जब होटल की नौकरी बनी मन का बोझ: बुरा मैनेजमेंट, गुपचुप राजनीति और आगे का रास्ता
कभी-कभी जिंदगी हमें ऐसे मोड़ पर ले आती है जहाँ अपनापन भी बोझ बन जाता है। नौकरी में मेहनत और ईमानदारी से काम करने के बाद भी अगर आपका सम्मान न हो, तो दिल दुखता है। खासकर जब ऑफिस की राजनीति ‘सास-बहू’ के झगड़े से भी आगे निकल जाए, तो समझ लीजिए कि मामला बड़ा पेचीदा है!
आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं एक छोटे, लेकिन ऊँचे दर्जे के होटल में काम करने वाले कर्मचारी की कहानी, जिसने बेतहाशा मेहनत की, सबका दिल जीता, लेकिन होटल की 'राजनीति की चक्की' में पिसते-पिसते उसका सब्र जवाब देने लगा।
जब दोस्ती बन जाए मुसीबत: होटल की मैनेजमेंट की अंदरूनी राजनीति
हमारे नायक ने एक साल पहले होटल के फ्रंट डेस्क पर काम शुरू किया। होटल छोटे शहर का था, लेकिन अपनी चमक-दमक में किसी फाइव-स्टार से कम नहीं। यहाँ की जनरल मैनेजर (GM) और फ्रंट डेस्क सुपरवाइज़र एक-दूसरे की जिगरी दोस्त थीं। शुरू में सब ठीक चला, लेकिन समय के साथ सुपरवाइज़र ने कई पुराने कर्मचारियों को अलग-अलग बहानों से निकाल फेंका। और तो और, वो हर किसी की बुराई करती, चुगली करती, और अपने GM दोस्त के सामने सब दबा देती। अगर कोई शिकायत करता, तो GM बस हँसकर टाल देती—“अरे, कोई बात नहीं! सब ठीक है।”
शुरुआत में हमारे नायक ने भी इन बातों को नज़रअंदाज किया। लेकिन जब सुपरवाइज़र की नजरें उन्हीं पर टेढ़ी होने लगीं, तो परेशानी बढ़ गई। गुपचुप चुगली, पीठ पीछे बातें, और काम का बोझ अलग! लगता था जैसे अब उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी हो रही है।
जब मेहनत भी ना चले: कर्मचारी की दुविधा और समुदाय की राय
अब सवाल ये था—क्या करें? GM से बात की, तो उन्होंने भी आश्वासन दे दिया, “आप कहीं नहीं जा रहे, आपने हमारे लिए बहुत कुछ किया है।” लेकिन भरोसा किस पर करें? गाँव-कस्बे की तरह, होटल की भी अपनी राजनीति है; एक बार निशाने पर आ गए, तो बचना मुश्किल।
रेडिट जैसे मंच पर जब हमारे नायक ने अपनी दुविधा साझा की, तो कई लोगों ने अपने-अपने अनुभव और सुझाव दिए। एक पाठक ने बिल्कुल देसी अंदाज में सलाह दी—“भैया, जो होटल में चल रहा है, वो तो गाँव की पंचायत से भी बदतर है! अगले होटल में बात करो, नई नौकरी ढूंढ़ो, यहाँ क्यों अपना खून जलाना?”
एक और अनुभवी सदस्य ने कहा, “अगर होटल किसी बड़ी चेन का हिस्सा है, तो HR में रिपोर्ट करो। वरना, मालिकों से बात करो। लेकिन याद रखो, कहीं नौकरी ढूंढ़ने का वक्त यहीं है। एक साल का अनुभव कम नहीं होता—अपने रिज़्यूमे में बढ़िया से सब लिखो: कौन-कौन से सॉफ्टवेयर चलाए, क्या-क्या अतिरिक्त जिम्मेदारियाँ निभाईं।”
यहाँ तक कि किसी ने मज़ाकिया अंदाज में कहा, “नौकरी जब तक है, तब तक अगली नौकरी देखो! GM की बातों में मत आओ, मैंने 27 साल बाद भी अचानक निकाल दिया गया। अब तो उस दिन को अपनी ‘आजादी’ मानता हूँ!”
मालिक, मैनेजर या ‘नया रास्ता’: भारतीय कार्यस्थल की सीख
हमारे यहाँ भी ऐसा कम नहीं होता—कई बार बॉस और सुपरवाइज़र की ‘जुगलबंदी’ में ईमानदार कर्मचारी पिस जाता है। गाँव की चौपाल से लेकर बड़े ऑफिस तक, ‘गुटबाज़ी’ और ‘चुगली’ हर जगह है। ऐसे में, अगर आप खुद को ऐसे हालात में पाएं, तो क्या करें?
- सबसे पहले, सबूत रखिए: काम के घंटे, जिम्मेदारियाँ, कोई भी बदला हुआ व्यवहार—सब लिखकर रखें।
- अगर संभव हो, तो HR या मालिक तक बात पहुँचाएँ। लेकिन सावधानी जरूरी है—कहीं ऐसा न हो कि बात उल्टी पड़ जाए।
- नई नौकरी की तलाश शुरू कर दीजिए। जैसा एक पाठक ने कहा, “अगली नौकरी देखना तब शुरू करो, जब अभी वाली पक्की है।”
- अगर घंटे कम कर दिए जाएँ, तो भारत में भी श्रम कानून के तहत शिकायत की जा सकती है।
कई पाठकों ने यही राय दी—“अपना आत्म-सम्मान सबसे ऊपर है। जहाँ मेहनत की कद्र न हो, वहाँ रुकना सही नहीं।”
दिल पर मत लो यार: अपने अनुभव से कुछ सीखें
कहानी का नायक लिखता है, “मैंने इस जगह को अपना सब कुछ दिया, लेकिन अब वही लोग मेरे खिलाफ हो गए हैं। समझ नहीं आता, इतना बुरा क्यों लग रहा है!” सच कहें तो, हम सब कभी न कभी ऐसी स्थिति में फँसते हैं। लेकिन याद रखिए, नौकरी बदलना ‘हार’ नहीं, बल्कि खुद को बेहतर अवसर देने का नाम है।
बड़े-बुजुर्ग कहते हैं—“जहाँ इज्जत न मिले, वहाँ रोटी भी बेस्वाद लगती है।” तो दोस्तों, चाहे होटल हो या कोई और दफ्तर, अपना आत्म-सम्मान न खोएँ। कोई अगर आपको परेशान कर रहा है, तो डटकर मुकाबला करें या फिर नया रास्ता चुनें।
समाप्ति में, यही कहूँगा—अगर आपके साथ भी कभी ऐसा हो, तो घबराइए मत, अपनी कहानी हमारे साथ साझा कीजिए। क्या आप भी ऑफिस की गुपचुप राजनीति के शिकार हुए हैं? कमेंट में अपने अनुभव जरूर बताइए!
मूल रेडिट पोस्ट: Terrible management