जब होटल रिसेप्शन पर आया नशे में धुत कॉलर: एक यादगार किस्सा
कहते हैं होटल का रिसेप्शन हर किस्म के मेहमानों की कहानियों का गवाह होता है। परंतु, कभी-कभी ऐसे फोन कॉल भी आ जाते हैं, जिनकी कोई तुक ही नहीं बनती। सोचिए, आप तीन दिनों की छुट्टी के बाद, बीमारी की हालत में काम पर लौटे हों और आपको स्वागत करता है—एक नशे में धुत कॉलर! जी हाँ, आज की कहानी है एक होटल रिसेप्शनिस्ट के अनुभव की, जिसने न केवल उसकी पेशेवर सहनशीलता की परीक्षा ली, बल्कि पूरे स्टाफ की हंसी का कारण भी बना।
जब फोन की घंटी बजती है और किस्मत करवट लेती है
अब ज़रा सोचिए, आप अपने कागज़ातों में उलझे बैठे हैं, तभी फोन की घंटी बजती है। रिसेप्शन पर बैठे साथी पहले से ही व्यस्त हैं, तो आप खुद फोन उठा लेते हैं। कॉलर आईडी पर नाम देखकर उम्मीद बंधती है कि कोई मेहमान होगा, पर जैसे ही आप अपना नाम बताते हैं, उधर से ज़ोरदार मर्दाना आवाज़ में कोई दूसरा नाम पुकारता है। दो बार परिचय देने के बाद भी सामने वाला हँसते-हँसते लोटपोट—जैसे किसी पुराने हिंदी फ़िल्म के हास्य दृश्यों की याद आ जाए।
इसी बीच, वह कॉलर अजीब सवाल पूछने लगता है—“1962 या 1963 में तुम्हें क्या याद है?” अब भला जिसे उस समय उसके माता-पिता भी पैदा नहीं हुए, वो क्या जवाब दे! जब रिसेप्शनिस्ट बताती हैं कि “मेरे माता-पिता भी उस समय पैदा नहीं हुए थे”, तो जनाब का मूड बिगड़ जाता है। धीरे-धीरे उनकी जुबान भी लड़खड़ाने लगती है, जिससे साफ पता चलता है कि साहब नशे में हैं।
अजीबो-गरीब सवालों की बौछार और रिसेप्शनिस्ट का धैर्य
अब यहाँ से कहानी और मज़ेदार हो जाती है। साहब बार-बार उम्र पूछने लगते हैं, पर रिसेप्शनिस्ट शालीनता से मना कर देती हैं। उधर से नाराज़गी की बौछार—“तुम बहुत छोटी हो, आजकल के बच्चे!” और हर जवाब के बाद वही सवाल—“क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूँ?” मगर साहब तो जैसे मस्ती में बहकते ही जा रहे थे।
फिर शुरू होती है बड़बड़ाहट—कुछ समझ नहीं आता। रिसेप्शनिस्ट बार-बार कहती हैं, “सुनाई तो दे रहा है, पर समझ नहीं आ रहा।” अब जनाब कहते हैं, “अरे तुम सुन तो सकती हो।” जैसे कोई हिंदी मामा-चाचा की तर्ज़ पर बहस कर रहा हो। जब बार-बार पूछा कि आखिर कॉल किसलिए की है, तो साहब गुस्से में गालियाँ देने लगे—और फिर दावा कि “मैंने गाली नहीं दी!” आखिरकार, रिसेप्शनिस्ट ने फोन काट दिया और अपने साथी को आगाह कर दिया कि इस नंबर से अगर फिर कॉल आए तो सतर्क रहें।
कम्युनिटी के मजेदार सुझाव और अनुभव
अब ज़रा Reddit समुदाय के कुछ मज़ेदार और उपयोगी सुझावों पर गौर करें। एक यूज़र ने सलाह दी—“हमारे यहाँ जब भी कोई शरारती कॉल करता था, तो हम बस बोल देते, ‘ऑपरेटर, इस कॉल को ट्रेस करो!’ और फोन काट देते। असल में कोई ऑपरेटर नहीं था, पर कॉल आना बंद हो जाता था।” सोचिए, हमारे यहाँ भी किसी को कह दें, “भैया, पुलिस ट्रेस कर रही है कॉल”—तो आधे लोग तो ऐसे ही डरकर भाग जाएँ!
एक और यूज़र ने बताया कि ऐसे कॉल्स को वे सीधे लोकल पुलिस की गैर-आपातकालीन हेल्पलाइन पर ट्रांसफर कर देते हैं। किसी ने तो यहाँ तक कह दिया कि उसकी बहन ऐसे कॉल्स को FBI के फ्रॉड डिपार्टमेंट में जोड़ देती है। हमारे यहाँ सोचिए, कोई कॉल करे और आप उसे थाने के नंबर पर ट्रांसफर कर दें—अगली बार वो खुद ही सुधर जाए!
कुछ लोगों ने अपने अनुभव साझा किए कि होटल में ऐसे “खास सेवाएँ” माँगने वाले कॉल्स अक्सर आते हैं। किसी ने तो हँसी-मज़ाक में कह दिया, “भैया, होटल है, किराए पर कमरा चाहिए तो बताओ, वरना फोन रखो!” और एक कमेंट में तो मज़ेदार किस्सा था—“एक रात तीन बजे एक जनाब ने ऐसी अजीब डिमांड कर डाली कि सुनकर मैं भी हैरान रह गया, और थक हारकर कह दिया कि जाओ, ये सब अपने पापा के साथ करो!”
होटल रिसेप्शन—हर दिन एक नई कहानी
ये किस्सा सिर्फ एक रिसेप्शनिस्ट की परेशानी नहीं, बल्कि हर उस कर्मचारी की कहानी है जो ग्राहकों के सीधे संपर्क में रहता है। कभी-कभी ऐसे अजीबो-गरीब फोन कॉल्स दिन की सबसे बड़ी चुनौती बन जाते हैं। लेकिन जैसे हमारे यहाँ कहा जाता है—“कुत्ते भौंकते हैं, हाथी चलता है”—वैसे ही होटल स्टाफ अपना काम करता रहता है। और इन किस्सों को बाद में सुनाकर सब मिलकर खूब हँसते हैं।
वैसे, अगर कभी किसी होटल के रिसेप्शन पर फोन करने का मन हो, तो याद रखिए—वहाँ भी इंसान बैठा है, मशीन नहीं। और अगर कोई ‘खास सेवा’ की उम्मीद लेकर फोन करे, तो वह शायद पुरानी फिल्मों में ही मुमकिन था!
निष्कर्ष: आपकी राय क्या है?
अंत में आप से सवाल—क्या आपके साथ कभी ऐसे अजीब कॉल्स या ग्राहक का सामना हुआ है? अगर हाँ, तो अपनी कहानी नीचे कमेंट में ज़रूर शेयर करें। और अगर नहीं, तो अगली बार होटल में ठहरें तो रिसेप्शनिस्ट की मुस्कान के पीछे छुपे संघर्ष को ज़रूर याद कीजिएगा।
क्योंकि होटल की रिसेप्शन—हर दिन, हर रात—कई फिल्मी कहानियों की असली शूटिंग लोकेशन होती है!
मूल रेडिट पोस्ट: Drunk caller