जब HR ने IT टीम को दिलाया चैन: दफ्तर की एक अनोखी जंग
ऑफिस में काम करने वाला हर कोई जानता है – आईटी (IT) टीम का नाम आते ही लोगों के चेहरे पर एक अलग ही चमक आ जाती है। कंप्यूटर अटक गया, प्रिंटर रूठ गया, इंटरनेट ने दिमाग खराब कर दिया – बस, तुरंत आईटी वाले को ढूंढ़ो! लेकिन सोचिए, अगर हर कोई अपने-अपने तरीके से आईटी टीम को पकड़ना शुरू कर दे – कोई कैफेटेरिया में, कोई सीढ़ियों पर, कोई सीधा मेल करके, तो आईटी वालों की तो शामत आ जाए!
यही हाल एक बड़ी कंपनी के आईटी स्टाफ का था। वहाँ के कर्मचारी हर छोटी-बड़ी परेशानी के लिए सीधे आईटी वालों को तंग करने लगते थे। न ऑफिस का कोई कोना सुरक्षित, न चैट का कोई चैनल बंद। आईटी टीम चाहे मीटिंग में हो या लंच पर, हर कोई हाथ में शिकायत लेकर उनके पीछे पड़ जाता। अब बेचारे आईटी वाले क्या करें? आखिरकार, एचआर (HR) ने उनकी मदद के लिए कमर कस ली – और फिर जो हुआ, वो हर ऑफिसवाले को जानना चाहिए!
"टिकट सिस्टम" का जादू – पर सबको समझाओ कौन?
अब बड़ी कंपनियों में एक सिस्टम होता है – कोई भी शिकायत या रिक्वेस्ट हो, पहले "टिकट" लॉग करो। मतलब, आपकी समस्या एक ऑनलाइन पोर्टल, ईमेल या फोन के जरिए सिस्टम में दर्ज हो जाए। इससे आईटी टीम को आसानी होती है, सबका हिसाब-किताब रहता है, और किसी की शिकायत गुम नहीं होती। लेकिन यहाँ तो 90% लोग सवाल करने लगते – "टिकट कैसे बनाते हैं?", "इसमें प्रॉब्लम क्या लिखें?", "फोन नंबर कहाँ डालें?" मतलब, जैसे बच्चों को पहली बार स्कूल भेज रहे हों!
कुछ लोग तो सचमुच कंप्यूटर से डरते हैं, लेकिन कई सिर्फ बहाना बनाते हैं – "हमें तो कुछ समझ ही नहीं आता, आप ही कर दो न!" एक मजेदार टिप्पणी थी – "अगर यही फॉर्म कागज़ पर दे दो, तो भी क्या यही बहाना चलेगा, कि हमें पेन चलाना नहीं आता?" जैसे पनवाड़ी से पूछो, "पान कैसे बनाते हैं?" या फिर दूधवाले से कहो, "गाय कैसे दुहूं?"
एचआर की मास्टरस्ट्रोक चाल – "आईटी से संपर्क कैसे करें" कोर्स
आईटी टीम ने भी ठान लिया – अब और नहीं! उन्होंने एचआर के साथ मिलकर एक अनोखा कोर्स बनवाया – "आईटी से संपर्क कैसे करें"। अब हर नए कर्मचारी को जॉइन करने से पहले ये ऑनलाइन ट्रेनिंग पूरी करनी थी, और पुराने कर्मचारियों को भी छह हफ्ते के भीतर ये कोर्स करना जरूरी था। इसमें सिखाया गया – टिकट कैसे लॉग करें, प्रॉब्लम कैसे लिखें, फोन नंबर कहाँ डालें, वगैरह।
कोर्स के आखिर में एक छोटा सा टेस्ट भी था – पास नहीं हुए तो दोबारा! अब जब भी कोई आईटी वाले से पूछता, "टिकट कैसे बनाऊँ?" तो आईटी वाला बड़े मज़े से कहता, "आपने तो ट्रेनिंग की है, भूल गए? अपने मैनेजर से दोबारा ट्रेनिंग के लिए कहिए!" एक कमेंट में किसी ने लिखा – "अब तो बस ट्रेनिंग रीसेट कर दो, ऑटोमेटेड मेल जाएगा – पहले पास करो, फिर टिकट बनाओ!"
"कंप्यूटर से डर" या "कुर्सी की आदत"? – दफ्तर की मनोविज्ञान
कई लोग दलील देते – "हमें कंप्यूटर नहीं आता", "हम तो पुराने तरीके के हैं", "इतना सब झंझट कौन करे?" एक यूज़र ने कहा – "आज के ज़माने में 'मुझे कंप्यूटर नहीं आता' कहना वैसा ही है, जैसे कोई कहे – 'मुझे लिखना नहीं आता'!" और सही भी है – जब आपके काम की कुर्सी कंप्यूटर पर टिकी हो, तो बहाना बनाना किस काम का?
कुछ लोग तो ऐसे भी होते हैं जो सालों से वही काम कर रहे हैं, फिर भी हर बार नई दिक्कत में खुद को मासूम बना लेते हैं। एक और टिप्पणी में किसी ने लिखा – "अगर आपको अपनी समस्या समझाने में 15 मिनट लगते हैं, तो शायद आपको दफ्तर की चाय बनानी चाहिए, आईटी वालों का वक्त बर्बाद मत करो!"
लेकिन एक और तरफ़, कुछ लोग सचमुच इतने थके रहते हैं कि दिमाग साथ नहीं देता। एक कमेंट में लिखा था – "कभी-कभी लोग दिखावा नहीं करते, वाकई थक चुके होते हैं।" ये भी सच है – दफ्तर की भागदौड़ में हर किसी का दिमाग कंप्यूटर जैसा तेज़ नहीं चल सकता।
"टिकट सिस्टम" लागू होने के फायदे – आईटी टीम को भी चैन, कंपनी को भी लाभ
जब एचआर और आईटी ने मिलकर ये ट्रेनिंग लागू की, तो छह हफ्तों बाद कमाल हो गया। अब कोई सीधा आईटी वाले को घेरता नहीं था – सबको पता था, पहले टिकट बनाओ, तभी मदद मिलेगी। इससे आईटी टीम का वक्त बचा, काम में पारदर्शिता आई, और हर शिकायत का रिकॉर्ड भी बना। एक कमेंट में किसी ने सही कहा – "जब मजबूरी हो, तो सब सीख जाते हैं!"
दूसरी तरफ़, कंपनी को भी फायदा हुआ – हर समस्या की ट्रैकिंग आसान हुई, सबका हिसाब-किताब रहा, और आईटी टीम का मनोबल भी बढ़ा। अब कोई भी अपनी लापरवाही छुपा नहीं सकता था। एक कमेंट में बड़े मजेदार अंदाज में लिखा गया – "अब आईटी वाले भी कह सकते हैं – माफ कीजिए, मैं मैकेनिक हूँ, ड्राइविंग इंस्ट्रक्टर नहीं!"
निष्कर्ष: सीखना जरूरी है, बहाने नहीं!
तो दोस्तो, इस कहानी से यही सिखने को मिलता है – जब तक दफ्तर में सिस्टम नहीं होगा, सबका वक्त बर्बाद होगा। आईटी टीम को भी अपना काम करने दो, और अगर ट्रेनिंग मिली है तो उसका फायदा उठाओ। बहाने बनाना छोड़ो, वरना अगली बार आपका मैनेजर फिर से ट्रेनिंग पर भेज देगा!
अगर आपके ऑफिस में भी ऐसी कोई घटना हुई है, या आपको आईटी वालों से जुड़े मजेदार किस्से याद हैं, तो नीचे कमेंट करके जरूर बताइए। आखिरकार, हर दफ्तर की अपनी कहानी होती है – और आईटी टीम के बिना तो कोई भी ऑफिस अधूरा है!
मूल रेडिट पोस्ट: It's great when HR has IT's back