जब होटल की लॉबी में दादाजी ने 'बेड बग्स' के नाम पर मचाया बवाल
होटल की लॉबी में आमतौर पर या तो नए मेहमानों की चहल-पहल रहती है या फिर रजिस्ट्रेशन की औपचारिकता। लेकिन सोचिए, अगर अचानक किसी बुज़ुर्ग सज्जन की तेज़ आवाज़ में शिकायत गूंजे, "आपके बेड में ऐसे कीड़े हैं, जो सिर्फ़ मेरी जाँघों को ही काट रहे हैं!" तो होटल कर्मचारियों की हालत क्या होगी?
ऐसा ही कुछ नज़ारा सामने आया जब एक अनुभवी बुज़ुर्ग ने अपने कमरे की शिकायत करते हुए सबके सामने पूरे आत्मविश्वास से दावा कर दिया कि होटल के गद्दों में भयंकर बेड बग्स (खटमल) हैं, और वे सिर्फ़ उनकी 'ग्रोइन' (जाँघों के बीच के हिस्से) पर ही हमला कर रहे हैं। अब आप सोचिए, सारे मेहमान, मैनेजर और रिसेप्शनिस्ट एक पल में सन्न!
होटल में मच गया हड़कंप – 'क्या सचमुच हैं खटमल?'
होटल स्टाफ के लिए यह कोई नई बात नहीं कि मेहमान कभी-कभी छोटी-छोटी बातों पर शिकायत कर दें। पर जब शिकायत कुछ ज़्यादा ही निजी हो और वह भी इतनी ऊँची आवाज़ में, तो सांप-छछूंदर वाली स्थिति बन जाती है।
स्टाफ ने तुरंत कमरे की जाँच की, गद्दे पलटे, बेडशीट्स देखीं, हर कोना खंगाल डाला – कहीं कोई खटमल नज़र नहीं आया। होटल के एक कर्मचारी ने बाद में अपने मन की बात शेयर की – "हमें पक्का यकीन था कि मामला वही नहीं है, जो दादाजी सोच रहे हैं।"
मेहमान की ज़िद और स्टाफ की उलझन – 'कहीं बात कुछ और तो नहीं?'
अब दादाजी अपनी बात पर अड़े रहे – "मुझे कमरा फ्री चाहिए, इतनी भयंकर परेशानी के बाद!" ऊपर से वे अपनी शिकायत ऐसे ज़ोर-ज़ोर से सुना रहे थे कि बाकी मेहमानों में भी बेचैनी फैल गई। होटल वालों ने उन्हें शांति से समझाने की कोशिश की, लेकिन डर था कि कहीं और लोग भी डर के मारे होटल ना छोड़ दें।
यहाँ एक कमेंट याद आता है – "भैया, खटमल सिर्फ़ जाँघों को क्यों काटेंगे? लगता है दादाजी को 'क्रैब्स' (genital lice) हो गए हैं, पर वो वाले नहीं जो बाज़ार में मिलते हैं!"
एक और पाठक ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, "खटमल बालों वाले हिस्सों से दूर भागते हैं, ऐसे में जाँघें ही क्यों?"
और किसी ने तो सुझाव दे डाला – "भाई, सीधे डॉक्टर के पास जाओ, होटल वालों की जान बख्शो!"
क्या था असली कारण? संस्कृति और समझ का टकराव
अक्सर हमारे यहाँ भी कोई बात शर्म की हो तो लोग इधर-उधर की बात बनाकर अपनी गलती छुपा लेते हैं। यहाँ भी दादाजी ने शायद अपनी असल समस्या छुपाने के लिए होटल पर दोष डाल दिया।
एक कमेंट में लिखा था, "शायद दादाजी को पता है कि अगर 'ग्रोइन' की शिकायत करेंगे तो कोई भी खुलकर जाँच नहीं करेगा और ना ही उनसे ज्यादा सवाल पूछेगा – फ्री कमरा तो मिल ही जाएगा।"
कई लोगों ने यह भी कहा कि "ये तो पुराना तरीका है – होटल में फ्री में रुकने का बहाना ढूंढो।"
स्टाफ की हालत सोचिए – न खुद बोल सकते, न पूछ सकते कि भाई, असली दिक्कत क्या है!
एक कर्मचारी ने तो यह भी कहा, "हम सब मन ही मन सोच रहे थे – अंकल, डॉक्टर के पास जाइए, होटल में नहीं!"
किसी ने तो चुटकी ली, "लगता है होटल को अपनी 'सेवा' देने वाले लोगों की भी जाँच करनी पड़ेगी!" ये किस्सा तो जैसे हर होटल कर्मचारी का डर बन गया।
हमारी संस्कृति में ऐसे मामलों पर होता है क्या?
हमारे यहाँ अगर ऐसे कोई मेहमान मंडल में इस तरह बोल दे, तो सबसे पहले तो घर के बड़े लोग ही उसे चुप कराने की कोशिश करेंगे – 'अरे, धीरे बोल, क्या ज़रूरत है सबको बताने की?'
हम भारतीयों के लिए 'इज़्ज़त' और 'शराफत' हर बात से ऊपर है। ऐसे में होटल वालों का डरना लाज़मी था – कहीं दादाजी की बात से होटल की बदनामी न हो जाए।
लेकिन होटल वालों ने भी समझदारी दिखाई – मेहमान को बेइज़्ज़त किए बिना, उनकी बात सुनकर, और आखिर में उनका कमरा फ्री कर दिया (भले ही मन में खुजली हो रही थी!)
जैसा कि एक कमेंट में था – "भाई, अगर दादाजी को यही बीमारी थी, तो होटल का नुकसान कम है, दवा का खर्चा ज़्यादा!"
आखिरकार, सबने राहत की सांस ली – "चलो, किसी और मेहमान को तो ऐसी समस्या नहीं आई!"
निष्कर्ष – हँसी, सीख और थोड़ी सी शर्मिंदगी
हर होटल, धर्मशाला या गेस्ट हाउस में अजीबोगरीब मेहमान आते ही हैं। लेकिन इस कहानी से एक बात ज़रूर समझ आती है – कभी-कभी लोग अपनी असल समस्या छुपाने के लिए दूसरों पर दोष डाल देते हैं, और दूसरों को शर्मिंदगी में डाल देते हैं।
साथ ही, होटल स्टाफ की सहनशीलता और समझदारी की भी दाद देनी पड़ेगी – उन्होंने न तो दादाजी को शर्मिंदा किया, न ही होटल की इज़्ज़त पर आंच आने दी।
आपका क्या कहना है? क्या आपने कभी ऐसी अजीब शिकायत सुनी है? या आपके परिवार में किसी ने कभी होटल स्टाफ को यूँ ही परेशान किया है? अपने मज़ेदार अनुभव कमेंट में ज़रूर शेयर करें – कौन जाने, अगली कहानी आपकी हो!
मूल रेडिट पोस्ट: Bed Bugs only affecting his groins