैनात थे, हर बार पूरे सम्मान से समझाते, "माफ कीजिएगा, लेकिन आज बहुत सारे चेक-आउट और चेक-इन हैं, इसलिए लेट चेक-आउट संभव नहीं है।"
लोग शांत होकर मान भी जाते, लेकिन "सांप निकल गया, लाठी पीटना बाकी है"—अर्थात अगले दिन मामला पलट गया।
देसी अंदाज में 'जुगाड़' की कोशिश
अब सुनिए असली मसाला! एक साहब, जिनको कहानीकार ने खुद चेक-इन किया था, बड़े गर्व से मैसेज करते हैं—"हमें तो चेक-इन के समय ही बताया गया था कि हमारे पूरे ग्रुप के लिए लेट चेक-आउट पहले से तय है।"
यह सुनकर तो अपने यहाँ कहावत है, "झूठ बोले कौवा काटे!" भैया, ऐसे झूठ तो गाँव के बच्चों को भी हजम नहीं होते!
यहाँ OP (यानी हमारे कहानीकार) ने मजाकिया अंदाज में लिखा—"क्या इनकी मम्मी ने मशहूर कविता 'Liar, liar, pants on fire!' नहीं सिखाई थी?"
खास बात ये रही कि फ्रंट डेस्क की टीम ने मिलकर इस झूठ की पोल खोल दी और दोबारा उस मेहमान की मांग ठुकरा दी। यानी यहाँ 'सांच को आंच नहीं' वाली बात सही साबित हुई।
'अगर सबको लेट चेक-आउट मिल जाए, तो उसका मतलब ही क्या?'
रेडिट पर एक यूज़र ने बड़े मजेदार अंदाज में लिखा—"अगर सबको लेट चेक-आउट मिल जाए, तो किसी को भी लेट चेक-आउट नहीं मिला!"
बिल्कुल वैसे ही जैसे गाँव की शादी में सबको 'स्पेशल' मिठाई मिल जाए, तो फिर वो 'स्पेशल' कहाँ रही!
कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो जरा-सी रियायत मिलने पर पूरे मोहल्ले को बता देते हैं। एक टिप्पणी में एक मेहमान ने लिखा कि उन्हें फ्रंट डेस्क ने चुपके से एक घंटे की मियाद दी, बशर्ते वो किसी को बताएँ नहीं। लेकिन अक्सर लोग "कसम खाते हैं" और फिर पान की दुकान पर जाकर सबको बता आते हैं। यही वजह है कि होटल वाले अक्सर ग्रुप्स को कोई स्पेशल सुविधा नहीं देते, क्योंकि एक को दी तो सब लाइन में!
होटल कर्मियों के लिए सबक और देसी तजुर्बा
एक और कमेंट बड़ा सटीक था—"अगर आप झूठ बोलेंगे कि आपको कोई वादा किया गया, तो फ्रंट डेस्क वाले की मदद की इच्छा भी मर जाती है।"
यानी, झूठ से कोई फायदा नहीं, उल्टा नुकसान ही है।
कुछ अनुभवी कर्मचारी तो अब सीधे-सीधे कह देते हैं, "महोदय, लेट चेक-आउट उपलब्ध नहीं है।" जब दो-तीन बार पूछो, तो वही जवाब—"नियम यही है।"
कई होटल्स में अब यह नियम बन गया है कि जब तक कॉन्ट्रैक्ट में लिखा न हो, ग्रुप को कोई लेट चेक-आउट नहीं मिलेगा। वरना एक को मिली छूट, सबके लिए सिरदर्द बन जाती है।
आखिर में—ईमानदारी में ही भलाई है
इस पूरी कहानी से यही सीख मिलती है कि होटल हो या जिंदगी, ईमानदारी और बातचीत से ही रास्ता निकलता है। झूठ बोलकर कोई फायदा नहीं, उल्टा 'कौवा काटे' वाली फजीहत हो जाती है।
जैसे एक यूज़र ने लिखा—"हम मेहमानों को दुश्मन नहीं मानते, लेकिन अगर कोई जरूरत से ज्यादा चालाकी दिखाए तो…!"
इसलिए अगली बार जब आप होटल जाएँ, तो शराफत से बात करें, हो सकता है आपको बिना माँगे ही कोई छूट मिल जाए!
और हाँ, अगर होटलवाला बोले "किसने वादा किया था?", तो नाम बताने से पहले दो बार सोचिएगा—वरना झूठ की पोल वहीं खुल जाएगी!
आपकी क्या राय है? कभी आपको ऐसी 'जुगाड़बाजी' का सामना करना पड़ा है? या आपने खुद कोई देसी तिकड़म आजमाई है? हमें कमेंट में जरूर बताइए!
मूल रेडिट पोस्ट: Liar, liar