जब होटल में कुत्ते की शरारत ने रिसेप्शनिस्ट की परीक्षा ली
होटल में काम करना जितना आसान दिखता है, उतना है नहीं। हर दिन कुछ नया देखने और सुनने को मिल ही जाता है। सबसे मज़ेदार और कभी-कभी सिरदर्द वाले मेहमान वे होते हैं, जो अपने पालतू जानवरों के साथ आते हैं। वैसे तो ज़्यादातर लोग अपने डॉगी या बिल्ली को बच्चे की तरह संभालते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जिनकी वजह से होटल स्टाफ का दिन यादगार बन जाता है – और वो भी उल्टे मतलब में!
तो जनाब, आज की कहानी एक ऐसे ही 'पालतू-प्रेमी' मेहमान की है, जिसने होटल की साफ-सफाई, नियमों और स्टाफ की सहनशीलता – सबकी हदें पार कर दीं। होटल का नियम बिल्कुल साफ था: "पालतू जानवर लाओ, लेकिन जिम्मेदारी भी खुद निभाओ।" ज़्यादातर लोग इसे समझते हैं, पर इस बार मामला कुछ अलग था।
शुरुआत तो बड़ी मासूमियत से हुई। एक साहब अपने प्यारे कुत्ते के साथ होटल आए। डॉगी बड़ा ही मिलनसार था, हर किसी से दुलार करवाने को तैयार। पर क्या पता था, उसकी मासूमियत में एक बड़ा 'झोल' है! हर बार कोई उसे दुलार देता, वो इतनी खुशी से झूम उठता कि खुशी के मारे वहीं 'नंबर 1' कर देता! अब आप सोच रहे होंगे, इसमें नया क्या है? बच्चे-पालतू तो शरारती होते ही हैं। पर भैया, बार-बार जब होटल के गलियारे में यही कांड हो, तो किसका सिर न दुखे?
होटल स्टाफ में से कुछ लोग तो बड़े ही उदार निकले। उन्होंने उस मेहमान को कई बार सफाई में मदद भी की, पर हमारे नायक – यानि रिसेप्शनिस्ट – का सब्र तोड़ा उस एक वाकये ने, जब डॉगी ने फिर से गलियारे में पेशाब कर दी और उसके मालिक ने आंखों में बेफिक्री लिए कहा, "साफ कर दो, बस थोड़ा सा ही तो है!"
जरा सोचिए, होटल में सफाईकर्मी की अपनी भी कोई मर्यादा होती है। किसी का कुत्ता, किसी की ज़िम्मेदारी, और ऊपर से “बस थोड़ा सा है” वाला रवैया – ये तो हद ही हो गई! रिसेप्शनिस्ट ने मन मसोस कर सफाई कर दी, लेकिन अंदर ही अंदर खौलते रहे।
इत्तेफाक देखिए, उसी वक्त मैनेजर साहिबा वहां से गुज़रीं। कारण पूछने पर जब पूरी दास्तान सुनी, तो उनका भी पारा चढ़ गया। उन्होंने साफ कहा, "अब बहुत हुआ, अपने कुत्ते की सफाई खुद करो।" और इतने सारे हादसों के बाद, उन्होंने तय किया कि इस साहब के कमरे की भी जांच होनी चाहिए।
अब असली तमाशा यहीं शुरू हुआ। कमरे में घुसते ही सब हैरान – कालीन पर गीले-गीले पीले धब्बे, जैसे किसी ने नक्षत्र बना दिए हों! साफ था, साहब ने अपने प्यारे डॉगी को कमरे में भी खुली छूट दे रखी थी। होटल का नियम तोड़ना, स्टाफ पर बोझ डालना – इन सबका नतीजा ये हुआ कि उन्हें शाम तक होटल छोड़ने का फरमान सुना दिया गया।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। जाते-जाते भी साहब बाज़ न आए। फिर से कुत्ते को बाहर घुमाने निकले, और किसी अन्य मेहमान ने डॉगी को दुलारना चाहा। साहब ने फिर से इजाज़त दे दी – और वही पुराना किस्सा, फिर से गलियारे में पेशाब! इस बार कम से कम शर्म आ ही गई, खुद ही सफाई कर दी। पर लोगों की बेशर्मी का कोई इलाज नहीं!
यह किस्सा सुनकर कई पाठकों को अपने मोहल्ले के वो लोग याद आ गए होंगे, जो अपने पालतू को सड़क पर घुमा तो लेते हैं, पर गंदगी साफ करना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। एक कमेंट में किसी ने खूब लिखा – “अगर पता है कि कुत्ता दूसरों से दुलार पाते ही पेशाब कर देता है, तो या तो दुलार की इजाज़त मत दो, या फिर डायपर पहना दो!” बात तो बिल्कुल सही है। अगर कुत्ता कोई दिक्कत की वजह से ऐसा कर रहा है, तो जिम्मेदार मालिक को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए, या सफाई का सामान साथ रखना चाहिए।
एक और पाठक ने चुटकी ली – “कुत्ते का क्या कसूर, असली गड़बड़ तो मालिक की है। बेचारे जानवर को तो समझ ही नहीं, जिम्मेदारी तो इंसान की है।” कई लोगों ने तो ये भी कहा कि ऐसे लोगों की वजह से ही कई होटल ‘पेट-फ्रेंडली’ होने से कतराते हैं।
इस बहस में बिल्ली पालने वालों की भी एंट्री हो गई! एक ने लिखा – “होटल में लिखा होता है ‘पेट-फ्रेंडली’, पर असली में सिर्फ डॉगी फ्रेंडली!” उनका गुस्सा जायज भी है – बिल्ली पालने वाले अक्सर साफ-सुथरे होते हैं, फिर भी होटल में उनके लिए रोक-टोक ज़्यादा होती है। किसी ने तो मज़ाक में कह दिया, “हमारे बिल्ली ने होटल के फ्लोर पर नक्षत्र नहीं बनाए, फिर भी हमें शक की निगाह से देखा जाता है!”
यह किस्सा सुनकर एक कहावत याद आती है – “घर का झगड़ा घर में ठीक, बाहर न फैलाओ।” जब आप अपने पालतू के साथ बाहर निकले हैं, तो जिम्मेदारी भी आपकी ही है। हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में काम करने वालों का काम भी इज्जत से करना चाहिए – आखिर वे भी इंसान हैं। होटल में सफाई रखना, दूसरों को असुविधा न देना – ये हमारी संस्कृति भी सिखाती है।
अंत में, यही कहना चाहूंगा – पालतू पालना शान की बात हो सकती है, लेकिन जिम्मेदारी उससे कहीं बड़ी बात है। अगर आप भी कभी अपने जानवर के साथ होटल या किसी सार्वजनिक जगह जाएं, तो साफ-सफाई और दूसरों की सहूलियत का ध्यान रखें। और हां, अगर कुत्ते का ‘खुशी से पेशाब’ करने का शौक है, तो डायपर, रुमाल, टिशू – सब साथ रखें, ताकि आपकी वजह से किसी और का दिन खराब न हो।
आपका क्या अनुभव रहा है ऐसे ‘पालतू-प्रेमियों’ के साथ? क्या आपके मोहल्ले या कॉलोनी में भी कोई ऐसा किस्सा हुआ है? नीचे कमेंट में ज़रूर बताएं – और अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो, तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें!
मूल रेडिट पोस्ट: That one dog owner who pissed me off